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High Court News: नाम में टाइपिंग की गलती भरण-पोषण याचिका खारिज करने का आधार नहीं: हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दाखिल भरण-पोषण की याचिका को नाम में टाइपिंग की गलती जैसे मामूली तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।

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Abhishek Panday
Lucknow Bench of Allahabad High Court

नाम में टाइपिंग की गलती भरण-पोषण याचिका खारिज करने का आधार नहीं: हाईकोर्ट

प्रयागराज, वाईबीएन संवाददाता।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दाखिल भरण-पोषण की याचिका को नाम में टाइपिंग की गलती जैसे मामूली तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट का आदेश केवल नाबालिग के अभिभावक का नाम टाइप करने में की गई तकनीकी गलती पर आधारित है। जहां मां के वास्तविक नाम की बजाय एक गलत नाम का इस्तेमाल किया गया था।  इसी के साथ न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा ने परिवार न्यायालय मुजफ्फरनगर के उस आदेश को रद्द कर दिया। जिसमें पत्नी व नाबालिग बेटे की भरण-पोषण याचिका केवल इसलिए खारिज कर दी गई थी कि बच्चे के अभिभावक के रूप में मां का नाम गलत दर्ज हो गया था।

कोर्ट ने कहा नाबालिग के अभिभावक का नाम सहीं करे

कोर्ट ने मामले को दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर देने के बाद रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर नए सिरे से आदेश करने के निर्देश के साथ वापस फैमिली कोर्ट भेज दिया। यह भी निर्देश दिया कि याची फैमिली कोर्ट की अनुमति से सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अर्जी में नाबालिग के अभिभावक का नाम सही करे। याची महिला व उसके नाबालिग बेटे ने परिवार न्यायालय मुजफ्फरनगर में सीआरपीसी की धारा 125 के अर्जी में भरण पोषण की मांग करते हुए कहा था कि पति ने उनकी उपेक्षा की है। जिससे उन्हें अलग रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। परिवार न्यायालय ने उनकी अर्जी को इस आधार पर खारिज कर दिया कि अर्जी में, नाबालिग बेटे का प्रतिनिधित्व उसकी मां और अभिभावक के रूप में एक गलत नाम के तहत किया गया था। जबकि प्राथमिक आवेदक उसकी असली मां थी। हाईकोर्ट में याची की ओर से तर्क दिया कि गलत नाम केवल टाइपिंग की गलती थी और इसे मां के वास्तविक नाम के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए था। कहा गया कि फैमिली कोर्ट ने मामले के गुण-दोष पर विचार किए बिना केवल इस तकनीकी आधार पर याचिका खारिज कर दी। सरकारी वकील ने पुनरीक्षण का विरोध किया लेकिन इस तथ्य पर विवाद नहीं कर सके कि फैमिली कोर्ट ने अर्जी केवल इस आधार पर खारिज की थी कि नाबालिग की मां का नाम गलत लिखा गया था और यह टाइपिंग की गलती थी। हाईकोर्ट ने पति को नोटिस जारी किया लेकिन उनकी ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। हाईकोर्ट ने पाया कि पति शुरू में परिवार न्यायालय में उपस्थित हुआ और आपत्ति दर्ज कराईं लेकिन बाद में अनुपस्थित हो गया।

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