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रामपुर रजा पुस्तकालय में गीता जयंती पर लगी प्रदर्शनी देखते निदेशक डाॅ पुष्कर मिश्र।
रामपुर, वाईबीएन नेटवर्क। रामपुर रज़ा पुस्तकालय एवं संग्रहालय में गीता जयंती के अवसर पर "श्रीमद् भगवद्गीता की विशेष प्रदर्शनी" का उद्घाटन डॉ पुष्कर मिश्र, निदेशक, रामपुर रज़ा पुस्तकालय ने किया।
प्रदर्शनी में श्रीमद् भगवद्गीता की दुर्लभ, प्राचीन और कलात्मक चित्रों के साथ-साथ भारतीय ग्रंथ-परंपरा को दर्शाने वाली महत्वपूर्ण सामग्रियां प्रदर्शित की गई हैं, जिनसे दर्शकों को गीता के आध्यात्मिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक महत्व को समझने का अवसर मिलेगा। इस अवसर पर पुस्तकालय के निदेशक डॉ. पुष्कर मिश्र ने कहा कि ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन लीला-पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने पार्थ अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। भगवद्गीता विश्व के उन चुनिंदा ग्रंथों में से एक है, जिन पर अनेक भाष्य रचे गए हैं और जो विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित होकर करोड़ों लोगों का जीवन-ग्रंथ बनी है। किसी भी ग्रंथ को जीवन-ग्रंथ की श्रेणी में तब रखा जाता है जब उससे प्रेरित होकर लोग अपने जीवन का निर्माण करें और उसके आधार पर जीवन को ढालें।
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भगवद्गीता की सबसे बड़ी विशेषता उसकी संवादात्मक शैली है। प्रश्न और उत्तर के माध्यम से बहुत सरल ढंग से अध्यात्म और जीवन के गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित किया गया है। यह संवाद शैली हमें उपनिषदों तथा अन्य अनेक ग्रंथों में भी दिखाई देती है। इसी संवाद परंपरा में एक अत्यंत अद्भुत ग्रंथ श्री वशिष्ठ और राम का संवाद है, जिसे महारामायण या योगवशिष्ठ कहा जाता है। योगवशिष्ठ में एक ओर कालिदासीय काव्य-सौंदर्य है, तो दूसरी ओर प्रस्थान-त्रयी के दर्शन का सार भी प्राप्त होता है। ‘प्रस्थान-त्रयी’ का अर्थ है—वह तीन आधारभूत ग्रंथ, जहाँ से मनीषा और चिंतन आरम्भ होते हैं। इन तीनों में पहला प्रस्थान उपनिषद हैं (जिनके अनेक प्रकार हैं), दूसरा प्रस्थान ब्रह्मसूत्र, और तीसरा प्रस्थान श्रीमद्भगवद्गीता है।
प्रस्थान-त्रयी पर लिखे गए भाष्यों ने अनेक संप्रदायों और मतों का सूत्रपात किया। इनमें सबसे प्रसिद्ध अद्वैत मत है, जिसका प्रवर्तन आदि शंकराचार्य ने किया। इसके दृष्टा श्रीगौड़पादाचार्य—जो शंकराचार्य के गुरु के गुरु थे—ने मांडूक्यकारिका के माध्यम से अद्वैत सिद्धांत का प्रतिपादन किया। अद्वैत के अतिरिक्त विशिष्टाद्वैत, द्वैत, द्वैताद्वैत आदि अनेक विमर्श और मत भी विकसित हुए, और इन सभी ने गीता पर भाष्य किए बिना अपनी परंपरा को आगे नहीं बढ़ाया।
वर्तमान काल, विशेषकर पिछले लगभग 150 वर्षों को देखें तो लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गीता-रहस्य की रचना की; स्वयं महात्मा गांधी ने माता गीता तथा अन्य लेखों के माध्यम से गीता पर अपने विचार व्यक्त किए। आधुनिक समय में स्वामी रामसुखदास जी ने साधक-संजीवनी नामक विस्तृत हिंदी भाष्य की रचना की।
गीता में कर्मयोग, राजयोग, भक्तियोग, सांख्य, ज्ञानयोग आदि अनेक योगों तथा दार्शनिक दृष्टियों का समन्वय मिलता है—यही इसकी अनुपम विशेषता है। सामान्य संस्कृत-ज्ञान वाला व्यक्ति भी इसे समझ सकता है, क्योंकि गीता का प्रत्येक श्लोक जीवन-दृष्टि प्रदान करता है।
इस अवसर आयोजित हुए कार्यक्रम का संचालन साजिया हसन द्वारा किया गया, उन्होंने बताया कि यह प्रदर्शनी 1 दिसम्बर से 15 दिसम्बर 2025 तक आम दर्शकों के लिए प्रदर्शित रहेगी।
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