Advertisment

दृष्टिकोण: विचारधाराओं के टकराव से राष्ट्रवाद को खतरा- अमित त्यागी

भारत के राष्ट्रवाद की भावना को इतना खतरा वाह्य शक्तियों से नही है, जितना कि आंतरिक असंतोष को भुनाने वाले बौद्धिक बुद्धिजीवियों से है। वाह्य शक्तियों के द्वारा स्थानीय बौद्धिक बुद्धिजीवियों के सहयोग सेबेरोजगार युवको के आंतरिक असंतोष को भुनाया जाता है।

author-image
Dr. Swapanil Yadav
लेखक

अमित त्यागी वरिष्ठ स्तंभकार Photograph: (वाईबीएन संवाददाता )

शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता 

Advertisment

आज दुनिया में सिर्फ स्वयं को बेहतर दिखाने और वर्चस्व की जंग मची हुई है। रूस-यूक्रेन युद्ध, इजरायल-फ्लिस्तीन युद्ध और अन्य देशों के बीच इस समय वैश्विक युद्धों की भरमार है। धन बल के द्वारा एक देश दुसरे देश पर विजय पाने को आमादा है। इस बीच अमेरिका के अगले राष्ट्रपति ट्रम्प होंगे। ट्रम्प को राष्ट्रवादी विचारधारा का माना जाता है इसलिए उनका और मोदी का सामंजस्य बेहतर दिखता है। ट्रम्प दुबारा वापसी करके तत्पर और उत्साहित हैं। हालांकि, राष्ट्रपति के रूप में अमेरिका में डेमोक्रेट और रिपब्लिक दोनों ही किसी अन्य विषय से ऊपर व्यापार को प्राथमिकता देते हैं और मोदी अन्तराष्ट्रिय राजनीति की व्यापारिक डीलिंग के उस्ताद हैं। पर एक बात भारत के लोगों को स्पष्ट समझनी होगी कि राष्ट्रपति परिवर्तन से होने से भारत या किसी भी अन्य देश में डीप स्टेट की गतिविधियां कम नहीं होंगी। देशों को अस्थिर करने की अमेरिकी नीति पूर्ववत ही रहेंगी। इसकी वजह विचारधारा है। 

यह भी पढ़ें 

Israel Gaza War: अमेरिका के समर्थन से हम ईरान के खिलाफ अपना काम पूरा कर सकते हैं : इजरायली पीएम

Advertisment

कुछ विचारधाराएँ वसुधेव कुटुंबकम के आधार सम्पूर्ण धरा को अपना मानकर चलती हैं तो कुछ विचारधाराएँ सम्पूर्ण विश्व को अपने उपभोग की वस्तु मानती हैं। जैसे दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों के आने पर कहा जाता है कि वह जब आए तब उनके पास बाइबल थी और हमारे पास हमारी जमीने। 100 साल के बाद हमारे पास उनकी बाइबल थी और उनके पास हमारी जमीने। सेवा का भाव दिखाकर, धर्मांतरण के द्वारा और उपभोग का प्रयोग करके, देशों की संस्कृति को नष्ट करने का यह अनुपम उद्वारण है। पश्चिम और वहाँ से उपजे पंथों की विचारधारा रेखीय है। जन्म, जीवन, मरण और उसके बाद क़यामत/जजमेंट डे, इसलिए ये विचारधारा मृत्यु के बाद क़यामत/जजमेंट डे को महत्वपूर्ण मानती हैं। सनातनी जीवन दर्शन रेखिय है जिसमे जन्म, जीवन, मरण एवं फिर पुनर्जन्म की अवधारणा है। 

यह भी देखें Sahitya Akademi पुरस्कार प्राप्त लेखिका बोलीं, मणिपुर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई रोक नहीं

लेख
Deep State Photograph: (internet )
Advertisment

सेकुलर शब्द पश्चिम की देन 

यह जीवन दर्शन प्रकृति और सृष्टि को उपभोग की वस्तु न मानकर आने वाली पीढ़ियों के लिए सँजोने का कार्य करता है। यही कारण है कि भारतीय भूभाग में पुरातन शिल्प बेजोड़ है, यहाँ के त्यौहार प्रकृति केन्द्रित हैं, यहाँ के लोग जहां गये उन्होने वहाँ की संस्कृति को नष्ट नहीं किया बल्कि वहाँ अपनी ज्ञान परंपरा को प्रकाशमान किया। 1976 में संविधान में सेकुलर और सोशियलिस्ट दो शब्दों को जोड़ा गया था। इन शब्दों के अङ्ग्रेज़ी मायने यूरोपीय सभ्यता के ज़्यादा करीब हैं किन्तु भारतीय सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में इसके मायने बिना विचारे ही ग्रहण कर लिए गए हैं। पश्चिम के जिन देशों में सेकुलरिस्म रहा है वहाँ जीवन का एक सिरा राजा के और दूसरा चर्च के नियंत्रण में रहा है। भारत के संदर्भ में ऐसा कभी नहीं रहा। सेकुलर शब्द पश्चिम की देन है और यह परलौकिक एवं इहलौकिक जीवन को अलग अलग रखता है। यूरोप में कई फिरकों में आपसी मतभेद रहे हैं इसलिए यह शब्द सहिष्णुता नहीं दिखाता। सेंट पीटर की व्याख्या के अनुसार ‘मनुष्य के इहलोक जीवन पर राज्य का अधिकार है और परलोक पर चर्च का।’ इस व्याख्या के कारण ही यूरोपीय शैली में स्वेच्छाचार, यौनाचार, स्वच्छंदता एवं भोगवाद की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला। इसके द्वारा एक बड़ा बाज़ार पैदा हुआ। नैतिक अनुशासन का तत्व विलुप्त हो गया। भोगवाद का समर्थन हो गया। यही से बाज़ार का निर्माण होता है। आज हम जो भी समस्याएँ, विचारधाराओं से भटकाव एवं सत्ताधीशों के द्वारा बाज़ार अनुकूल नीतियाँ देख रहे हैं वह इसी व्याख्या से उपजी हैं। समस्या कांग्रेसी विचारधारा या संघी विचारधारा के साथ नहीं है। असली समस्या सत्ता में आने पर बाज़ार की विचारधारा हावी हो जाने को लेकर है।

यह भी देखें

Advertisment

Visit of Emir of Qatar to India: कतर के अमीर भारत दौरे पर, प्रधानमंत्री मोदी से करेंगे मुलाकात

भारतीय राष्ट्रवाद को खतरा अंदर से

भारत के राष्ट्रवाद की भावना को इतना खतरा वाह्य शक्तियों से नही है, जितना कि आंतरिक असंतोष को भुनाने वाले बौद्धिक बुद्धिजीवियों से है। वाह्य शक्तियों के द्वारा स्थानीय बौद्धिक बुद्धिजीवियों के सहयोग से बेरोजगार युवको के आंतरिक असंतोष को भुनाया जाता है, तब देश की अखंडता एवं व्यवस्था को एक साथ बरकरार रखना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। उग्रवाद, अलगावाद, नक्सलवाद और अन्य बहुत से क्षेत्रीय वादों को हवा देता है बौद्धिक आतंकवाद। अपनी मेधा का गलत उपयोग करना बौद्धिक आतंकवाद की श्रेणी मे आता है। हमें सतर्क रहकर समझना होगा कि देश कहीं बौद्धिक आतंकवादियों के चंगुल में न फंस जाये। इस तरह के महत्वपूर्ण विषयों पर राष्ट्रिय विमर्श को आगे बढ़ाना चाहिए।

लेखक परिचय

अमित त्यागी
अमित त्यागी Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क )

 

बलिदानियों की नगरी शाहजहाँपुर निवासी अमित त्यागी विधि विशेषज्ञ, पर्यावरणविद और राजनीतिक विषयों के जानकार हैं। आप योजना, कुरुक्षेत्र, राष्ट्रधर्म जैसी पत्रिकाओं में लेखन कर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। आप दो दशकों से निरंतर लेखन में सक्रिय हैं। आप कई राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं का संपादन कार्य देख रहे हैं। आईआईटी दिल्ली सहित अनेक संस्थानों और विभिन्न स्थानों पर सम्मानित अमित त्यागी को साहित्य के क्षेत्र में दर्जनों सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। शार्ट फिल्म रज़ाई में लिखे आपके गीत “रिश्तों की गर्माहट ” को काफी पसंद किया गया। आपका लिखा आनंदित राम गीत शीघ्र ही रिलीज हुआ है । 

यह भी देखें

Putin ने ट्रंप को रूस आने का दिया आमंत्रण , अमेरिका राष्ट्रपति बोले - मैं होता तो युद्ध न होता

Advertisment
Advertisment