नदी के प्रदूषण से जंगल को पोषण– आशीष की जुबानी पर्यावरण नवाचार की कहानी
रक्षा संपदा के विभाग में कार्यरत आशीष भारद्वाज ने नवाचार से पर्यावरण संरक्षण में अनुकरणीय मिसाल पेश की है। उन्होंने शहर के गंदे पानी को जंगल की ओर मोड़ नदी को प्रदूषण से बचा हजारों पौधों को जीवनदान दिया है। माई हाफ ट्री अभियान से पर्यावरण संवार रहे हैं।
शाहजहांपुर जनपद के जाट रेजीमेंट बरेली में सीनियर ऑडिटर के पद पर कार्यरत आशीष भारद्वाज ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ऐसा कार्य किया है जो प्रेरणाप्रद ही नहीं, अनुकरणीय भी है। उन्होंने शाहजहांपुर कैंट क्षेत्र की 80 एकड़ लीज भूमि को जंगल में तब्दील कर दिया है जहां आज 15 से 30 हजार पेड़ लहलहा रहे हैं।
Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
यूपीएससी से पर्यावरण प्रेम की ओर मोड़
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यूपीएससी की तैयारी के दौरान आशीष ने जब पर्यावरण संरक्षण का महत्व समझा तो यह विषय सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने छोटे-छोटे पौधे खरीदकर पालना शुरू किया और फिर निःशुल्क लोगों को भेंट करने लगे। इस छोटे से कदम ने उन्हें हरियाली के बड़े मिशन की ओर मोड़ दिया।
जंगल भी बचा,नदी भी बची
आशीष भारद्वाज ने पर्यावरण संरक्षण के साथ नदी संरक्षण व प्रदूषण मुक्ति का भी कार्य किया है। उन्होंने नालियों में बहकर आने वाले महानगर के अपशिष्ट जल के मार्ग का रुख नदी के बजाय जंगल की ओर मोड दिया। इससे नदी को प्रदूषण से मुक्ति मिली और जंगल की हरियाली भी बढ गई। दरअसल आशीष ने जंगल में 30 फीट के अंतराल पर डेढ फीट गहरी छोटी-छोटी नालियां बनाई। इन नालियों से महानगर का कचरायुक्त जल लेकर आने वाली मुख्य नाली से जोड दिया। नतीजतन जंगल में लगे पौधों को बिना पानी लगाए ही पर्याप्त नमी मिलने लगी। खास बात यह रही कि पौधों को अपशिष्ट जल के कार्बिनिक तत्वों से पोषण भी मिल रहा है और वह बिना खाद के ही हरे भरे बने हुए हैं। मोक्षधाम के पास खन्नौत नदी भी पूरी तरह निर्मल व स्वच्छ है।
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बाढ़ और बेघर नर्सरी से सीखा सबक
पहली नर्सरी एसपी बंगले के पास एक बीघा भूमि पर तैयार की गई जो बाद में हटानी पड़ी। फिर दूसरी जगह नर्सरी शुरू की लेकिन 2024 की बाढ़ में पौधे नष्ट हो गए। इन बाधाओं ने आशीष के हौसले को नहीं तोड़ा। उन्होंने फिर से पौधे तैयार किए और बड़े स्तर पर काम शुरू किया।
मोनो कल्चर नहीं, पोलो कल्चर की सोच
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वन विभाग जहां एक जैसे पौधे पंक्तिबद्ध लगाता है वहीं आशीष का मानना है कि सभी प्रकार के पौधे परिवार की तरह एक साथ लगने चाहिए। इससे न केवल मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है, बल्कि पौधों की जड़ें आपस में जुड़कर बेहतर पोषण भी देती हैं।
‘माई हाफ ट्री’ अभियान बना जन-आंदोलन
आशीष ने ‘माई हाफ ट्री’ नामक अभियान शुरू किया है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति अपने किसी खास दिन या प्रियजन की स्मृति में पौधा लगा सकता है, लेकिन शर्त यह है कि उसकी देखरेख की जिम्मेदारी उसी की होगी। आशीष समय-समय पर यह जांचते हैं कि पौधा जीवित है या नहीं। आशीष का मानना है कि खाने से जरूरी पानी और पानी से जरूरी हवा है। फावड़ा शर्म की नहीं शान की बात है। इस सोच के साथ उन्होंने समाज में नई चेतना का संचार किया है।
कई प्रजातियों के पेड़ों का बना घर
इस जंगल में गूलर, जामुन जंगल जलेबी जैसे पौधे लगाए गए हैं। जानबूझकर पीपल, नीम, बरगद जैसे पूजनीय पेड़ों को नहीं लगाया गया, ताकि धार्मिक कारणों से कटाई या छेड़छाड़ न हो। आज यह जंगल पक्षियों, तितलियों और अन्य जीवों का भी सुरक्षित बसेरा बन चुका है।
निःशुल्क पौधे, लेकिन जिम्मेदारी के साथ
शहर में किसी को भी यदि पौधा चाहिए, तो आशीष निःशुल्क देते हैं लेकिन एक शर्त के साथ पौधे को काटा नहीं जा सकता और समय-समय पर उसकी देखरेख करनी होगी।