धर्म: बुद्ध पूर्णिमा पर हर-हर गंगे के जयकारों से गूंजी श्रृंगी ॠषि की तपस्थली ढाई घाट
श्रंगी ऋषि की तपोभूमि ढाईघाट गंगातट पर बुद्ध पूर्णिमा पर हजारों श्रद्धालुओं ने स्नान कर पुण्य प्राप्त किया। गंगातट हर हर
गंगे के जयकारों से गूंजता रहा।
श्रंगी ऋषि की तपिभूमि ढाईघाट गंगातट पर बुद्ध पूर्णिमा के दिन सोमवार को हजारों श्रद्धालु ओं ने स्नान किया। ब्रह्म मुहूर्त से ही स्नान करने वाले श्रद्धालु पहुंचने लगे। गंगातट हर-हर गंगे के जयकारों से गूंजता रहा। श्रद्धालुओं ने गंगातट पर हवन पूजन भी किया।
Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
जलालाबाद मुख्यालय से 24 किमी दूर स्थित ढाईघाट गंगा तट को तपोनिष्ठ श्रंगी ऋषि से संबंधित तपस्थली माना जाता है। किवदंती है कि महर्षि श्रंगी एवं महर्षि वशिष्ठ ने महाराज दशरथ को पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया था। इस पुनीत यज्ञ में आचार्य महर्षि श्रृंगी के लिए आमंत्रित करने को गुरु वशिष्ठ के साथ आए थे। लगातार मिलने वाली सफलताओं ने महर्षि श्रंगी को अहंकार से भर दिया। महर्षि मंडक ने अपने पुत्र श्रंगी ऋषि को अहंकार रूपी श्राप से मुक्ति दिलाने को ढाईघाट गंगातट पर नैमिषारण्य से लाये 88000 ऋषियों का सत्संग कराया। ऋषियों के मध्य बैठकर सौनकादि ऋषि से श्रंगी ऋषि ने ढाई वर्ष तक कथा सुनी। प्रतिदिन गंगा स्नान कर घोर तप किया था। कथा के साथ ही गंगा स्नान से श्रंगी ऋषि को धर्म के तत्व ज्ञान का बोध हुआ। उनके मस्तिष्क पर बैठा शाप रूपी तामसी सींग समाप्त हो गया। ढाई वर्ष के गंगा स्नान और सत्संग के कारण ही इस स्थान का नाम ढाईघाट पड़ा।
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Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
सनद सनंदन सनतकुमार नामक ऋषि इसी स्थान पर प्रकट हुए
दूसरी किवदंती है कि इस पवित्र स्थान पर ऋषियों ने ढाई हजार वर्ष तक गंगा तट पर तप किया गया था। इस स्थान का नाम ढाईघाट पड़ने का यह भी कारण है। सनद सनंदन सनतकुमार नामक ऋषि इसी स्थान पर प्रकट हुए थे। जो ब्रम्हा जी के पुत्र थे। लाक्षागृह से बचने के बाद पांडव छदम भेष में इसी स्थान के समीप रहे थे। इसे अब सनाय कहते हैं।
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Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
यहीं से पांडव आखेट पर गए थे
यहीं से पांडव आखेट करने हिरण्य खेरे पर गये थे जो वर्तमान में हर्रई खेडे के नाम से जाना है। आज भी दूरदराज क्षेत्रों से आने वाले भक्त यहां पूजा अर्चना, मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत समेत तमाम धार्मिक अनुष्ठान कर पुण्य अर्जित करने आते हैं। बुद्ध पूर्णिमा पर भी मुंडन, यज्ञोपवीत हुए।