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Shahjahanpur News: दो साल जेल की सलाखों के पीछे काटे, अब न्यायालय ने कहा– अनंगपाल निर्दोष है

शाहजहांपुर के जलालाबाद क्षेत्र के अनंगपाल को 2002 के हत्या के मामले में दो वर्ष जेल में रहने के बाद न्यायालय ने साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त कर दिया है।

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Ambrish Nayak
Shahjahanpur news

Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

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शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता 

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इंसाफ कभी-कभी देर से मिलता है लेकिन जब मिलता है तो दिल को एक गहरा सुकून दे जाता है। जलालाबाद के आलमनगर गांव निवासी अनंगपाल ने अपनी जिंदगी के दो कीमती साल जेल की सलाखों के पीछे गुजारे, एक ऐसे जुर्म के लिए जो उन्होंने किया ही नहीं था। अब 23 साल बाद विशेष न्यायालय ने उन्हें बेगुनाह करार दिया है। ये केवल एक अदालती फैसला नहीं बल्कि एक ऐसे इंसान की टूटती उम्मीदों समाज की बेरुखी और सिस्टम की गलती से लड़ने की लंबी कहानी है।

15 अक्टूबर 2002 की वो स्याह सुबह

गांव के ही शिवशरण लाल के खेत में बलराम का सिर कटा शव पड़ा मिला। उसके पिता बनवारी ने उसी दिन बेटे की हत्या की रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई। उन्होंने पुरानी रंजिश के चलते गांव के तीन लोगों श्रीराम, कुमरे और अनंगपाल पर हत्या का आरोप लगाया। पुलिस जांच में श्रीराम को क्लीन चिट मिल गई, लेकिन अनंगपाल और कुमरे के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई। अनंगपाल को जेल भेज दिया गया जहां उन्होंने पूरे दो साल बिताए। वहीं, कुमरे जमानत पर रिहा होने के बाद से पिछले 12 वर्षों से लापता है।

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हर तारीख पर उम्मीद लिए बैठता था अनंगपाल

जेल से बाहर आने के बाद अनंगपाल ने हर तारीख पर अदालत की चौखट पर एक ही उम्मीद से दस्तक दी शायद आज साबित हो जाए कि वह निर्दोष है। बचाव पक्ष के अधिवक्ता राकेश कुमार सिंह चंदेल ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णयों हनुमंत बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1952) और तुफैल उर्फ सिम्मी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1969) का हवाला देते हुए तर्क दिया कि केवल शक के आधार पर किसी निर्दोष को सजा देना भी न्याय का अपमान है।

अंततः जीत गई सच्चाई

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विशेष एससी-एसटी न्यायाधीश गरिमा सिंह ने साक्ष्यों के अभाव में अनंगपाल को दोषमुक्त कर दिया। अदालत ने माना कि अभियोजन पक्ष यह सिद्ध नहीं कर पाया कि अनंगपाल हत्या में शामिल था।

लेकिन क्या खोया वक्त लौट सकता है?

निर्दोष साबित होना एक राहत है मगर दो साल की जेल समाज की नजरें और हर तारीख पर इंसाफ की आस ये सब मिलकर जो घाव दे जाते हैं वे जीवन भर नहीं भरते।अनंगपाल की आंखों में अब सुकून तो है मगर भीतर कहीं न कहीं उस खोए वक्त का अफसोस भी साफ झलकता है।

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