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विशेष: भारतीय संस्कृति की चेतना के रक्षक थे महर्षि दयानंद सरस्वती-प्रो. कनक रानी

आज महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, उनकी जयंती फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को मनाई जाती है। आर्य समाज की स्थापना के साथ वेदों की ओर लौटो का संदेश देने वाले महर्षि दयानंद सरस्वती भारतीय संस्कृति के रक्षक रहे।

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Dr. Swapanil Yadav
ARYA SAMAJ

महर्षि दयानन्द सरस्वती Photograph: (INTERNET MEDIA)

शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता । 

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आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने स्वराज के निमित्त जन-जन का प्रथम आह्वान किया था। उनके अखण्ड भारत की संकल्पना वर्ग-जाति की संकीर्णता से मुक्त- मानवता से संयुक्त दिखाई देती है। वेद निर्देशित सामाजिक व्यवस्था में किसी व्यक्ति के वर्ण का निर्धारण जन्म से नहीं अपितु उसके गुण-कर्म-स्वभाव से होता है। व्यक्ति की योग्यता के आधार पर/अपनाए गए व्यवसाय के आधार पर वर्ण व्यवस्था की स्वीकार्यता वेदोल्लिखित प्रमाण है। महर्षि दयानंद ने सामाजिक व्यवस्था के लिए वेदों को प्रमुख आधार बनाया। महर्षि दयानन्द सत्य के उद्घोषक हैं। मानवता के संरक्षक हैं। समरसता के संवाहक हैं। समानता के पथ प्रदर्शक हैं। सह अस्तित्व के समर्थक है। वेदों के प्रति अगाध आस्था, राष्ट्र के प्रति गहन आस्था उन्हें वैदिक संस्कृति और सभ्यता की गरिमापूर्ण विरासत के संरक्षक/उद्धारक की गुरुता प्रदान करती है। उनके मत में सर्वहितकारी वैदिक विचारों को आत्मसात कर प्रबुद्ध भारत का निर्माण संभव है।

महर्षि की प्रवृत्ति समाज सुधार की थी। वे मूर्ति पूजा के विरोधी थे। पशुबलि के खिलाफ थे। संस्कार प्रणाली के माध्यम से समाज का संस्करण तथा परिष्करण अपरिहार्य मानते थे। उनके विचारों में समाज सुधार हेतु माता-पिता और आचार्य का बड़ा दायित्व है- मातृमान पितृमान आचार्यवान पुरुषो वेद। उन्होंने लालन-पालन के साथ ही यथोचित दण्ड प्रक्रिया का सहारा लेते हुए संतति के जीवन विनिर्माण पर बल दिया। महर्षि द्वारा समर्थित अग्निकर्म द्वारा वायुमण्डलीय पर्यावरण की संरक्षा आज के दौर में भी प्रासंगिक दिखाई देती है।

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एकात्मवाद के समर्थक


कात्मवाद के समर्थक महर्षि क्षेत्रवाद, जातिवाद से परे संपूर्ण मानवता के अभ्युत्थान के लिए प्रयत्नशील रहे। दलितों-शोषितों को समानता का अधिकार दिलाने का प्रयास किया। सत्य को ग्रहण करने और असत्य को त्यागने का आह्वान किया। उन्नति के लिए अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि के लिए प्रेरित किया। महर्षि प्रणीत सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका, संस्कार विधि आदि ग्रंथ आज के दौर में भी जन जाग्रति का प्रतिनिधित्व करते है ।समाज को सुधारोन्मुख करने के लिए अंधविश्वास-पाखण्ड पर चोट जरूरी है। जो तथ्यों पर आधारित न हो, ऐसे मिथ्या विचारों की स्वीकार्यता मनःस्थिति को भ्रान्त करती है। अतः इनके नकारात्मक पक्ष को समझना आवश्यक है। महर्षि दयानंद का समग्र जीवन अंधविश्वास और पाखण्ड के विरुद्ध संघर्ष में समर्पित रहा।

वेदों की ओर लौटने का आह्वान

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कुरीतियों से सामाजिक विकृतियों का पनपना तथा व्यापना अस्वाभाविक नहीं। समाज को बुराइयों से/रूढ़ियों से मुक्ति दिलाए बिना समाज की उन्नति कदाचित् ही संभव है। इस यथार्थ को संज्ञान में लेते हुए महर्षि ने कुरीतियों-कुप्रथाओं पर प्रहार किया और इससे पृथक्ता हेतु उद्बोधित किया। वे अस्पृश्यता के प्रबल विरोधी हैं। वस्तुतः वेदों में दलित और अस्पृश्य जैसी अवधारणा का कोई स्थान है ही नहीं। अज्ञान-अन्याय-अनीति से पृथक्करण के लिए पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराकर जनहित में गतिशील रहे। महर्षि का दृष्टिकोण वैज्ञानिक था। उन्होंने किसी तथ्य को परखने के लिए तर्क और ज्ञान की कसौटी पर कसना आवश्यक बताया। प्रमाणित होने के उपरांत ही किसी सिद्धांत को मान्यता देने के पक्षधर थे वे। जन हितार्थ मिथ्या धारणाओं का खण्डन कर/गलत परंपराओं का अनौचित्य बताकर उन्होंने वेदों की ओर लौटने का आह्वान किया। समय पूर्व विवाह की हानियों को देखते हुए बाल विवाह को समाज की प्रगतिशीलता में अवरोध बताया। यह संदर्भ शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यक्तित्व विनिर्माण को बाधित करता है। यही कारण है कि महर्षि दयानंद बाल विवाह को अनुचित बताते हैं। बाल विवाह एक सामाजिक बुराई है। शिक्षित और परिपक्व होने के उपरांत ही विवाह संस्कार का सम्पादन व्यक्ति तथा समाज के लिए अभ्युदयकारी हो सकता है।महर्षि दयानंद महिला-समाज के प्रति संवेदना रखते हैं। बालिकाओं को शिक्षित किए बिना समाज के सर्वतोमुखी विकास की विचारणा संभव ही नहीं। महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार के लिए विधवा-विवाह के समर्थन व पर्दा-प्रथा के विरोध ने परिवेश में सकारात्मक भूमिका का निर्वहण किया।

ARYA SAMAJ
वेद Photograph: (INTERNET MEDIA)
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वैदिक संस्कृति का पुनरुत्थान


महर्षि दयानंद के अनुसार शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाकर सामाजिक दशा तथा दिशा को बेहतर बनाया जा सकता है। इस तथ्य के लक्ष्यगत उन्होंने गुरुकुल प्रणालीय शिक्षा की गुणवत्ता को स्वीकृति दी। समाज का हर व्यक्ति शिक्षित हो। शिक्षा ही समाज में जागरूकता का प्रमुख साधन है। शिक्षा ही है जो पाखण्ड को खण्डित करने की क्षमता रखती है। शिक्षित व्यक्ति ही अपने अधिकारों के प्रति सचेत होता है और दायित्व के प्रति सचेष्ट। दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज तथा गुरुकुल कांगड़ी महर्षि दयानंद की शिक्षा के प्रति संचेतना को संदर्शित करते हैं। वैदिक संस्कृति का पुनरुत्थान उनका ध्येय रहा। उन्होंने वेदों का आश्रय लेकर लोक कल्याण को केंद्रित किया। ‘वेदों की ओर लौट चलो’ इस नारे की वैदिक विचारों को अनुप्राणित करने में अग्रणी भूमिका रही। आर्य विचारों के पोषक महर्षि ने ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम’ में भारत का उज्ज्वल स्वरूप देखा। महर्षि दयानंद एक समाजसेवी संन्यासी थे। सत्यार्थ प्रकाश जैसे लोकविश्रुत तथा अभ्युदयकारी ग्रंथ का सृजन कर सकल मानवता का मार्गदर्शन किया। व्यक्ति/समाज में सुधारात्मक/रचनात्मक बदलाव के लिए आत्मबोध और आत्मगौरव का मंत्र दिया।

देशवासियों के विचारों को राष्ट्रवाद से पोषित किया


वे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे। उनका मानना था कि देववाणी वेदवाणी संस्कृत से अनभिज्ञता जनहित में नहीं। विलक्षण विद्वता के साथ-साथ ओजस्वी वक्तृता से उठाए गए समाज सुधार के बिंदु उनकी सामाजिक चेतना को मुखरित करते हैं। हर वर्ग के बीच अधिकाधिक प्रसारित करने के लिए सरल, सहज और बोधगम्य हिंदी भाषा में  भाषण करना उनकी सहजता है। यही नहीं, हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने के पक्षधर थे। महर्षि दयानंद की प्रकृति प्रजातांत्रिक थी। वे देशवासियों को राष्ट्र-भाव से ऊर्जित करते हैं। उनका मंतव्य था कि स्वाधीनता के माध्यम से व्यक्ति/परिवार/समाज और राष्ट्र में आत्मगौरव का भाव जगाया जा सकता है। सशक्त भारत के विनिर्माण को लक्षित करते हुए स्वाभिमान और स्वावलंबन को जाग्रत कर उन्होंने भारत की सुप्त आत्मा को झकझोरने का प्रयास किया। स्वदेश, स्वराज, स्वधर्म और स्वभाषा के उत्थान के लिए जनमानस को प्रेरित किया। अंग्रेजों की दासता को अस्वीकार्य बताते हुए देशवासियों के विचारों को राष्ट्रवाद से पोषित किया।

उनकी सांस्कृतिक चेतना ने एकता के सूत्र से बिखरते देश को बांधने का कार्य किया। महर्षि दयानंद का प्रयास था कि राष्ट्रीय ऊर्जा का प्रतीक युवा वर्ग शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों से सर्वथा परिपूर्ण हो। उन्होंने राष्ट्र-विकास के मद्देनजर एकता, समरसता व सद्भावना आदि सांस्कृतिक मूल्यों से जनमानस को अनुप्राणित किया।

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लेखिका परिचय 

लेख
प्रोफेसर कनक रानी Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

 प्रोफेसर कनक रानी आर्य महिला डिग्री कॉलेज शाहजहांपुर की प्राचार्य रह चुकी हैं

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