Indian Railway दिवस पर विशेष : Shahjahanpur में रेल विकास की ऐतिहासिक यात्रा
भारतीय रेल दिवस के अवसर पर शाहजहांपुर में रेल के आगमन और विकास की ऐतिहासिक यात्रा पर एक दृष्टि। तीन प्रमुख चरणों में रेल विस्तार, छोटी लाइन, स्टीम ट्राम वे और ऐतिहासिक तथ्यों के साथ जिले के रेलवे इतिहास को उजागर करता यह विशेष लेख।
आज भारतीय रेल दिवस है। इस अवसर पर शाहजहांपुर जिले में रेल की ऐतिहासिक यात्रा को याद करना स्वाभाविक है। एसएस कॉलेज के इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. विकास खुराना के शोध पत्रों से जिले में रेल के तीन प्रमुख चरणों में विकास की जानकारी मिलती है।
Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
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प्रथम चरण: अवध-रुहेलखंड रेल लाइन (1873)
1 मार्च 1873 को अवध-रुहेलखंड रेल लाइन की शुरुआत हुई, जो जिले के मुख्य स्टेशन को जोड़ती है। इस लाइन का निर्माण अवध-रुहेलखंड रेलवे कंपनी द्वारा किया गया था, जिसकी स्थापना 1872 में हुई थी। कंपनी के अध्यक्ष विलियम डेट और प्रबंध निदेशक सी.सी. जानसन थे। यह रेल लाइन शहर के पूरब से कहलिया और रोजा होते हुए जिले में प्रवेश करती है और पश्चिम की ओर बहमुल पारकर जिले को छोड़ती है। खन्नौत नदी पर बना पुल, जो अब भी मौजूद है, इसका प्रमुख तकनीकी उदाहरण है।
द्वितीय चरण: छोटी लाइन (1911)
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दूसरे चरण में जिले में छोटी लाइन बिछाई गई जिसका संचालन कुमायूं-रुहेलखंड रेलवे कंपनी करती थी। इसका मुख्यालय बरेली के इज्जतनगर में था। यह रेल लाइन 1911 में शुरू हुई और इसकी लंबाई 89 किमी थी। योजना के अनुसार यह बरेली से पीलीभीत होते हुए रोजा और सीतापुर के रास्ते बिहार तक जानी थी। रोजा-सीतापुर लाइन 1921 तक अस्तित्व में आ गई थी। यह लाइन शहर के पश्चिमी छोर को जोड़ते हुए केरूगंज तक जाती थी, जहां एक लाल कोठरी में टिकटघर हुआ करता था। इसी रेल मार्ग से ऑस्ट्रेलिया के इयान मेनिंग शाहजहांपुर आए थे, जिनकी यात्रा डायरी से तत्कालीन शहर की झलक मिलती है।
बरेली स्टेट रेलवे के अंतर्गत तीसरे चरण में अप्रैल 1891 में रेल लाइन का उद्घाटन हुआ, जो जिले के उत्तरी छोर से गुजरती थी। यह लखीमपुर खीरी, लखनऊ होते हुए बिहार तक जाती थी। इसका प्रमुख उद्देश्य सामरिक था, साथ ही घने जंगलों से लकड़ी का परिवहन भी सुगम हुआ। इस मार्ग पर सेहरामऊ और जीगराजपुर जैसे स्टेशन प्रमुख थे।
स्टीम ट्राम वे (1890)
शाहजहांपुर की स्टीम ट्राम वे, जिसे पुवाया लाइट रेल भी कहा जाता है, का शुभारंभ जून 1890 में हुआ। इसका उद्देश्य बरेली स्टेट रेल को अवध-रुहेलखंड लाइन से जोड़ना था। इस परियोजना में कंस कंपनी और स्थानीय व्यापारियों द्वारा कुल चार लाख रुपए का निवेश किया गया था। इसे एरिक गैजेड नामक अभियंता ने बिछाया था। इस रेल से लकड़ी की ढुलाई होती थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान (1914) अंग्रेजों ने इसकी पटरियाँ उखाड़कर युद्ध के लिए भेज दीं। 1922 में एक नई लाइन बिछाने की योजना पर काम शुरू हुआ।
शाहजहांपुर के रेलवे इतिहास से जुड़ी तस्वीरें लंदन की लाइब्रेरी में संरक्षित हैं, जिन्हें भारत लाने के प्रयास जारी हैं।