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बच्चों को ताइक्वांडो सिखाते डॉ. पुनीत मनीषी Photograph: (वाईवीएन संवाददाता )
शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता
आम बोलचाल में आत्मरक्षा को लोग मार्शल आर्ट के रूप में जानते हैं। आज आत्मरक्षा की कला संसार में जितनी भी प्रकार की हैं वह सभी एक खेल के रूप में भी विकसित हो चुकी है जिनको सीखने से आत्मरक्षा तो कर ही सकते हैं लेकिन साथ ही साथ खेल के माध्यम से अपनी शारीरिक व मानसिक मजबूती भी देखने को मिलती है। आज विश्व में सबसे बड़े स्तर पर आत्मरक्षा के खेल के रूप में 206 देश में ताइक्वांडो मार्शल आर्ट सीखी जाती है, ताइक्वांडो एक कोरियाई मार्शल आर्ट है जो बीसवीं सदी के मध्य में उभरा और बाद में दुनिया में सबसे व्यापक रूप से प्रचलित मार्शल आर्ट में से एक बन गया। इस कला की विशेषता शक्तिशाली किक के वार और हाथ का प्रयोग हैं, जिनका उपयोग निहत्थे आत्मरक्षा या युद्ध के लिए या ओलंपिक खेलों जैसे संगठित खेल प्रतियोगिताओं में किया जाता है। यहां पर हम यह भी समझते हैं की सामने वाले से अपनी किस रूप में आत्मरक्षा करना है। व्यक्ति यह नहीं जानता कि आत्मरक्षा व्यक्तियों का अधिकार है, कि वे किसी बल का पर्याप्त मात्रा में प्रतिकार करके खुद को नुकसान से बचा सकें। आत्मरक्षा किसी हमले से खुद को बचाने की प्रक्रिया है। आमतौर पर हमलावर को दर्द, चोट या मौत देकर खुद को बचाने के लिए किया गया प्रयास आत्मरक्षा के रूप में जाना जाता है। बहुत से लोग आत्मरक्षा करने के तरीके के बारे में जानते ही नहीं हैं कि सामने से हुए हमले से किस तरह वह अपनी सुरक्षा कर सकते हैं। आत्मरक्षा भी कानून पर आधारित है जो व्यक्तियों को उन स्थितियों में हमलावरों के संभावित हानिकारक हमलों का प्रतिकार करने की अनुमति देता है, जिनके बारे में उन्हें लगता है कि इससे गंभीर चोट या मौत हो सकती है।
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हम आत्मरक्षा को कई तरीके से देख सकते हैं। मार्शल आर्ट की भाषा में बिना हथियार अपनी सुरक्षा करना आत्मरक्षा में आता है। आत्मरक्षा की बात करें तो जब से मनुष्य का जन्म हुआ है तब से मनुष्य को अपनी सुरक्षा की आवश्यकता पड़ी है तो मनुष्य ने किसी न किसी रूप में अपने को कभी जानवरों से या कभी आतंकियों से जिनसे उन्हें डर था बचाने के लिए किसी न किसी आत्मरक्षा की कला का प्रयोग किया है। उदाहरण के तौर पर जब बौद्ध धर्म पूरे विश्व में फैल रहा था तो बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा तमाम आत्मरक्षा की कलाओं का जन्म हुआ जो आज पूरे विश्व में मौजूद है और किसी न किसी रूप में लोगों ने सीख रहे हैं पूरे विश्व में वह जहां-जहां गए वहां उनके साथ आत्मरक्षा की कला पहुंची और उसे देश ने उसमें अपने तरीकों को शामिल कर एक नाम दिया और उसे नाम कि कल को आज पूरे विश्व में वह देश सीख रहा है जैसे चीन में जूडो, कोरिया में ताइक्वांडो, थाईलैंड में मुयथाई, वियतनाम में वोवीनाम इत्यादि कलाएं चल रही है । भारत में सबसे पुरानी आत्मरक्षा की कला के रूप में अगर हम देखें तो क्लियर पट्टू 5000 साल पुरानी कला के रूप में आत्मरक्षा की कला आती है।
आज के समय में आत्म सुरक्षा की जरूरत...
वर्तमान समय में जिस तरह आपराधिक मामले बढ़ते चले जा रहे हैं आए दिन होने वाली तमाम घटनाओं में तेजी आई है। उसको देखते हुए समाज में रह रहे हैं प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी रूप में आत्मरक्षा कि कल का ज्ञान होना अति आवश्यक है बहुत से लोग अपने साथ सुरक्षा के लिए किसी न किसी प्रकार का हथियार भी रखते हैं लेकिन यहां पर कहा जाएगा कि जब आप खतरे को जान पाएंगे और अपना हथियार चलाने के लिए निकलेंगे या उठाएंगे तब तक जो व्यक्ति आप पर हमला करने आया है वह इंतजार नहीं करेगा ऐसे समय के लिए आत्मरक्षा की कलाओं का ज्ञान होना बेहद जरूरी है। यहां पर यह भी कहना उचित है कि आज समाज में हमारी माताओं, बहनों, बेटियों को इस कला का ज्ञान करवाना हर व्यक्ति के लिए जरूरी है क्योंकि हमारे घर से बेटियां स्कूल पढ़ने के लिए जाती है रास्ते में कहां पर किस प्रकार की घटना घटित हो किस प्रकार का व्यक्ति बेटियों को मिले यह हम नहीं जान सकते हैं, और आज आधुनिकता के दौड़ में यह नहीं समझ पाती है कि हमें अपनी आत्मरक्षा की जरूरत कहां पर है तो उनको इसका ज्ञान देना भी जरूरी है और प्रशिक्षण भी जरूरी है।
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आत्मरक्षा के तीन प्रमुख तत्व हैं
1. आसन्न खतरा - खतरे का खतरा तुरंत मौजूद होना चाहिए।
2. हानि का उचित भय - प्रतिवादी को हमलावर से हानि या मृत्यु का उचित भय होना चाहिए।
3. आनुपातिक प्रतिक्रिया - रक्षा प्रतिक्रिया आक्रामकता के आनुपातिक होनी चाहिए।
आत्मरक्षा क्या है
आत्मरक्षा समाज में रहने वाले हर व्यक्ति का अधिकार है, कि वे किसी बल का पर्याप्त मात्रा में प्रतिकार करके खुद को उससे होने वाले नुकसान से बचा सकें। आत्मरक्षा अक्सर कार्यों के औचित्य पर आधारित होती है, और कुछ देशों जैसे कि यूएसए, यूके, जापान और बेल्जियम के लिए, इसे वैधानिक कानून के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उदाहरण के लिए, हत्या को आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता है यदि अपराधी को उचित रूप से यह दृढ़ विश्वास हो कि वे हमलावरों से मृत्यु या गंभीर हिंसा, हमला और/या मारपीट के आसन्न खतरे में हैं और यदि उन जोखिमों से बचने के लिए हत्या करना आवश्यक समझा जाता है। न्यायोचित आत्मरक्षा परिदृश्यों के तहत हत्या करने के लिए अभियोजित प्रतिवादियों को बरी किया जा सकता है। उनके मामले को पहले डिग्री से घटाकर दूसरे या तीसरे डिग्री में घटाया जा सकता है या हत्या में घटाया जा सकता है।
आत्मरक्षा का उद्देश्य पूर्ण ढंग से अपने साथ ही साथ समाज में रह रहे व्यक्तियों और उनके स्वास्थ्य , कल्याण की रक्षा करना है। आत्मरक्षा की कला किसी को खतरनाक स्थितियों से निपटने और संभावित शारीरिक हमलों से बचने में सक्षम बनाता है। ऐसा माना जाता है की जो व्यक्ति अपनी सुरक्षा करने में सक्षम होता है जिसने भी किसी प्रकार की मार्शल आर्ट को सीखा है वह व्यक्ति अपने होने वाले किसी भी प्रकार के तात्कालिक खतरे गंभीर चोट लगने या अपनी जान जाने की स्थिति का आकलन करने के पश्चात एक उचित बचाव से उस खतरे का आनुपातिक रूप से जवाब देते हैं। जवाब देने की स्थिति में अगर हमलावर का किसी भी प्रकार का शारीरिक नुकसान होता है तो उसके लिए जो व्यक्ति अपनी आत्मरक्षा कर रहा है वह उत्तरदायित्व नहीं होता है आज समाज में इसकी आवश्यकता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जागरूकता ही बढ़ रही है लेकिन अतिशयोक्ति नहीं है की अभी भी ऐसी कलाओं से लोग दूर है वह इसको समझ नहीं पा रहे हैं कि इसके सीखने से आत्मरक्षा के साथ-साथ शारीरिक व मानसिक रूप से वे कितने मजबूत हो सकते हैं क्योंकि आत्मरक्षा सीखने वाला व्यक्ति केवल शारीरिक रूप से ही नहीं मानसिक रूप से भी मजबूत हो जाता है और हर स्थिति में निपटने के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों पहलुओं की आवश्यकता होती है।
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आत्मरक्षा मार्शल आर्ट क्या है?
आत्मरक्षा की आवश्यकता के कारण विकसित होने के बावजूद ताइक्वांडो आत्म-अनुशासन और खेल कौशल पर केंद्रित एक मार्शल आर्ट के रूप में विकसित हुआ है। कहा जाता है कि कुंग फू की चीनी कला को शुरू में शिकार के उद्देश्य से जानवरों के खिलाफ आत्मरक्षा पद्धति के रूप में विकसित किया गया था।
क्या आत्मरक्षा को कानूनी मान्यता प्रदान है...?
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 96 में कहा गया है कि "कोई भी कार्य अपराध नहीं है, जो निजी प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में किया जाता है", जबकि धारा 97 में कहा गया है कि "प्रत्येक व्यक्ति को मानव शरीर, संपत्ति को प्रभावित करने वाले किसी भी अपराध के खिलाफ अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की रक्षा करने का अधिकार है।" किसी भी ऐसे अपराध के विरुद्ध जो मानव शरीर, संपत्ति, चाहे वह चल हो या अचल, स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति की हो, किसी भी ऐसे कार्य के विरुद्ध जो चोरी, डकैती, शरारत या आपराधिक अतिचार की परिभाषा के अंतर्गत आने वाला अपराध है, इसका अर्थ यह है कि किसी भी व्यक्ति को अपने स्वयं के जीवन या संपत्ति या किसी अन्य के खिलाफ आत्मरक्षा के कार्य द्वारा किए गए किसी भी नुकसान के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। भारतीय और सामान्य कानून के अनुसार, ऐसी कोई आवश्यकता नहीं है कि किसी अन्य व्यक्ति के जीवन या संपत्ति के खिलाफ निजी प्रतिरक्षा के प्रयोग में, प्रतिवादी का उस व्यक्ति के साथ कोई संबंध होना चाहिए जिसे उसने बचाया है। आईपीसी दंड संहिता की धारा 96 से 106 व्यक्तियों और संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार से संबंधित कानून में आती है।
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आत्मरक्षा आवश्यकताएँ....
आत्मरक्षा का अधिकार (right of self-defense) का अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन की रक्षा करने के लिए युक्तियुक्त (रीजनेबल) बल का उपयोग कर सकता है। कानूनी दृष्टि से, किसी तीसरे व्यक्ति के जीवन की रक्षा करने के लिए युक्तियुक्त बल का प्रयोग भी 'आत्मरक्षा' ही है। कुछ परिस्थितियों में, आत्मरक्षा के लिए आक्रमणकारी पर जानलेवा बल का भी प्रयोग करने का अधिकार है।
हम सभी को समय-समय पर अपने कार्य क्षेत्रों या अन्य जगहों पर चीजों को उचित ठहराना पड़ता है, चाहे वह खुद के लिए हो या दूसरों के लिए। शायद हमें खाने के अंत तक हो या किसी फिल्म का अंत देखने के लिए देर तक जागने के लिए उचित ठहराना पड़ा हो। जब हम किसी चीज को उचित ठहराते हैं, तो हम यह तर्क दे रहे होते हैं कि कुछ करना ठीक है। लेकिन आपराधिक कानून में, ऐसे बहुत कम तरीके हैं जिनसे बल प्रयोग, यहाँ तक कि घातक बल का प्रयोग, उचित ठहराया जा सकता है या कानून के तहत अधिकार के रूप में देखा जा सकता है। आत्मरक्षा स्वयं को नुकसान से बचाने के लिए बल का उचित उपयोग है। आत्मरक्षा का आह्वान करने वाला व्यक्ति उस स्थिति में हमलावर नहीं होना चाहिए जिसके कारण उसे खुद का बचाव करने की आवश्यकता पड़ी। जबकि आत्मरक्षा की अवधारणा बहुत सीधी लग सकती है, ध्यान देने वाली मुख्य बातें यह हैं कि कोई व्यक्ति कानून के तहत कब, कैसे और कहाँ अपना बचाव उचित रूप से कर सकता है या की रहा है। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति अपनी आत्मरक्षा के समय किसी अन्य व्यक्ति की हत्या हो जाती है तो उस को उचित ठहराने के लिए आत्मरक्षा का सहारा लेता है, तो यह उसको कानून में बताना होगा कि उस को किस प्रकार अपनी जान का खतरा था और उस ने अपनी आत्मरक्षा के लिए क्या किया।
इसके अतिरिक्त, अपने बचाव के लिए बल का प्रयोग करना न्यायोचित ठहराने के लिए, किसी से नुकसान पहुंचने का भय उचित होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि एक उचित और विवेकशील व्यक्ति खतरे को वास्तविक मानेगा। तभी आप आत्मरक्षा को सही रूप में साबित कर पाएंगे। महिलाओं को कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ता है, और उन्हें अपनी सुरक्षा, सशक्तीकरण और संभावित हमलावरों को रोकने या उनका मुकाबला करने की क्षमता बढ़ाने के लिए आत्मरक्षा की आवश्यकता होती है।
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ग्रैंडमास्टर डॉ.पुनीत 'मनीषी'
4th डॉन ब्लैक बेल्ट कोरिया
अंतरराष्ट्रीय ताइक्वांडो खिलाड़ी, कोच व रैफरी
महासचिव - मनीषी ताइक्वांडो वेलफेयर एसोसिएशन उ.प्र.