शाहजहांपुर के इस मंदिर का रहस्यमयी इतिहासः कपाट बंद, छह माह को मंदिर में विराजीं माता रानी, पुजारी ही लगाएंगे भोग और करेंगे पूजा
शाहजहांपुर के इस मंदिर का रहस्यमयी इतिहास है। शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में तीन तीन दिन के लिए मंदिर खुलता है। मेला लगता है, देशभर के श्रद्धालु जुटते हैं और कपाट बंद हो जाते हैं। इसके बाद पुजारी को ही भोग लगाने व पूजा करने का अधिकार है।
शाहजहांपुर जनपद के इस रहस्यमयी मंदिर के कपाट चैत्र नवरात्र में तीन दिन पूजा-दर्शन के बाद बुधवार को बंद हो गए। अब यह मंदिर शारदीय नवरात्र के अंतिम तीन दिनों में खुलेगा। यानी एक साल में तीन-तीन दिन के लिए दोनों नवरात्र में मंदिर खुलता है, माता रानी की पूजा होती है। मेला लगता है और देशभर के कई राज्यों और शहरों के श्रद्धालु पूजा करने आते हैं। मन्नतें मांगते हैं। पौराणिक मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह पांच सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है। मुख्य यजमान की आठवीं पीढ़ी मंदिर की सेवा में लगी है। साल में छह दिन के अलावा इस मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। मातारानी का भोग मंदिर के पुजारी लगाते हैं वही पूजा करते हैं। इस बार मंदिर के कपाट नवरात्र के बाद दशमी तिथि को खुले थे। बुधवार को देर रात कपाट बंद हो गए। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना की। मंदिर में मन्नतें पूरी होने वाले श्रद्धालुओं ने यथेष्ट दान पुण्य किया। तीन दिन कुर्रिया कलां में मंदिर के कपाट खुलने की वजह से मेला भी लगा रहा।
अष्टधातु की है मूर्ति, मंदिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित
शाहजहांपुर के कुर्रियाकलां में माता का दरबार। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क )
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कुर्रियाकलां मंदिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। भक्तों का कहना है कि इस मंदिर में विराजमान भगवान भोलेनाथ की मूर्ति जिसे जोधपुर राजघराने के राजा ने अपनी रानी के लिए अष्टधातु से निर्मित कराया था। मुख्य पुजारी का कहना है कि उनकी आठवीं पीढ़ी के बाबा पंडिच सहताऊन लाल प्रकांड विद्वान थे। जोकि जयपुर-जोधपुर राजघराने के संपर्क में आए। जिस मूर्ति को राजा ने बनवाया था उसे उन्होंने मांगा था। लेकिन राजा ने एक शर्त रख दी, अगर इस मूर्ति को आप हंसा दोगे तो यह आप ले जा सकते हैं। पंडित ने प्राण प्रतिष्ठा करके मूर्ति को हंसाया गया। जिससे प्रसन्न होकर राजा ने मूर्ति पंडित जी को दे दी। जिसका स्थापना वर्तमान में महिषमर्दिनी के साथ दरबार में विराजमान है। लोगों में यह कथा भी प्रचलित है कि पूर्व में इस मंदिर के कपाट स्वयं ही खुलते थे औऱ स्वयं ही तीसरे दिन बंद होते थे। यहां आज भी नवरात्र के अगले दिन यानी दशमी तिथि को रात में ढोल नगाड़े बजाने के बाद मंदिर के कपाट माता को श्रृंगार के बाद खोल दिए जाते हैं।
कुर्रियांकलां मंदिर के गर्भ गृह में प्रतिष्ठापित मूर्तियां। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क )
मंदिर के तीन दिन के कपाट खुलने के दौरान श्रद्धालु माता रानी को प्रसाद के साथ ही श्रृंगार, चूड़ी चुनरी चढ़ाते हैं। इस मंदिर में माता रानी के साथ ही भोलेनाथ की हंसती हुई अष्टधातु की प्रतिमा के दर्शन के लिए श्रद्धालु आते हैं। कहते हैं जो मनमें मुराद लेकर इस दरबार में आता है उसकी मुराद पूरी होती है। मुराद पूरी होने पर श्रद्धालु दोबारा आते हैं और इच्छा के अनुसार दान पुण्य करके जाते हैं।
मंदिर के मुख्य यजमान मनुज दीक्षित कहते हैं कि माता रानी हमारी कुलदेवी हैं। हमारा समस्त परिवार इस मंदिर की देखरेख करता है। परिवार में चढ़ावे को लेकर कोई विघटन न हो, इसलिए चढ़ावा चढ़ाने पर मनाही है। मंदिर की इतनी मान्यता है कि लोग कोई नया काम शुरू करने के लिए मंदिर के खुलने के लिए छह माह का इंतजार करते हैं।