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UPSC Result 2024ः हाथों से पत्थर तोड़कर गढ़ा बेटे का भविष्य, बना आईपीएस

बच्चों का भविष्य बनाने के लिए सड़क किनारे हाथों से पत्थर तोड़े तो कभी अनाज की बोरियों को उठाकर पल्लेदारी की। मजदूरी करके और लकड़ियां बीनकर बेचीं। अब छोटा बेटा यूपीएससी में चयनित होने के बाद आईपीएस बन गया है।

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Akhilesh Sharma
शाहजहांपुर

हाजी तसब्बुर हुसैन और आईपीएस बना बेटा शकील मंसूरी Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता

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हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जनपद में उपनगर तिलहर की। यहां के हाजी तसब्बुर हुसैन के बेटे शकील अहमद मंसूरी ने यूपीएससी की परीक्षा 506वीं रैंक के साथ पास की है। शकील अब  आईपीएस बनकर देश की सेवा करेंगे। पूरे परिवार में खुशी की लहर है। लेकिन शकील के आईपीएस बनने के पीछे उनके पिता के संघर्ष की बहुत बड़ी कहानी छिपी हुई है। यह कहानी यंग भारत न्यूज को विशेष बातचीत में सुनाते हुए हाजी तसब्बुर हुसैन की आंखें भर आईं और भावुक हो उठे। 

शकील अहमद के यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा पास करने के बाद जब हम तिलहर स्थित मोहल्ला इमली में उनके आवास पर पहुंचे तो पूरा परिवार खुशियां मना रहा था। लोग घर बधाई देने पहुंच रहे थे। इसी बीच शकील के पिता हाजी तसब्बुर हुसैन ने बताया कि बच्चों को पढ़ाकर आईपीएस बनाने का सपना देखा था। इसके लिए मैने बहुत संघर्ष किया। मेरे सभी बच्चे पढ़-लिखकर कामयाब तो हुए लेकिन सबसे छोटे बेटे शकील अहमद ने आईपीएस बनकर मेरा सपना पूरा कर दिया। 

फर्श से अर्श पर पहुंचा तसब्बुर हुसैन का परिवार

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हाजी तस्सबुर हुसैन कहते हैं कि हमारा परिवार बहुत गरीब था। कहते हैं कि मैं बिना पढ़ा-लिखा अंगूठा टेक हूं। बचपन से ही मेहनत मजदूरी करता था। गरीबी में ही मेरी शादी हुई। शादी में बरात गई तो मेरी बरात बैलगाड़ियों से गई। गरीबी इतनी थी कि बरातियों को खाना खिलाने के बजाए शर्बत पिलाकर विदा किया गया। वो संघर्षों के दिन हम कभी नहीं भुला सकते। मैने ठान लिया था कि सभी बच्चों को पढ़ाना है। धीरे-धीरे मेहनत के बल पर हमने अपना परिवार खड़ा किया और आज हमारे पास कोई कमी नहीं है। 

पत्थर तोड़ने की मजदूरी 14 दिन के मिलते थे 28 रुपये

हाजी तसब्बुर हुसैन कहते हैं शादी होने के बाद हमने बहुत दिनों तक सड़क किनारे पत्थर तोड़े। 14 दिन काम करते थे तो 28 रुपये मिलते थे। खाना बनाने को लकड़ी नहीं मिलती थी तो रबड़ जलाकर उस पर भी रोटियां पका कर खा लेते थे। इसके बाद पूरनपुर में एक गोदाम बनाने के लिए भी मजदूरी का ठेका लिया। कुछ रुपये इकट्ठा करके एक साइकिल खरीदी तो उस पर लकड़िया बीनकर लाते और बेच लेते थे। इससे कुछ रुपये मिले तो गल्ले का काम किया। इसमें पल्लेदारी भी खुद करनी पड़ती थी। छह बेटे हुए और तीन बेटियां हुईं। शुरू से ही बेटों को पढ़ाने के लिए कोशिश रही। छह बेटों में पांच पढ़े-लिखे लेकिन नौकरी में किसी की दिलचस्पी नहीं रही। बैटरी के कारोबार को सफलता के साथ कर रहे हैं। लेकिन मेरा सपना साकार करने के लिए शकील ने पढ़ने में पूरी मेहनत की। पांचों भाइयों ने शकील का सहयोग करके पढ़ाया। उस पर कभी किसी काम का दबाव नहीं डाला। मेरा सपना पूरा करने को मेरे पांच बेटों ने अपने छोटे भाई को पढ़ाने के लिए उसे कभी कोई दिक्कत महसूस नहीं होने दी। 

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हाजी तसब्बुर के हाथों में साफ दिखते हैं संघर्ष के निशान

हाजी तसब्बुर के हाथों में संघर्ष के निशान साफ दिखाई देते हैं। कैसे उन्होंने अपने बेटे का भविष्य गढ़ने के लिए संघर्ष किया। कहते हैं जब से बेटे ने फोन करके आईपीएस बनने की खबर दी है, बहुत खुशी है। ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया है। शुकराना पढ़कर नमाज अदा की है। मेरा यही कहना है कि हर किसी को कामयाबी मिले। 

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