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Air Pollution: कोयला संयंत्रों से निकलने वाला धुआं जानिए किन फसलों के लिए बन रहा काल

भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की एक बडी आबादी इस पर निर्भर है। तेजी बढता उद्योगीकरण फसलों के लिए खतरनाक होता जा रहा है। इससे देश को करोडाें का नुकसान हो रहा है।

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Suraj Kumar
KOYALA SMOKE DHAN GENHU
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नई दिल्‍ली,वाईबीएन नेटवर्क। 

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वायु प्रदूषण इंसानों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए खतरनाक होता है। इस बात से सभी ज्ञात हैं, लेकिन इससे हमारी खेती को भी काफी नुकसान पहुंच रहा है। कोयला संयंत्रों से निकलने वाला धुआं गेहूं और चावल की खेती को मुख्य रूप से प्रभावित करता है। हाल ही में किए गए एक अध्‍ययन से पता चला है कि कोयल के धुएं से कई राज्‍यों में गेहूं और धान की फसलों में 10 फीसदी तक की कमी आई है। 

हो रहा है भारी नुकसान 

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि विद्युत संयंत्र से 100 किलोमीटर की दूरी तक वायु प्रदूषण का फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उन्होंने अनुमान लगाया कि दोनों फसलों की उत्‍पादकता में कमी से हर साल लगभग 400‍ मिलियन डॉलर तक का नुकसान हो सकता है।  

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शोधकर्ताओं ने विस्तृत उत्पादन और पवन दिशा डेटा, तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और फसल उत्पादकता के उपग्रह माप का उपयोग करके कोयला बिजलीघरों के नाइट्रोजन डाइऑक्साइड उत्सर्जन से जुड़े चावल और गेहूं की उपज की हानि का आकलन किया।

इन राज्‍यों में अधिक नुकसान 

उन्होंने नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की कार्यवाही में बताया कि, "पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में, जो कोयले से जुड़ी नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के भारी संपर्क में हैं, वार्षिक उपज का नुकसान 10 प्रतिशत से अधिक है, जो 2011 और 2020 के बीच भारत में चावल और गेंहूं दोनों में लगभग छह साल औसत सालाना उपज में हुई बढोत्‍तरी के बराबर है।

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इन गैसों से फसलों पर पड़ता है प्रभाव 

कोयला संयंत्रों से निकलने वाले वायु प्रदूषण में धुंआ, सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), और कणों (particulate matter) के अलावा भारी धातुएं जैसे की आर्सेनिक और लीड भी होते हैं। 

इसके कई कारण होते हैं। 

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वातावरणीय परिवर्तन: कोयला संयंत्रों से निकलने वाली गैसों और धुएं से वायुमंडल में प्रदूषण बढ़ता है, जिससे हवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है। यह प्रदूषण फसलों के लिए हानिकारक होता है, क्योंकि इससे वातावरण में टेम्परेचर और आर्द्रता में बदलाव होता है।

पानी की गुणवत्ता में गिरावट: प्रदूषण के कारण जल स्रोतों में भी दूषित पदार्थ मिल सकते हैं, जिससे कृषि जल का उपयोग भी प्रभावित हो सकता है। इससे फसलों को जल की कमी या दूषित पानी मिल सकता है, जो उनकी वृद्धि को रोकता है।

फसलों की वृद्धि में रुकावट: सल्फर और नाइट्रोजन जैसे प्रदूषक फसलों की वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं। यह फसलों की पत्तियों और अन्य भागों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे उनकी समग्र उपज में कमी आती है।

मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट: प्रदूषण से मिट्टी में विभिन्न रसायनों का जमाव हो सकता है, जिससे उसकी उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है। इससे गेहूं और चावल जैसे प्रमुख खाद्यान्नों की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

इसलिए, कोयला आधारित संयंत्रों से होने वाले प्रदूषण को कम करना और अधिक पर्यावरण-friendly ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना कृषि उत्पादकता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
 

 

 

 

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