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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया है कि अग्रिम जमानत दिए जाने की शक्ति एक असाधारण अधिकार है और इसे सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में ही प्रयोग में लाया जाना चाहिए न कि सामान्य तौर पर। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा ने न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी निवासी आशीष कुमार की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए दी।
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पुरानी संपत्ति विवाद से जुड़ा है मामला
आशीष कुमार पर अपने चचेरे भाई पर हमले का आरोप है, जो कि एक पुराने संपत्ति विवाद से जुड़ा मामला है। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में अभियुक्त से पूछताछ और अपराध में प्रयुक्त हथियार की बरामदगी के लिए हिरासत में लेकर पूछताछ करना आवश्यक है। न्यायमूर्ति डुडेजा ने अपने आदेश में लिखा, "अग्रिम जमानत की शक्ति असाधारण है और इसे असाधारण मामलों में ही प्रयोग किया जाना चाहिए। सामान्य रूप से इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। कानून केवल उन्हीं लोगों की मदद करता है, जो स्वयं कानून का पालन करते हैं।
पुलिस जारी किए थे गैैर-जमानती वारंट
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याचिकाकर्ता आशीष कुमार की ओर से कोर्ट में यह दावा किया गया था कि उन्हें झूठे आरोपों में फंसाया गया है। याचिका में कहा गया कि संपत्ति को लेकर पहले से चले आ रहे विवाद के कारण उनके और शिकायतकर्ता के परिवार के बीच तनाव था। याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि जब वे जांच में शामिल नहीं हुए तो पुलिस ने उनके खिलाफ ग़ैर-जमानती वारंट जारी कर दिए। कोर्ट ने इस मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा दायर स्थिति रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि शिकायतकर्ता को चोटें आई थीं, हालांकि ये चोटें सामान्य प्रकृति की थीं और उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी। फिर भी न्यायालय ने माना कि मामले की निष्पक्ष जांच के लिए आशीष कुमार की हिरासत में पूछताछ जरूरी है, विशेषकर अपराध में प्रयुक्त हथियार की बरामदगी के लिए।
झड़प में उन्हें और उनकी मां को भी चोटें आईं
याचिका में यह भी तर्क दिया गया था कि घटना की शुरुआत शिकायतकर्ता ने की थी जो बिना किसी सहमति के विवादित संपत्ति पर अवैध रूप से रसोई का निर्माण कर रहा था। याचिकाकर्ता के अनुसार जब उन्होंने इसका विरोध किया तो शिकायतकर्ता ने उनके भाई पर हमला कर दिया। आशीष कुमार ने यह भी दावा किया कि इस झड़प में उन्हें और उनकी मां को भी चोटें आईं, लेकिन शिकायतकर्ता के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई। हालांकि, कोर्ट ने इन दावों के बावजूद याचिकाकर्ता को राहत देने से इनकार कर दिया और साफ किया कि अग्रिम जमानत का लाभ केवल उन्हीं मामलों में दिया जा सकता है, जहां परिस्थितियाँ वास्तव में असाधारण हों। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि कानून के दायरे में रहकर ही न्याय की अपेक्षा की जा सकती है। Delhi high court
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