नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। क्या हो अगर किसी अपराधी को जेल की सलाखों के पीछे भेजने की बजाय समाज सेवा करने को कहा जाए? भारत के एक प्रदेश में जल्द ही ऐसी व्यवस्था लागू होने जा रही है। यह सिस्टम लागू होने के बाद अपराधी जेल नहीं जाएंगे, ना जुर्माना भरेंगे, बल्कि समाज के लिए कुछ अच्छा करने को मजबूर होंगे। हालांकि, यह व्यवस्था सिर्फ छोटे-मोटे अपराध करने वाले अपराधियों के लिए ही लागू होगी। यह नया सिस्टम राधानी दिल्ली में लागू होने जा रहा है।
राजधानी दिल्ली में अनोखी सजा का सिस्टम
राजधानी दिल्ली में छोटे-मोटे अपराध करने वालों को अब जेल या जुर्माने की बजाय समाज सेवा की सजा दी जा सकती है। दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने इसके लिए 12 तरह की कम्युनिटी सर्विस को अधिसूचित किया है। यह नई व्यवस्था भारतीय न्याय संहिता, 2023 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत जुलाई 2024 से लागू की जाएगी।
40 घंटे से 240 घंटे तक की सजा
यह पहल दिल्ली हाई कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप की गई है और इसका मकसद पुनर्वासात्मक न्याय प्रणाली को बढ़ावा देना है। सजा की अवधि एक दिन से 31 दिन या 40 घंटे से 240 घंटे तक हो सकती है। हालांकि, अदालत यह तय करने के लिए स्वतंत्र होगी कि किस मामले में समाज सेवा की सजा दी जाए और किसमें नहीं।
कौनसे अपराध पर मिलेगी समाज सेवा की सजा?
इन अपराधों में आत्महत्या की कोशिश (धारा 226), सरकारी कर्मचारी द्वारा अवैध व्यापार (धारा 202), पेशी से गैर-हाजिरी (धारा 209), 5000 रुपये से कम की चोरी (धारा 303(2)), सार्वजनिक जगह पर शराब पीकर हंगामा (धारा 355), और मानहानि (धारा 356(2)) जैसे मामले शामिल हैं। गृह विभाग के अनुसार, इस नई प्रणाली से जहां अपराधियों को सुधारने का मौका मिलेगा, वहीं समाज को भी प्रत्यक्ष रूप से फायदा होगा।
सजा के रूप में मिलेंगे ये काम
- अस्पतालों और उनके आस-पास की सफाई
- सड़कों के किनारे घास काटना
- सार्वजनिक पार्कों की सफाई
- पुस्तकालयों में किताबों की व्यवस्था और मरम्मत
- सरकारी स्कूलों में रंगाई-पुताई में सहयोग
- वृद्धाश्रम व अनाथालयों में सेवा
- पौधरोपण
- सामुदायिक रसोई में सहयोग
- ट्रैफिक पुलिस की मदद
- जल वितरण केंद्रों पर सहायता
- सरकारी भवनों की सफाई
- सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सहयोग
इस पहल से क्या फायदा होगा?
इस नई पहल से न्यायिक व्यवस्था में एक मानवीय दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जहां अपराधियों को दंडित करने के बजाय उन्हें समाज के साथ जोड़कर उनके व्यवहार में सकारात्मक बदलाव लाने पर जोर दिया जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि कम गंभीर अपराधों के लिए इस प्रकार की सजा न केवल अदालतों के बोझ को कम करेगी, बल्कि अपराध दर को घटाने में भी मददगार साबित हो सकती है। इसके साथ ही दोषियों को समाज की भलाई में योगदान देने का अवसर मिलेगा, जिससे उनमें जिम्मेदारी और आत्मगौरव की भावना विकसित होगी। delhi