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दिल्ली धधक रही है, सिस्टम सो रहा है? कौन है आग की बढ़ती घटनाओं का जिम्मेदार

दिल्ली में लगातार बढ़ रही आग लगने की घटनाओं को लेकर NDMA के पूर्व निदेशक डॉ. सतेंद्र ने राजधानी की अग्नि सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं।

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Pratiksha Parashar
DELHI FIRE

प्रतीकात्मक तस्वीर, META AI

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कदिल्ली में आग लगने की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रहीं। रिहायशी अपार्टमेंट्स से लेकर बाजारों और व्यावसायिक परिसरों तक, एक के बाद एक हो रहे हादसों ने राजधानी की अग्नि सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस लगातार बिगड़ती स्थिति को लेकर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के पूर्व कार्यकारी निदेशक और भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. सतेंद्र (IFS) ने चिंता जताई है। उन्होंने हाल ही में राजधानी में हुई त्रासदियों का ज़िक्र करते हुए दिल्ली प्रशासन की तैयारियों और आम जनता की जागरूकता की कमी दोनों पर तीखा सवाल उठाया है। उन्होंने ऐसे हादसों से बचने के लिए कुछ सुझाव भी दिए हैं। 

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दिल्ली के द्वारका में आग

10 जून को दिल्ली के द्वारका क्षेत्र में स्थित एक आवासीय अपार्टमेंट में भीषण आग लग गई, जिसमें तीन लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। यह हादसा राजधानी में बढ़ती अग्निकांडों की श्रृंखला की एक और कड़ी बन गया है। अब ये घटनाएं अपवाद नहीं रहीं, बल्कि एक सामान्य होती जा रही स्थिति का प्रतीक बन चुकी हैं।

नियंत्रण करने में हम असफल हो रहे हैं

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दिल्ली के इतिहास में ऐसी घटनाएं लगातार घटती रही हैं। कभी भीड़भाड़ वाले बाज़ारों में, तो कभी अस्पतालों और व्यावसायिक इमारतों में। सुरक्षा नियमों और तमाम एजेंसियों की मौजूदगी के बावजूद, आग से जुड़ी घटनाओं पर नियंत्रण पाने में हम लगातार असफल हो रहे हैं।

आग से 43 मजदूरों की मौत

2019 में उत्तर दिल्ली के अनाज मंडी की एक अवैध फैक्ट्री में आग से 43 मज़दूरों की मौत हो गई थी, जबकि 2022 में चांदनी चौक स्थित ऐतिहासिक भगीरथ पैलेस की आग ने दर्जनों दुकानों और इमारतों को तहस-नहस कर दिया। करोल बाग का होटल अर्पित पैलेस भी इसी तरह की लापरवाही का शिकार हुआ, जहां सुरक्षा उपायों की कमी से 17 लोग अपनी जान गंवा बैठे। ऐसे हादसे उत्तम नगर जैसे रिहायशी इलाकों में भी हो चुके हैं, जहाँ मामूली शॉर्ट-सर्किट जानलेवा साबित हुए। हर बार दुर्घटना के बाद जांच और कार्रवाई की बात की जाती है, लेकिन जैसे ही समय बीतता है, सब कुछ फिर पुरानी लय में लौट आता है। यह कोई नियमों की कमी नहीं, बल्कि उनके क्रियान्वयन की विफलता है।

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गलती किसकी है?

भारत के पास 'नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया' जैसे व्यापक दिशा-निर्देश हैं, जो निकासी मार्ग, अलार्म, फायर फाइटिंग सिस्टम और आपातकालीन सीढ़ियों को अनिवार्य करते हैं। दिल्ली फायर सर्विस अधिनियम और संशोधित दिल्ली बिल्डिंग बाईलॉज भी अग्नि सुरक्षा को लेकर सख्त प्रावधान करते हैं। इसके अलावा NDMA और आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने भी शहर नियोजन में अग्नि सुरक्षा के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए हैं। इस व्यवस्था को लागू करने की जिम्मेदारी दिल्ली फायर सर्विस, नगर निगम, दिल्ली विकास प्राधिकरण, पुलिस, जिला प्रशासन और आरडब्ल्यूए जैसी संस्थाओं पर है। लेकिन व्यवहारिक रूप से यह तंत्र कमजोर पड़ा है।

अलार्म काम नहीं करते, दमकल नहीं पहुंच पाती

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पुराने और अवैध निर्माणों में फायर सेफ्टी की अनुमति या तो ली ही नहीं जाती या फिर केवल कागज़ी कार्यवाही तक सीमित रहती है। कई इमारतों में आपातकालीन निकासी रास्ते या तो अवरुद्ध होते हैं या मौजूद ही नहीं होते। अलार्म काम नहीं करते और सीढ़ियों पर ज्वलनशील सामग्री पड़ी रहती है। संकरी गलियों की वजह से दमकल गाड़ियाँ समय पर घटनास्थल तक नहीं पहुंच पातीं।

फायर सेफ्टी को लेकर आम जनता भी गंभीर नहीं

साथ ही, आम जनता में भी फायर सेफ्टी को लेकर गंभीरता का अभाव है। अधिकतर लोग न तो फायर एक्सटिंग्विशर का सही उपयोग जानते हैं, न ही निकासी योजना से परिचित होते हैं। फायर ड्रिल या प्रशिक्षण जैसी चीजें बहुत ही कम देखी जाती हैं। इस लापरवाही का परिणाम न सिर्फ जान-माल की हानि के रूप में सामने आता है, बल्कि इससे समाज में सिस्टम के प्रति अविश्वास भी पैदा होता है। व्यापारिक नुकसान, मानसिक आघात और बेघर हो जाने जैसी स्थितियां उन लोगों की ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल देती हैं।

प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित घटना

यह विडंबना ही है कि ये घटनाएं प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवनिर्मित होती हैं और इन्हें पूरी तरह से टाला जा सकता है। इसके लिए कुछ ठोस और तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। डॉ. सतेंद्र ने ऐसी घटनाओं से बचने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं...

कानूनों का सख्त पालन: फायर सेफ्टी ऑडिट नियमित और बिना पूर्व सूचना के होनी चाहिए। एनओसी और निरीक्षण की जानकारी ऑनलाइन सार्वजनिक की जाए। नियमों के उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई हो।

अधिकारी जवाबदेह हों: जो अधिकारी अवैध निर्माण की अनुमति देते हैं या सुरक्षा में लापरवाही बरतते हैं, उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाए।

तकनीक का इस्तेमाल: सभी बहुमंज़िला इमारतों में फायर अलार्म, स्मोक डिटेक्टर और स्प्रिंकलर सिस्टम अनिवार्य किए जाएं। फायर सेफ्टी से जुड़ी सुविधाओं को बीमा या संपत्ति कर में रियायत से जोड़ा जाए।

जनजागरूकता अभियान: स्कूलों, कॉलेजों और कॉलोनियों में फायर सेफ्टी की शिक्षा दी जाए। आरडब्ल्यूए और स्थानीय संघ फायर ड्रिल और ट्रेनिंग आयोजित करें।

शहरी नियोजन में सुधार: पुराने इलाकों का पुनर्विकास करते समय गलियों को चौड़ा किया जाए, जल स्रोत और आपातकालीन मार्ग सुनिश्चित किए जाएं। अवैध निर्माणों को नियमित करने के साथ सुरक्षा मानकों में लाया जाए।

दिल्ली को उदाहरण बनना चाहिए

डॉ. सतेंद्र ने लिखा कि दिल्ली को इस दिशा में उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। आग की घटनाएं सिर्फ शहरी प्रबंधन की समस्या नहीं हैं, बल्कि यह जीवन और मृत्यु का सवाल है। हर घटना एक चेतावनी है, सिर्फ खबर नहीं। द्वारका की हालिया त्रासदी फिर याद दिला रही है कि अगर हमने तत्काल और ठोस कार्रवाई नहीं की, तो ऐसी मौतें सिलसिलेवार होती रहेंगी। अब वक्त है कि हम अग्नि सुरक्षा को गंभीरता से लें और एक ऐसी संस्कृति बनाएं जिसमें रोकथाम, तैयारी और जवाबदेही हो, क्योंकि चुप्पी और लापरवाही की कीमत जान से चुकानी पड़ती है।  delhi news | Fire accident | fire alert 

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