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दिल्ली की जहरीली हवा को लेकर माताओं ने उठाई आवाज, हाईकोर्ट में सुनवाई बुधवार को

‘वॉरियर मॉम्स’समूह का कहना है कि दिल्ली की हवा अब एक स्थायी और रोके ना जा सकने वाली समस्या बन चुकी है, जो बच्चों के जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है।

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Mukesh Pandit
Delhi Pollution

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।माताओं के एक समूह ‘वॉरियर मॉम्स’ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से दिल्ली की जहरीली हवा के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेकर तुरंत कार्रवाई करने का आग्रह किया है। समूह का कहना है कि दिल्ली की हवा अब एक स्थायी और रोके ना जा सकने वाली समस्या बन चुकी है, जो बच्चों के जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है। उधर, दिल्ली हाई कोर्ट में राष्ट्रीय राजधानी में खतरनाक वायु प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाने के अनुरोध वाली एक याचिका पर बुधवार को सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि यह अनुरोध एक जनहित याचिका की प्रकृति का है, इसलिए इसकी सुनवाई जनहित याचिका रोस्टर वाली पीठ द्वारा की जानी चाहिए।

सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा का रूप ले चुकी है हवा

एनएचआरसी के एक सदस्य को सौंपे गए ज्ञापन में ‘वॉरियर मॉम्स’ ने चेतावनी दी कि अक्सर ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी के बीच रहने वाली शहर की वायु गुणवत्ता हर साल एक ऐसी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा का रूप ले रही है जो लाखों बच्चों में फेफड़ों और संज्ञानात्मक क्षमता को अपरिवर्तनीय नुकसान पहुंचा रही है। समूह ने कहा कि दिल्ली के बच्चे इस संकट का सबसे बड़ा बोझ उठा रहे हैं।

बढ़ते वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि हवा में मौजूद सूक्ष्म प्रदूषक कणों का संबंध दमा, श्वसन संक्रमण, फेफड़ों की क्षमता में कमी, बौनापन (स्टंटिंग), समय से पहले जन्म और बच्चों में संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट से जुड़ा है। स्थिति को सिर्फ पर्यावरणीय समस्या नहीं बल्कि अधिकारों का मुद्दा बताते हुए समूह ने कहा कि राज्य संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत अपने दायित्वों को निभाने में विफल हो रहा है और बच्चों के अधिकारों से जुड़े भारत के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का भी पालन नहीं कर पा रहा है। 

17 लाख भारतीयों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हुई

पर्यावरण कार्यकर्ता भवरीन कंधारी ने कहा, एक ही साल में 17 लाख भारतीयों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई। यह कोई आंकड़ा मात्र नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आपात स्थिति है। दिल्ली के बच्चे शासन की सबसे बड़ी नाकामी के सबसे ज्यादा जोखिम उठा रहे हैं। एनएचआरसी को जिम्मेदार अधिकारियों को जवाबदेह ठहराना चाहिए, क्योंकि बच्चों से उनका सबसे बुनियादी अधिकार सांस लेने का अधिकार छीन लिया गया है। ‘वॉरियर मॉम्स’ की सदस्य ज्योतिका सिंह ने कहा कि दिल्ली की जहरीली हवा ने बचपन को दैनिक स्वास्थ्य खतरे में बदल दिया है। उन्होंने कहा, किसी भी माता-पिता को अपने बच्चे को स्कूल भेजने और उसके फेफड़ों की सुरक्षा के बीच चुनाव करने की नौबत नहीं आनी चाहिए। हम एनएचआरसी से आग्रह करते हैं कि इसे बच्चों के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन मानते हुए संकट की गंभीरता के अनुरूप तुरंत कार्रवाई करे।

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प्रदूषण से संबंधित याचिका पर बुधवार को सुनवाई करेगा

दिल्ली उच्च न्यायालय राष्ट्रीय राजधानी में खतरनाक वायु प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाने के अनुरोध वाली एक याचिका पर बुधवार को सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि यह अनुरोध एक जनहित याचिका की प्रकृति का है, इसलिए इसकी सुनवाई जनहित याचिका रोस्टर वाली पीठ द्वारा की जानी चाहिए। यह याचिका बुधवार को मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की जाएगी। 

सर्दियों के दौरान वायु गुणवत्ता बेहद खराब

याचिका में कहा गया है कि पिछले कई वर्षों में दिल्ली में वायु गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है, विशेष रूप से सर्दियों के दौरान वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) अक्सर 'बहुत खराब', 'गंभीर' और 'खतरनाक' श्रेणियों में पहुंच जाता है। इसमें कहा गया है कि बढ़ते प्रदूषण के कारण बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों और पहले से बीमार लोगों सहित निवासियों में लगातार गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। यह याचिका ग्रेटर कैलाश-दो वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर की गई है, जिसमें अदालत से वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तत्काल और दीर्घकालिक, दोनों तरह के प्रभावी और वैज्ञानिक उपाय करने का आदेश देने का आग्रह किया गया है। 

सरकार पर लापरवाही का आरोप

याचिका में कहा गया है कि वायु गुणवत्ता में लगातार गिरावट के बावजूद अधिकारी "निष्क्रिय" बने रहे, तथा उन्होंने चरणबद्ध प्रतिक्रिया कार्ययोजना (जीआरएपी) के "तीसरे चरण में उठाए जाने वाले कदम" के निर्देश तभी जारी किए जब एक्यूआई गंभीर स्तर को पार कर गया। इसमें आरोप लगाया गया कि सरकार ने वास्तविक कार्यान्वयन सुनिश्चित किए बिना केवल कागज पर उपाय निर्धारित करने तक ही खुद को सीमित रखा है। 

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दिखावटी कारवाई से नहीं होगा समाधान

याचिका में कहा गया है, "आज तक कोई वास्तविक या पर्याप्त जमीनी उपाय किए बिना इस तरह की विलम्बित और दिखावटी कार्रवाई से केवल और अधिक देरी हुई है। लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को लापरवाही से खतरे में डाला गया है और वर्तमान सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की गंभीरता के प्रति पूर्ण उपेक्षा प्रदर्शित की गई है।" याचिका में दिल्ली सरकार, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति (सीपीसीसी), वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम), दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और दिल्ली पुलिस को प्रतिवादी पक्ष बनाया गया है। : new delhi air pollution | delhi air pollution levels | delhi air pollution 

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