नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क | दिल्ली हाईकोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को सलाह दी है कि वे उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना द्वारा दायर मानहानि केस में लगे 1 लाख रुपये के जुर्माने पर स्थगन (Stay) पाने के लिए पहले सत्र न्यायालय का रुख करें। यह मामला करीब 23 साल पुराना है, जब सक्सेना गुजरात में एक एनजीओ के अध्यक्ष थे। हाल ही में सत्र अदालत ने 70 वर्षीय पाटकर को दोषी करार देते हुए उन्हें "अच्छे आचरण की परिवीक्षा" पर रिहा किया था, लेकिन इसके साथ ही 1 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति राशि अदा करने का निर्देश भी दिया था।
क्या है परिवीक्षा पर रिहाई?
इसका मतलब है कि पाटकर को जेल नहीं भेजा जाएगा, बल्कि एक निश्चित समय तक अच्छे आचरण का बांड भरकर रिहा किया जाएगा।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस शालिंदर कौर ने स्पष्ट कहा कि हाईकोर्ट में सुनवाई से पहले पाटकर को निचली अदालत के निर्देशों का पालन करना चाहिए। उन्होंने पाटकर के वकील से कहा – "आप पहले ट्रायल कोर्ट के आदेश का अनुपालन करें, उसके बाद हम इस पर विचार करेंगे।"
पिछले फैसले का विवरण
1 जुलाई 2024 को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने मेधा पाटकर को IPC की धारा 500 (मानहानि) के तहत 5 महीने की साधारण जेल और 10 लाख रुपये का जुर्माना सुनाया था। सत्र अदालत ने अप्रैल 2025 में इस फैसले को आंशिक रूप से बदलते हुए उन्हें जेल से राहत दी, लेकिन 1 लाख रुपये का जुर्माना बनाए रखा, जिसे शिकायतकर्ता वी. के. सक्सेना को दिया जाना है।
क्यों दर्ज हुआ था केस?
यह मामला 24 नवंबर 2000 की एक प्रेस विज्ञप्ति को लेकर है, जिसमें पाटकर ने सक्सेना पर हवाला कनेक्शन, कायर कहे जाने और विदेशी हितों के लिए गुजरात के संसाधनों को गिरवी रखने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। कोर्ट ने इसे सक्सेना की छवि और प्रतिष्ठा पर हमला माना।