शिमला, वाईबीएन डेस्क | हिमाचल प्रदेश में एक मुख्य अभियंता की रहस्यमयी मौत के मामले में उच्च न्यायालय के निर्देश पर CBI जांच शुरू होने के बाद राज्य सरकार ने बड़ा प्रशासनिक कदम उठाया है। कांग्रेस सरकार ने पुलिस महानिदेशक (DGP) अतुल वर्मा, अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) ओंकार शर्मा और शिमला के पुलिस अधीक्षक संजीव गांधी को "अनुशासनहीनता" के आरोपों के तहत छुट्टी पर भेज दिया है। इस निर्णय को सरकार की छवि बचाने की कवायद और नौकरशाही में उभरते असंतुलन के रूप में देखा जा रहा है।
मुख्य अभियंता की मौत और CBI जांच का आदेश
यह कदम हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (HPPCL) के मुख्य अभियंता की आत्महत्या मामले में हाईकोर्ट के आदेश पर CBI द्वारा प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद उठाया गया है। अभियंता का शव 18 मार्च को भाखड़ा बांध से बरामद हुआ था, जो 10 मार्च से लापता थे। उनके परिवार ने वरिष्ठ अधिकारियों पर उत्पीड़न और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया था।
प्रमुख अधिकारियों पर गंभीर आरोप
CBI जांच की पृष्ठभूमि में, सरकार ने जिन अधिकारियों को हटाया है, उन पर गंभीर प्रशासनिक चूक के आरोप हैं: DGP अतुल वर्मा और ACS ओंकार शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने बिना एडवोकेट जनरल की राय लिए ही हाईकोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर दी। SP संजीव गांधी ने DGP के स्टाफ पर ड्रग तस्करों से संबंध होने के आरोप लगाए थे, जिसके बाद DGP ने उनके निलंबन की सिफारिश की थी।
प्रशासनिक फेरबदल
सेवानिवृत्ति के निकट पहुंचे DGP वर्मा की जगह 1993 बैच के अधिकारी अशोक तिवारी को DGP का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। वहीं, सोलन के SP गौरव सिंह को शिमला SP का अतिरिक्त जिम्मा सौंपा गया है। ACS ओंकार शर्मा से गृह और राजस्व जैसे सभी विभाग वापस ले लिए गए हैं और कमलेश पंत को गृह विभाग का जिम्मा सौंपा गया है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने विपक्ष पर मामले को "राजनीतिक रंग देने" का आरोप लगाया है, जबकि भाजपा ने सरकार पर "जांच को प्रभावित करने" का आरोप लगाया है। भाजपा प्रवक्ता त्रिलोक जामवाल ने कहा, "सरकार ने तीन जांच टीमें बनाकर परिवार को न्याय से वंचित करने की कोशिश की है।"
अदालत का निर्देश और परिवार का रुख
23 मई को हाईकोर्ट ने मामले की जांच CBI को सौंपते हुए कहा था कि निष्पक्षता के लिए राज्य कैडर का कोई भी अधिकारी जांच में शामिल नहीं होना चाहिए। पीड़िता की पत्नी किरण नेगी ने CBI जांच की मांग को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनके वकील ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा बनाई गई एसआईटी पक्षपातपूर्ण थी और उसने पीड़िता के मेडिकल इतिहास को आधार बनाकर वास्तविक उत्पीड़न को नजरअंदाज किया। ACS शर्मा ने 8 अप्रैल को सरकार को 66 पन्नों की एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें उच्चाधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया था। लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़े हो गए हैं।
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