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श्रीनगर, वाईबीएन डेस्क: जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चिशोती इलाके में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई है। प्राकृतिक आपदा में एक अस्थायी बाजार, लंगर स्थल और एक सुरक्षा चौकी तबाह हो गई वहीं कम से कम 16 आवासीय और सरकारी इमारतें, तीन मंदिर, चार पनचक्की एक 30 मीटर लंबा पुल और एक दर्जन से अधिक वाहन बह गए। इस भयावह हादसे के बाद मचैल माता यात्रा को लगातार तीसरे दिन स्थगित करना पड़ा है। यह वार्षिक यात्रा 25 जुलाई को शुरू हुई थी और 5 सितंबर तक चलनी थी लेकिन खराब मौसम और सुरक्षा कारणों से फिलहाल रोक दी गई है।
रेड अलर्ट को किया नजरअंदाज, नतीजा, तबाही
पिछले छह दिनों से मौसम विभाग की ओर से भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन को लेकर चेतावनी जारी की जा रही थी। 8 अगस्त को जारी किए गए रेड अलर्ट में 13 से 15 अगस्त के बीच जम्मू संभाग के कई जिलों जैसे पुंछ, राजोरी, रियासी, रामबन, किश्तवाड़, डोडा आदि में 200 मिमी से अधिक बारिश की आशंका जताई गई थी। इसके बावजूद मचैल यात्रा जारी रही और हादसे के वक्त यात्रा मार्ग पर भारी भीड़ मौजूद थी। अचानक आई बाढ़ और मलबे ने लोगों को संभलने का मौका तक नहीं दिया।
चिशोती में क्यों मची तबाही?
विभिन्न वैज्ञानिकों और मौसम विशेषज्ञों के अनुसार इस तबाही के पीछे कई कारण हो सकते हैं। मौसम विज्ञान केंद्र श्रीनगर के निदेशक डॉ. मुख्तियार अहमद के अनुसार चिशोती में विभाग का मौसम केंद्र नहीं है, लेकिन सैटेलाइट और डॉप्लर रडार से पता चला है कि 14 अगस्त को दोपहर 12:30 से 1:30 बजे के बीच क्षेत्र में भीषण वर्षा हुई जिससे बादल फटने जैसी स्थिति बन गई। उन्होंने यह भी कहा कि जंस्कार बेल्ट से लगे ऊपरी इलाकों में किसी ग्लेशियर के टूटने से भी बाढ़ आई हो सकती है। वहीं वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान देहरादून के पूर्व ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. डीपी डोभाल ने आशंका जताई कि यह घटना भूस्खलन या ग्लेशियर से मलबा गिरने के कारण भी हो सकती है। उनका मानना है कि हाई एल्टीट्यूड क्षेत्र में बादल फटना कम संभावित होता है। जम्मू विश्वविद्यालय के भू-वैज्ञानिक प्रो. अवतार सिंह जसरोटिया के अनुसार चिशोती की बसावट नाले के बेहद करीब थी, जिससे पानी और मलबा अपने साथ सब कुछ बहा ले गया।
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बचाव कार्य जारी, सेना और NDRF जुटी
घटनास्थल पर NDRF, SDRF, पुलिस, सेना और स्थानीय स्वयंसेवकों की टीमें रेस्क्यू और राहत कार्य में जुटी हुई हैं। जम्मू से NDRF की दो अतिरिक्त टीमें भेजी गई हैं। सेना की व्हाइट नाइट कोर के जवान भी सक्रिय हैं।संभागीय आयुक्त रमेश कुमार ने बताया कि बचाव अभियान को तेज कर दिया गया है। राहत सामग्री, चिकित्सा सहायता और उपकरण मौके पर भेज दिए गए हैं। फिलहाल लापता लोगों की तलाश और घायलों की चिकित्सा प्राथमिकता है।स्थानीय लोगों और पर्यटकों के बीच यह सवाल उठ रहा है कि अगर रेड अलर्ट के दौरान यात्रा को स्थगित कर दिया गया होता, तो शायद जान-माल का इतना नुकसान नहीं होता। प्रशासन की ओर से चेतावनियों को गंभीरता से न लेना अब आलोचना का कारण बन रहा है।
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