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हजारों श्रद्धालु पहुंचे थे मचैल माता यात्रा में, पहले पड़ाव के पास फटा बादल, बह गया पूरा langar camp

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के पाडर इलाके के चशोटी गांव में गुरुवार को भीषण बादल फटने की घटना हुई, जिससे मचैल माता यात्रा पर आए श्रद्धालुओं में हड़कंप मच गया। हादसे के समय हजारों श्रद्धालु वहां मौजूद थे।

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Ranjana Sharma
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श्रीनगर, वाईबीएन डेस्‍क: जम्मू-कश्मीरके किश्तवाड़ जि‍ले से एक बड़ी प्राकृतिक आपदा की खबर सामने आई है। गुरुवार को पाडर क्षेत्र के चशोटी गांव में बादल फटने की घटना हुई, जिससे भारी तबाही मच गई। हादसे के समय हजारों श्रद्धालु मचैल माता यात्रा पर थे और यह त्रासदी उस स्थान पर हुई जो यात्रा का पहला प्रमुख पड़ाव था। 

लंगर का टेंट बहा

तेज बारिश और अचानक आई बाढ़ में मंदिर परिसर के बाहर लगे लंगर के कई टेंट बह गए और मुख्य सड़क भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। स्थानीय विधायक के मुताबिक घटना के समय एक हजार से अधिक श्रद्धालु मौके पर मौजूद थे। कई लोग मलबे में फंसे हुए हैं, जबकि नदी किनारे खड़े वाहन और अन्य सामान बह गया है। प्रशासन और चश्मदीदों के अनुसार, कम से कम 12 लोगों के मारे जाने की आशंका है, हालांकि आधिकारिक पुष्टि अब तक नहीं हो सकी है।

गांव का बड़ा हिस्सा पानी और मलबे में समाया

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने किश्तवाड़ के डिप्टी कमिश्नर पंकज कुमार शर्मा से बात कर राहत कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने बताया कि रेस्क्यू और मेडिकल टीमें अलर्ट पर हैं और घटनास्थल के लिए रवाना कर दी गई हैं।  पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने बताया कि चशोटी गांव पहाड़ों के भीतर बसा एक बड़ा गांव है, जहां स्थानीय लोगों के साथ भारी संख्या में श्रद्धालु भी मौजूद थे। बादल फटने से गांव का बड़ा हिस्सा पानी और मलबे में समा गया है, जिससे राहत कार्य में भारी कठिनाइयां आ रही हैं। गांव तक पहुंचने वाले रास्ते भी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। बीते 15 दिनों से जम्मू-कश्मीर के कई पहाड़ी ज़िलों—पुंछ, राजौरी और डोडा—में लगातार भारी बारिश हो रही है, जिससे मचैल माता यात्रा का रास्ता भी प्रभावित हुआ है। हालात की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने सेना की डेल्टा फोर्स, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें तैनात कर दी हैं।

पिंडी स्वरूप में विराजमान हैं मचैल माता

मचैल माता मंदिर किश्तवाड़ जिले के पाडर उपखंड में समुद्र तल से लगभग 9,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर बर्फीली पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित है, जहां माता चंडी की ‘पिंडी स्वरूप’ में पूजा होती है। सावन माह में आयोजित होने वाली यह यात्रा, अमरनाथ यात्रा की तरह ही आस्था और कठिनाई दोनों का संगम मानी जाती है। श्रद्धालु किश्तवाड़ या गुलाबगढ़ से लगभग 30–35 किलोमीटर की पैदल या घोड़े पर यात्रा कर मंदिर तक पहुंचते हैं।प्रशासन का कहना है कि राहत कार्य युद्ध स्तर पर जारी है और फंसे हुए लोगों तक जल्द से जल्द मदद पहुंचाने की कोशिशें की जा रही हैं।
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