लखनऊ, वाईबीएन नेटवर्क।
कासगंज के चन्दन गुप्ता हत्याकांड पर फैसला भले ही आ गया हो, लेकिन मामला अभी खत्म होता नहीं दिख रहा है। जिस फैसले ने चन्दन को इन्साफ दिलाया, उसी फैसले ने इस पूरे मामले को नया मोड़ भी दिया है। एनआईए स्पेशल कोर्ट के जज विवेकानंद त्रिपाठी ने कुछ NGO पर गंभीर सवाल खड़े किये हैं।
क्या है मामला
साल 2018। उत्तर प्रदेश के कासगंज में साल 2018 में 26 जनवरी के दिन विश्व हिंदू परिषद, भारतीय विद्यार्थी परिषद और हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता तिरंगा यात्रा निकाल रहे थे। 100 से ज्यादा युवा बाइक पर भगवा ध्वज और तिरंगा लेकर यात्रा निकालने के लिए निकल पड़े थे। इन युवाओं में चंदन गुप्ता नाम का शख्स भी था। सब ठीक चल रहा था, लेकिन जैसे ही यात्रा कासगंज के बड्डूनगर पहुंची, कुछ मुस्लिम युवकों ने इसका विरोध किया। कुछ देर में विरोध ने हिंसा की शक्ल ले ली और इसका शिकार बना चंदन गुप्ता। हिंसा में गोली लगने से उसकी मौत हो गई।
क्या आया फैसला
इस मामले में पूरे आठ साल बाद एनआईए कोर्ट ने ही 30 में से 28 आरोपियों को दोषी करार दिया है। इनमें एक दोषी की मौत भी हो चुकी है। वहीं दो आरोपियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया।
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कोर्ट में उठा विदेशी फंडिंग का मुद्दा
एनआईए स्पेशल कोर्ट के ऑर्डर के मुताबिक चंदन गुप्ता हत्याकांड के आरोपियों की मदद के लिए कुछ NGO से फंडिंग भी की गयी। फंडिंग करने वालों में कुछ विदेशी एनजीओ भी शामिल हैं। इनमें न्यूयॉर्क की अलायन्स फॉर जस्टिस एंड अकाउंटेबिलिटी, वाशिंगटन से संचालित इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल, लंदन से संचालित साउथ एशिया सोलिडेटरी ग्रुप, मुंबई की एनजीओ सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस, नई दिल्ली की पीपुल यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, नई दिल्ली की यूनाइडेट अगेन्स्ट हेट एनजीओ और लखनऊ से संचालित रिहाई मंच शामिल हैं।
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कोर्ट ने क्यों सवाल खड़े किये
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि जब देश के किसी भी राज्य में आतंकवाद, देश विरोधी कृत्य जैसे मामलों में किसी आरोपी को अदालत में लाया जाता है तो कुछ ख़ास अधिवक्ता पैरवी के लिए खड़े हो जाते हैं। इन अधिवक्ताओं का सम्बन्ध किसी ना किसी NGO से होता है। कोर्ट ने ये भी कहा कि आरोपी को कानूनी सहायता दिलाना राज्य और केंद्र सरकार का दायित्व होता है। इसके लिए सरकारों ने प्रबंध भी किये हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि अगर सरकार द्वारा बनायी व्यवस्था की पैरवी से आरोपी दोषमुक्त हो जाता है तो उसका यकीन राज्य की न्याय व्यवस्था और संविधान पर बढ़ता है। लेकिन अगर किसी NGO के माध्यम से दोष मुक्ति होती है तो फिर दोषमुक्त हुए व्यक्ति की सोच में परिवर्तन हो सकता है। कोर्ट ने इस चलन पर गंभीरता से सोचने की बात भी कही है। साथ में ऐसे NGO की मंशा और न्यायिक व्यवस्था में उनका अनुचित हस्तक्षेप रोकने की भी बात कही।
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हम जांच के लिए तैयार- रिहाई मंच
चन्दन गुप्ता मामले में रिहाई मंच का भी नाम है। रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब का कहना है कि वो किसी भी जांच के लिए तैयार हैं। उनका ये भी कहना है कि वो पेशे से वकील हैं और हर उस शख्स के लिए खड़े होंगे जिसको हमें लगता है कि उसे गलत फँसाया जा रहा है। फंडिंग पर शोएब ने कहा कि रिहाई मंच के पास अपना कोई फंड नहीं है और ना ही बैंक अकाउंट है।
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