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Uttarkashi Cloudburst 2025 : "कुछ सेकंड देर होती तो हम भी मलबे में होते" एक कारोबारी का दर्द दिल दहला देगा | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।साहब! अगर कुछ पल और रूक जाता तो यकीन मानिए हम भी कहीं मलबे में दबे पड़े होते। समझिए मौत को बहुत करीब से छूकर जिंदगी बची है। वह मंजर देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अब उस तूफानी और तबाही की घटना को याद नहीं करना चाहता। सोचकर भी डर लगता है। भगवान ने जिंदगी बचाई है।
उत्तरकाशी के धराली गांव में 5 महीना पहले अपना सबकुछ दांव पर लगाकर होटल का कारोबार करने पहुंचे भूपेंद्र पंवार वाकया बताते बताते फफक फफक कर रोने लगते हैं। भूपेंद्र रोते बिलखते हुए कहते हैं कि भयानक आपदा ने सब कुछ तबाह कर दिया है। कैसे उनकी आंखों के सामने उनका सपना, उनकी जीवन भर की कमाई पल भर में मलबे में बदल गई। भूपेंद्र की कहानी आपदा के दर्द को बयां करती है।
उत्तरकाशी के धराली गांव में आई भयानक आपदा ने सिर्फ ज़मीनों को ही नहीं निगला, बल्कि अनगिनत सपनों को भी मलबे में दफना दिया। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं होटल व्यवसायी भूपेंद्र पंवार। उनकी आंखों में आज भी उस खौफ का मंजर साफ दिखाई देता है, जब उन्होंने अपनी ज़िंदगी की पूरी कमाई से बनाया होम स्टे पल भर में तबाह होते देखा। भूपेंद्र बताते हैं कि दो सेकंड की देरी उन्हें हमेशा के लिए मौत के मुंह में धकेल सकती थी। भूपेंद्र की दर्द भरी कहानी उत्तराखंड की इस उत्तरकाशी आपदा के गहरे जख्मों को दिखाती है।
'लगा सब खत्म हो गया, कपड़े भी मांगकर पहनने पड़े'
भूपेंद्र पंवार की आंखों में आंसू हैं जब वह बताते हैं कि कैसे उन्होंने अपनी जीवन भर की कमाई अप्रैल में होम स्टे बनाने में लगाई थी। उन्हें लगा था कि यह उनका सपना पूरा हो गया है, लेकिन किसे पता था कि महज पांच महीनों में यह सब कुछ उनकी आंखों के सामने मलबे में बदल जाएगा।
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'भागो-भागो' की आवाज और सीटी ने बचाई जान
5 अगस्त की वो भयानक दोपहर, भूपेंद्र अपने दोस्तों के साथ होटल के बाहर खड़े थे और मेले में जाने की तैयारी कर रहे थे। तभी सामने मुखबा गांव से ‘भागो-भागो’ की आवाज़ और सीटियां सुनाई दीं। यह सुनकर हम पांच लोग तुरंत हर्षिल की ओर भागे। एक कार चालक भी अपनी जान बचाने के लिए हमारे पीछे आ रहा था। भूपेंद्र ने रुंधे गले से बताया, "बस दो या तीन सेकंड का फर्क था, वरना हम भी उस उत्तरकाशी आपदा के मलबे में कहीं खो गए होते।"
अपने ही लोगों पर बोझ बनने का दर्द
जब भूपेंद्र ने अपनी जान बचाने के बाद अपनी पत्नी और बच्चों को फोन किया तो नेटवर्क चला गया। तीसरे दिन गांव के लोगों ने उन्हें खाना दिया। उनके कपड़े मलबे में दब गए थे, इसलिए उन्हें पहनने के लिए टी-शर्ट और पाजामा भी दूसरों से मांगना पड़ा। भूपेंद्र कहते हैं, "ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने ही गांव के लोगों पर बोझ बन गया हूं।" यह भावनात्मक बोझ उत्तराखंड आपदा में सब कुछ खोने वालों की मानसिक पीड़ा को दर्शाता है।
सपना, जो पलक झपकते ही टूट गया
भूपेंद्र ने पहले टैक्सी चलाकर पाई-पाई जोड़ी थी। उसी जमा-पूंजी से उन्होंने अप्रैल में चारधाम यात्रा शुरू होने से पहले अपने सेब के बागानों के बीच एक दो-मंजिला होम स्टे बनाया था। यह उनका सपना था, जिससे उन्हें लगा था कि उनकी आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी। लेकिन उत्तरकाशी आपदा ने सब कुछ छीन लिया।
उनकी आंखों के सामने ही उनकी जीवन भर की कमाई मलबे में दब गई। यह सिर्फ़ एक संपत्ति का नुकसान नहीं था, बल्कि एक सपने का अंत था, एक परिवार की उम्मीदों का टूटना था। उत्तरकाशी त्रासदी ने न जाने ऐसे कितने ही सपनों को निगल लिया।
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युद्ध स्तर पर जारी है राहत और बचाव कार्य
उत्तराखंड के धराली में आपदा के बाद बचाव और राहत कार्यों में तेज़ी आई है। कई हेलीकॉप्टर, जिनमें वायु सेना का चिनूक भी शामिल है, राहत अभियान में जुटे हैं। अब तक 657 लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जा चुका है। भारी मशीनरी भी हर्षिल तक पहुंचा दी गई है ताकि मलबा हटाने का काम शुरू हो सके। हालांकि, इस विनाशकारी उत्तरकाशी आपदा ने जो जख्म दिए हैं, उन्हें भरने में काफी वक्त लगेगा।
Dharali Disaster 2025 | Bhupendra Panwar | Himalayan Tragedy | Uttarakhand Floods