नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक नया टूल (उपकरण) तैयार किया है, जो इंसान के हेल्थ डेटा की जांच करके आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से यह पता लगा सकता है कि उसे भविष्य में टाइप 1 डायबिटीज होने का कितना खतरा है।
सिडनी के शोधकर्ताओं ने किया अविष्कार
यह टूल वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने बनाया है। इसकी खास बात ये है कि यह न सिर्फ डायबिटीज का खतरा बताता है, बल्कि यह भी अनुमान लगा सकता है कि इलाज के दौरान शरीर कैसा रिएक्ट करेगा। इस डिवाइस में 'डायनामिक रिस्क स्कोर (DRS4C)' नाम की तकनीक का इस्तेमाल हुआ है। यह स्कोर खून में मौजूद बेहद छोटे RNA टुकड़ों को देखकर तय करता है कि किसी को टाइप 1 डायबिटीज का खतरा है या नहीं।
पहले ही चलेगा डायबिटीज का पता
प्रोफेसर आनंद हार्डिकर ने बताया कि अगर हम पहले से जान लें कि किसी को डायबिटीज हो सकती है, तो इलाज जल्दी शुरू किया जा सकता है। अब कुछ ऐसी दवाएं भी मौजूद हैं, जो बीमारी के असर को धीरे-धीरे बढ़ने देती हैं। यह खासकर बच्चों के लिए जरूरी है, क्योंकि 10 साल से पहले टाइप 1 डायबिटीज होने पर बीमारी तेजी से बढ़ती है और उनकी उम्र औसतन 16 साल तक कम हो सकती है।
छह हजार से अधिक लोगों पर किया गया अध्ययन
यह शोध 'नेचर मेडिसिन' नाम की मेडिकल जर्नल में छपा है। इसमें भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, न्यूजीलैंड और हांगकांग जैसे देशों के लगभग 6,000 लोगों के सैंपल्स का विश्लेषण किया गया। बाद में इसे और 662 लोगों पर टेस्ट किया गया, ताकि यह पता चले कि स्कोर सही काम कर रहा है या नहीं। इलाज शुरू होने के एक घंटे बाद ही स्कोर ने पहचान कर ली कि किन मरीजों को इंसुलिन की जरूरत नहीं पड़ेगी।
इस टूल की खास बात ये है कि यह सिर्फ जेनेटिक यानी जन्मजात रिस्क नहीं बताता, बल्कि ऐसे संकेतों को भी पकड़ता है जो समय के साथ बदलते हैं। डॉ. मुग्धा जोगलेकर ने बताया कि जेनेटिक टेस्टिंग से हमें सिर्फ पुराना और स्थायी डेटा मिलता है। जबकि डायनामिक रिस्क स्कोर समय-समय पर बदलती बीमारी की स्थिति को बेहतर तरीके से समझने में मदद करता है।