नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।अमेरिकी बिजनेसमैन और स्टारलिंक के मालिक एलन मस्क को दरसंचार विभाग से लाइसेंस मिल गया है। अब देश में जल्द ही स्टारलिंक की सेवाएं शुरु हो जाएंगी। हालांकि अभी स्पैक्ट्रम तय नहीं हुआ है। स्टारलिंक के अलावा वनवेब और रिलायंस जिओ को भी सैटेलाइट इंटरनेट शुरु करने की अनुमति मिल गई है।
सैटेलाइट इंटरनेट को अगर आसान भाषा में समझना हो, तो यह इंटरनेट इस्तेमाल करने का ऐसा तरीका है, जिसकी कनेक्टिविटी सीधे अंतरिक्ष से होती है। बहुत लोगों को यह समझने में दिक्कत होती है कि ब्रॉडबैंड इंटरनेट और 5जी इंटरनेट में अंतर क्या है? तो आइए इस तकनीक को जानते हैं।
सैटेलाइट इंटरनेट ऐसे करता है काम
एक्सपर्ट बताते हैं कि सैटेलाइट इंटरनेट एक ऐसी तकनीक है, जिसमें सैटेलाइट का इस्तेमाल किया जाता है। ये प्रथ्वी की निचली कक्षा में चक्कर लगाते हैं। एलन मस्क की कंपनी कई वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रही है। उसने लगभग 3 हजार सैटेलाइट टर्मिनलों को अंतरिक्ष में पहुंचाया है। ये टर्मिनल पृथ्वी का चक्कर लगाते हुए लोगों को वायरलैस कनेक्टिविटी ऑफर करते हैं। सैटेलाइट इंटरनेट चलाने के लिए मॉडम और डिश एंटीना की जरूरत होती है। डिश एंटीना घर या ऑफिस की छत पर या पोल पर लगाया जाता है। वह अंतरिक्ष से आने वाले रेडियो सिग्नलों को घर पर लगे मॉडम या राउटर में भेजता है और फिर उससे स्मार्टफोन, लैपटॉप व दूसरे गैजेट्स में इंटरनेट चलता है।
सैटेलाइट इंटरनेट, 5जी मोबाइल नेटवर्क और ब्रॉडबैंड इंटरनेट में अंतर
हम आपको पहले ही सैटेलाइट इंटरनेट के बारे में जानकारी दे चुके हैं। इसमें अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट्स से रेडियो सिग्नल भेजे जाते हैं, जो डिश और राउटर के माध्यम से आपकी डिवाइस तक पहुंचते हैं। इसके विपरीत, 5G मोबाइल नेटवर्क में इंटरनेट सिग्नल मोबाइल ऑपरेटर की सिम—जैसे कि जियो, एयरटेल या बीएसएनएल—के जरिए आपके फोन तक आते हैं। वहीं, ब्रॉडबैंड इंटरनेट फाइबर ऑप्टिक केबल पर निर्भर होता है। फाइबर केबल से होकर डेटा एक राउटर तक पहुंचता है और वहां से आपके स्मार्टफोन, लैपटॉप या अन्य डिवाइसेज़ में इंटरनेट सेवा मिलती है।
तीनों में कौनसा बेहतर
रिपोर्टों के मुताबिक, सैटेलाइट इंटरनेट को 5G मोबाइल इंटरनेट और ब्रॉडबैंड की तुलना में ज्यादा टिकाऊ माना जा सकता है। इसका कारण यह है कि प्राकृतिक आपदाओं जैसे आंधी, तूफान या बाढ़ की स्थिति में मोबाइल नेटवर्क और ब्रॉडबैंड सेवाएं बाधित हो सकती हैं, जबकि सैटेलाइट इंटरनेट की कनेक्टिविटी बरकरार रह सकती है—जब तक कि डिश एंटीना या राउटर में कोई तकनीकी खराबी न हो। हालांकि, इंटरनेट स्पीड के लिहाज से ब्रॉडबैंड सबसे बेहतर माना जाता है। दूसरी ओर, मोबाइल इंटरनेट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे आप कहीं भी और कभी भी इस्तेमाल कर सकते हैं। जबकि सैटेलाइट इंटरनेट और ब्रॉडबैंड की कनेक्टिविटी सीमित क्षेत्र तक ही रहती है, जहां तक इनके सिग्नल पहुंचते हैं।
सबसे किफायती कौन सा ?
आपके लिए कौन-सा इंटरनेट बेस्ट रहेगा, यह आपकी ज़रूरतों और बजट पर निर्भर करता है। अगर बात खर्च की करें तो इस समय ब्रॉडबैंड इंटरनेट सबसे किफायती विकल्प है। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, जियो और एयरटेल जैसी कंपनियां ब्रॉडबैंड सेवा सिर्फ करीब 1.5 रुपये प्रति जीबी की लागत पर दे रही हैं, जिसमें ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का सब्सक्रिप्शन भी शामिल होता है। इसके मुकाबले, मोबाइल इंटरनेट की कीमत लगभग 6.5 रुपये प्रति जीबी तक जाती है।
सैटेलाइट इंटरनेट इन दोनों की तुलना में महंगा है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इसकी शुरुआती कीमत करीब 810 रुपये प्रति माह हो सकती है। वहीं, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में स्टारलिंक सेवा की मासिक लागत लगभग 3,000 रुपये तक है। सिर्फ मासिक खर्च ही नहीं, सैटेलाइट इंटरनेट की इंस्टॉलेशन कॉस्ट भी काफी ज्यादा होती है। जहां ब्रॉडबैंड कनेक्शन में इंस्टॉलेशन चार्ज बेहद मामूली होता है या नहीं के बराबर होता है, वहीं सैटेलाइट इंटरनेट का सेटअप लगाने में लगभग 30,000 रुपये तक का शुरुआती खर्च आ सकता है। elon musk