नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
जलावायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभाव अब सामने आने लगे हैं। इससे जुडी कोई न कोई खबर सुर्खियों में बनी रहती है। हाल ही में देश के पूर्वी भाग अरुणाचल प्रदेश एक खबर आई हैं, जिसमें बताया गया है कि वहां के ग्लेशियर गायब हो रहे हैं। वहां पिछले 32 वर्षों में अरुणाचल प्रदेश में 110 ग्लेशियर गायब हो गए हैं।
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32 सालों के अध्ययन से सामने आई रिपोर्ट
नागालैंड विश्वविद्यालय और कॉटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में ग्लेशियरों के पीछे हटने की खतरनाक गति पर प्रकाश डाला गया है, जो इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को बताता है। ये रिपोर्ट जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित की गई थी। 1988 से 2020 की अवधि को कवर करने वाले इस शोध में तवांग से लोहित तक अरुणाचल प्रदेश के कई जिलों में रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीकों का उपयोग करके ग्लेशियर में हुए परिवर्तनों का पता लगाया है।
घट रहा है ग्लेशियर का क्षेत्र
अध्ययन के अनुसार, कुल ग्लेशियरों का क्षेत्र 309.85 वर्ग किमी से घटकर 16.94 वर्ग किमी हो गया। ग्लेशियरों की संख्या 756 से घटकर 646 हो गई। 4,500 से 4,800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित ग्लेशियर मुख्य रूप से प्रभावित हो रहे हैं। छोटे ग्लेशियर (5 वर्ग किलोमीटर से कम) सबसे तेज गति से पिघले हैं। अध्ययन से पता चला है कि पूर्वी हिमालय में पिघलने की दर पूरी दुनिया के औसत से ज्यादा है। पूर्वी हिमालय में तापमान में हर दशक में 0.1 डिग्री सेल्सियस से 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी जा रही है।
क्यों हैं ग्लेशियर जरूरी
ग्लेशियर पानी को सुरक्षित बनाए में रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, नदियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में काम करते हैं जो लाखों लोगों को जीवित रखते हैं। उनके तेजी से पीछे हटने से न केवल पानी की कमी हो सकती है बल्कि ग्लेशियर झीलों के निर्माण में भी योगदान होता है। ग्लेशियल झील के फटने से बाढ़ (GLOF) का खतरा बढ जाता है, जो निचले इलाकों में रहने वाले लोगों विनाशकारी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
तेजी से पिघलते ग्लेशियर ने चिंता पैदा कर दी है। इसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे, ताकि इससे होने वाले भविष्य के खतरों से निपटा जा सके। अध्ययन में बताया गया है कि तापमान में वृद्धि जारी है, इसलिए इन ग्लेशियरों की सुरक्षा क्षेत्र की पारिस्थितिकी और मानव कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है।
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