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Climate Change : इतने सालों बाद बर्फ से ढक जाएगी, वैज्ञानिकों ने किया बड़ा दावा

अगर आप भी जिज्ञासु प्रवृत्ति हैं तो आपके मन में भी कभी न कभी ये खयाल तो आया होगा कि धरती पर इतनी बर्फ कहां से आई है। हाल ही शोधकर्ताओं ने इसको लेकर एक  शोध किया है

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Suraj Kumar
EARTH
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नई दिल्‍ली, वाईबीएन नेटवर्क।

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अगर आप भी जिज्ञासु प्रवृत्ति हैं तो आपके मन में भी कभी न कभी ये खयाल तो आया होगा कि धरती पर इतनी बर्फ कहां से आई है। अंटार्कटिका महाद्वीप पूरी तरह से बर्फ से घिरा हुआ है। हाल ही शोधकर्ताओं ने इसको लेकर एक शोध किया है। जिसमें इससे जुड़ी कई बातें सामने आई हैं। 

पृथ्‍वी के आर्बिट में बदलाव होने से होता है ये परिवर्तन 

इसमें बताया गया है कि सूर्य के चारों ओर धरती की कक्षा में होने वाले छोट- छोटे बदलावों से जलवायु परिवर्तन प्रभावित होता है। शोधकर्ताओं की एक टीम ने जलवायु परिवर्तन के लाखों सालों के रिकॉर्ड की जांच की, जिसमें Northern Hemispher में बर्फ की मोटी चादरों और तापमान को लेकर गहरा अध्‍ययन किया। वैज्ञानिकों के नए अध्ययनों से पता चला है कि पृथ्वी की कक्षा (Orbit) और उसकी स्थिति में होने वाले बदलाव हिमयुग (Ice Age) को नियंत्रित करते हैं। इस सिद्धांत को "मिलंकोविच चक्र" (Milankovitch Cycles) कहा जाता है, जिसे सर्बियाई वैज्ञानिक मिलुतिन मिलंकोविच ने 20वीं सदी की शुरुआत में विकसित किया था। 

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इतने साल बाद आएगा आइस एज

ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले लगभग 11,000 वर्षों में शुरू होने की उम्मीद है। इससे पूरी धरती बर्फ से पूरी तरह से ढक जाएगी। प्रमुख शोधकर्ता बार्कर ने कहा कि अगर  जीवाश्म ईंधन कभी जलाया नहीं गया होता, "हम उम्मीद करते हैं कि अगले 11,000 वर्षों के भीतर Glaciation घटित होगा, और यह 66,000 वर्षों में समाप्त हो जाएगा।"

वैज्ञानिकों ने जताई चिंता 

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पूरे दुनिया में बढ़ते औद्योगीकरण ने एक चिंता बढ़ा दी है। जिससे धरती के तापमान में काफी इजाफा हुआ है। यदि इसको नहीं रोका गया तो  लगभग 8,000 वर्षों में अंटार्कटिका पिघल जाएगा, जिससे समुद्र का स्तर लगभग 70 मीटर बढ़ जाएगा। वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा कि लोग धरती पर नहीं पानी के नीचे रहेंगे। 

क्‍या है आइस एज ? 

आइस एज (Ice Age) या हिमयुग एक ऐसा भूवैज्ञानिक काल होता है जब पृथ्वी के तापमान में भारी गिरावट आती है और बड़े हिस्से में बर्फ की मोटी परतें जम जाती हैं। इस दौरान महाद्वीपों और पहाड़ों पर ग्लेशियर फैल जाते हैं, और समुद्र का स्तर नीचे चला जाता है।

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