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सैन्य अफसर को उसकी पत्नी के अवैध संबंधों की सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराने से कोर्ट का इन्कार

अदालत ने सेना के अधिकारी द्वारा दायर अर्जी को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपनी पत्नी के कथित अवैध संबंध का पता लगाने के लिए एक होटल में लगे सीसीटीवी कैमरों की तस्वीर मुहैया कराने का अनुरोध किया था। 

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Mukesh Pandit
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कोर्ट की डीएम को चेतावनी Photograph: (YBN)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। दिल्ली की एक अदालत ने भारतीय सेना के एक अधिकारी द्वारा दायर उस अर्जी को खारिज कर दिया जिसमें उसने अपनी पत्नी के कथित अवैध संबंध का पता लगाने के लिए एक होटल में लगे सीसीटीवी कैमरों की तस्वीर मुहैया कराने का अनुरोध किया था। दीवानी न्यायाधीश वैभव प्रताप सिंह ने कहा कि किसी पुरुष द्वारा किसी अन्य पुरुष की पत्नी का हरण करने की ‘पुरानी धारणा’ को अस्वीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि यह ‘महिलाओं से अधिकार छीन लेता है और उन्हें अमानवीय बनाता है’।

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पत्नी से चल रहा है तलाक का मुकदमा

न्यायाधीश ने 22 मई को पारित आदेश में पति के उस आवेदन को खारिज कर दिया जिसमें होटल को बुकिंग विवरण और सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। आवेदन में दावा किया गया था कि आवेदक का पत्नी के साथ विवाद की वजह से तलाक का मामला चल रहा है और वह अपने कथित प्रेमी के साथ होटल में आई थी। अदालत ने कहा कि होटल का ‘सामान्यतः अपने मेहमानों के प्रति गोपनीयता का कर्तव्य होता है और उन्हें बुकिंग विवरण और सीसीटीवी फुटेज सहित अपने रिकॉर्ड की गोपनीयता की रक्षा करना आवश्यक होता है।’ 

‘द एंड ऑफ द अफेयर’का दिया उदाहरण

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न्यायाधीश ने लेखक ग्राहम ग्रीन के उपन्यास ‘द एंड ऑफ द अफेयर’ का हवाला देते हुए कहा कि निष्ठा का दायित्व उस व्यक्ति पर होता है जिसने वादा किया था तथा प्रेमी ने विवाह में धोखा नहीं दिया, बल्कि उस व्यक्ति ने वचन दिया और उसे तोड़ा। उन्होंने कहा, ‘एक पुरुष द्वारा किसी अन्य पुरुष की पत्नी का हरण पुराना विचार है, जिसमें महिला की कोई भूमिका या जिम्मेदारी नहीं है। इसे अस्वीकार किया जाना चाहिए। यह महिलाओं से अधिकार छीन लेता है और उन्हें अमानवीय बना देता है।’ 

पितृसत्तात्मक धारणाओं के लिए कोई स्थान नहीं

न्यायाधीश ने कहा कि यहां तक ​​कि संसद ने भी न्यायशास्त्र को अपनी स्वीकृति दे दी है, जब उसने औपनिवेशिक दंड कानून को खत्म करते हुए भारतीय न्याय संहिता को अधिनियमित किया और उसमें व्यभिचार के अपराध को बरकरार नहीं रखा, जिससे पता चलता है कि ‘‘आधुनिक भारत में लैंगिक झुकाव और पितृसत्तात्मक धारणाओं के लिए कोई स्थान नहीं है।’’ 

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न्यायाधीश ने क्या की टिप्पणी

न्यायाधीश ने कहा कि अदालतें निजी विवादों के लिए जांच निकाय के रूप में या आंतरिक कार्यवाहियों में साक्ष्य एकत्र करने के साधन के रूप में काम करने के लिए नहीं हैं, विशेषकर तब जब उस साक्ष्य पर कोई स्पष्ट कानूनी अधिकार मौजूद न हो। अदालत ने कहा कि पत्नी और उसके कथित प्रेमी पति के वाद के केंद्र में हैं, लेकिन उन्हें मुकदमे में पक्षकार नहीं बनाया गया, जिससे किसी भी खुलासे से पहले उनके रुख को सुने जाने के अधिकार को लेकर अहम सवाल उठते हैं। 

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