जयपुर, वाईबीएन डेस्क। पहलगाम आतंकी हमले की बर्बर घटना के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है। सीजफायर के बाद भी भारत के लोगों में पहलगाम आतंकी हमले का गुस्सा बरकरार है। इसका असर अब जयपुर की मिठाई की दुकानों पर भी देखा जा सकता है। जिन मिठाइयों के नाम में 'पाक' शब्द आता था, उनका नाम अब बदल दिया गया है और पाक की जगह श्री शब्द लगा दिया गया है। जैसे मैसूर पाक को मैसूर श्री कहा जाएगा। इसी प्रकार मोती पाक को मोतीश्री नाम दिया है। हालांकि यह भी सच है कि मिठाइयों के आगे लगने वाले पाक शब्द का पाकिस्तान से दूर-दूर तक का भी नाता नहीं है।
जानें कैसे बना 'पाक' शब्द
'पाक' शब्द संस्कृत से आया है, जिसका अर्थ है 'पकाया हुआ' या 'चाशनी में तैयार', जो दोनों मिठाइयों की बनावट को दर्शाता है। मोती पाक का "मोती" इसके दाने और सजावट से प्रेरित है, जबकि मैसूर पाक का नाम इसके उद्गम स्थल मैसूर से जुड़ा है। मोती पाक और मैसूर पाक भारतीय मिठाइयों की समृद्ध परंपरा का हिस्सा हैं, जिनका इतिहास और उत्पत्ति क्षेत्रीय संस्कृति व शाही रसोईघरों से जुड़ी है। दोनों मिठाइयों का उद्भव अलग-अलग क्षेत्रों और समय से हुआ। Anti-terror operation | Operation Sindoor | operation sindoor air strike | operation sindoor breaking | Operation Blue Star history
मोती पाक की उत्पत्ति और नामकरण:
मोती पाक मुख्य रूप से गुजरात और राजस्थान से जुड़ी मिठाई है, जिसका इतिहास लगभग डेढ़ सौ साल पुराना माना जाता है। यह मिठाई बीकानेर के शाही रसोईघरों में 19वीं सदी में विकसित हुई, जब राजघरानों के रसोइए मेहमानों के लिए कुछ खास बनाने के लिए प्रयोग करते थे। मोती पाक का नाम इसके स्वरूप से प्रेरित है, क्योंकि यह छोटे-छोटे मोती जैसे दानों से बनाई जाती थी, जो बेसन, घी, चीनी और मावे (खोया) से तैयार होते थे।
राजघरानों में लोकप्रिय रही ये मिठाइयां
इन दानों को गोल आकार देकर, गुलाब की पंखुड़ियों और चांदी के वर्क से सजाया जाता था, जिससे यह शाही मिठाई की तरह चमकती थी। बीकानेर के जेसराज-शिवराज दुकान की कहानी बताती है कि यह मिठाई राजघराने में इतनी लोकप्रिय हुई कि इसे शाही भोज का हिस्सा बनाया गया। इसका नाम "मोती" इसकी चमक और आकार से लिया गया, जो मोतियों की तरह दिखता है।
मैसूर पाक की उत्पत्ति
मैसूर पाक की उत्पत्ति कर्नाटक के मैसूर शहर से हुई, और इसका इतिहास 20वीं सदी की शुरुआत, विशेष रूप से 1935 से जुड़ा है। मैसूर के वाडियार राजवंश के महाराजा कृष्णराज वाडियार IV के शाही रसोइए काकासुरा मडप्पा ने इसे बनाया। कहानी के अनुसार, एक दिन दोपहर के भोजन के लिए मिठाई तैयार नहीं थी, और मडप्पा ने जल्दबाजी में बेसन, घी और चीनी से एक नई मिठाई बनाई। जब राजा ने इसका स्वाद चखा, तो उन्हें यह इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसका नाम पूछा। मडप्पा ने इसे "मैसूर पाक" नाम दिया, जहां "मैसूर" शहर का नाम और "पाक" कन्नड़ में मिठाई या चाशनी को दर्शाता है। यह मिठाई बाद में मैसूर पैलेस से बाहर आम लोगों तक पहुंची और आज यह दक्षिण भारत की सबसे प्रसिद्ध मिठाइयों में से एक है।
मोती पाक का सांस्कृतिक महत्व:
मोती पाक का इतिहास 19वीं सदी (लगभग 1870 के आसपास) से शुरू होता है, जबकि मैसूर पाक 20वीं सदी (1935) से प्रचलित हुई। दोनों मिठाइयां शाही रसोईघरों से निकलकर आज त्योहारों, जैसे दशहरा, दीवाली और शादियों में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। मोती पाक की औषधीय गुणों वाली छवि इसे सर्दियों में लोकप्रिय बनाती है, जबकि मैसूर पाक अपनी मुलायम, घी-युक्त बनावट के लिए मशहूर है।