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Explained कुत्तों का केस सीजेआई ने दूसरी बेंच को क्यों भेजा?

सीजेआई बीआर गवई ने मामले को दो जजों वाली बेंच जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर. महादेवन की बेंच से वापस लेकर तीन जजों वाली बेंच को स्थानांतरित कर दिया है। नई बेंच में जस्टिस विक्रम नाथ के साथ जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया शामिल हैं।

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Mukesh Pandit
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला — क्या सड़क से गायब होंगे स्ट्रीट डॉग्स? | यंग भारत न्यूज
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः बात हैरत में डालने वाली है। एक केस का स्वतः संज्ञान लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया अब उस मामले को तीन जजों की बेंच के पास भेज दिया है। सीजेआई बीआर गवई ने मामले को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों वाली बेंच जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर. महादेवन की बेंच से वापस लेकर तीन जजों वाली बेंच को स्थानांतरित कर दिया है। नई बेंच में जस्टिस विक्रम नाथ के साथ जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया शामिल हैं।
जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली नई बेंच ने 14 अगस्त को उस अंतरिम याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें दिल्ली और एनसीआर में आवारा कुत्तों को शहर के बाहरी इलाकों में स्थित आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करने के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई थी।

सुप्रीम आदेश पर राजनेता से एक्टर तक भड़के

11 अगस्त के इस फैसले से पशु प्रेमियों के साथ आम लोगों में भारी आक्रोश है। जिन लोगों ने इसके औचित्य पर सवाल उठाए हैं और वैकल्पिक समाधानों पर जोर दिया है, उनमें कई राजनेता और एक्टर भी शामिल हैं। इनमें पशु अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, तृणमूल कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव, अभिनेता जॉन अब्राहम और स्टैंड-अप कॉमेडियन वीर दास शामिल हैं। इन लोगों ने यह भी चिंता जताई गई है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश अपलोड होने से पहले ही आवारा कुत्तों को इलाकों में पकड़ा जा रहा था। कोई नहीं बता सकता कि क्या यह जनाक्रोश था जिसने मुख्य न्यायाधीश को हस्तक्षेप करने के लिए प्रेरित किया या फ़ैसले की प्रकृति ने।

कहीं फैसले के पीछे सुनवाई की रिकॉर्डिंग तो नहीं

11 अगस्त की अदालती कार्यवाही की रिकॉर्डिंग जो अब वायरल हो गई है, इसमें जस्टिस पारदीवाला पशु प्रेमियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों की दलील को खारिज करते हुए दिखाई दे रहे हैं। उन्हें यह कहते हुए देखा जा सकता है- हस्तक्षेप के सभी अनुरोध अस्वीकार किए जाते हैं। जस्टिस पारदीवाला ने पशु जन्म नियंत्रण के नियमों को बेतुका बताया, जो यह तय करते हैं कि सामुदायिक कुत्ते को टीकाकरण के बाद उसी समुदाय में वापस कर दिया जाना चाहिए जहां से उनको लिया गया था। जस्टिस पारदीवाला वीडियो में टिप्पणी करते हुए दिखाई देते हैं- यह नियम जो कहता है कि यदि आप किसी आवारा कुत्ते को उठाते हैं, तो उस कुत्ते की नसबंदी करें और उसे उसी इलाके में वापस छोड़ दें, यह बिल्कुल बेतुका है। इसका कोई मतलब नहीं है। जस्टिस ने पूछा- वह आवारा कुत्ता उस इलाके में वापस क्यों आए? किस लिए? इसके पीछे क्या उद्देश्य है?

वकीलों का मत- जजों ने नहीं की ठीक से सुनवाई

एक रिपोर्ट के मुताबिक वकीलों का मानना था कि दो जजों की बेंच ने दूसरे पक्ष की सुनवाई नहीं की। इससे प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत पूरा नहीं हो सका। ऑडी अल्टरम पार्टम, जिसका अर्थ है कि दूसरे पक्ष को भी सुना जाए। एक वरिष्ठ वकील ने कहा- पशु कल्याण समूहों के हस्तक्षेप को अस्वीकार करना सुनवाई के मौलिक अधिकार पर प्रहार है। यह (प्रक्रियागत निष्पक्षता) ऑडी अल्टरम पार्टम का उल्लंघन है। एक अन्य वकील ने कहा कि यह आदेश निर्दोष को दंडित न करने के सार्वभौमिक कानून के सिद्धांत के विपरीत है। उन्होंने कहा- टीकाकरण किए हुए कुत्तों को खतरनाक आवारा कुत्तों के साथ रखा जाएगा। यह सामूहिक दंड इस विचार को दर्शाता है कि जिम्मेदारी व्यक्तिगत होनी चाहिए।

यूएन की रिपोर्ट भी हो रही वायरल

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2025 के एनिमल बर्थ कंट्रोल मॉड्यूल के अनुसार, जब कुत्तों को ले जाया जाता है तो उनके इलाके खाली हो जाते हैं। आस-पास के इलाकों के दूसरे कुत्ते उनकी ओर आकर्षित होते हैं। जो कुत्ते पकड़ से बच निकलते हैं, वो प्रजनन जारी रखते हैं। जिसका अर्थ है कि वह इलाका जल्द ही फिर से आबाद हो जाता है। नए जानवरों के आने से कुत्तों के बीच झगड़े बढ़ जाते हैं। इलाके और प्रजनन को लेकर। इससे राहगीरों के लिए खतरा बढ़ जाता है। ऐसी परिस्थितियों में रेबीज का संक्रमण एक ख़तरा बना रहता है। 

नसबंदी किए हुए कुत्तों को निशाना बनाया

एनिमल बर्थ कंट्रोल मॉड्यूल एक और मुद्दा उठाता है कि बड़े पैमाने पर कुत्तों को हटाने से आमतौर पर पहले मिलनसार और पहले से ही नसबंदी किए हुए कुत्तों को निशाना बनाया जाता है। आक्रामक, बिना नसबंदी वाले कुत्तों को पीछे छोड़ दिया जाता है। यह अनजाने में किया गया चयन गली के कुत्तों की आबादी के समग्र स्वभाव को बदल सकता है, जिससे उनका प्रबंधन मुश्किल हो जाता है। वास्तव में, विस्थापन से एक अस्थिर और रेबीज फैलाने वाली कुत्तों की आबादी बनती है। समस्या और बढ़ जाती है।

इसके समर्थन में, AWBI विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का हवाला देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2013 की एक रिपोर्ट में कहा गया था- बड़े पैमाने पर कुत्तों का टीकाकरण बार-बार कुत्तों में रेबीज को नियंत्रित करने में कारगर साबित हुआ है। दूसरी ओर, इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि कुत्तों को हटाने से कुत्तों की आबादी के घनत्व या रेबीज के प्रसार पर कोई खास असर पड़ता है। Dog Lovers | buzz street dogs | Delhi dog bite incidents | Delhi NCR Street Dogs | dog bite news 2024 | beware of street dogs 

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