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पहलगाम के आतंकी हमले में 26 लोगों की हत्या के बाद भारत ने तीखे तेवर दिखाते हुए सिंधू जल समझौते को सस्पेंड करके पाकिस्तान को जाने वाले पानी को रोकने का ऐलान कर दिया है। लेकिन क्या भारत वाकई ऐसा कर सकता है। क्या विश्व बैंक उसे ऐसा करने देगा और क्या तकनीकी तौर पर भारत आनन फानन में ऐसा करने में सक्षम है। इंटरनेशनल पालिसी एक्सपर्ट Dr Biksham Gujja के नजरिये से देखें तो ये नामुमकिन सा है।
पंडित नेहरू और अयूब खान ने किए थे दस्तख
Indus Water Treaty पर 19 सितंबर, 1961 को कराची में भारत की ओर से पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान की ओर से तत्कालीन सैन्य तानाशाह अयूब खान ने दस्तखत किए थे। विश्व बैंक इसका गारंटर था। संधि में लगभग 85 पेज हैं, जिसमें एक प्रस्तावना, 12 अनुच्छेद, ए से एच तक के अनुलग्नक और कई परिशिष्ट हैं। यह संधि 1962 में प्रभावी हुई। इस संधि को अंतर्राष्ट्रीय जल नीति क्षेत्र में एक मील का पत्थर माना जाता है। हैरत की बात नहीं कि कई मर्तबा दोनों देशों के बीच तनाव पैदा हुआ लेकिन इन सबके बावजूद यह संधि बदस्तूर चलती रही।
यह खास अपने आप में काफी अहमियत वाली है। सिंधु नदी की 5 सहायक नदियां सतलुज, ब्यास, रावी, झेलम और चिनाब हैं। ये सभी नदियां मिलकर ही सारे सिस्टम को बनाती हैं। संधि के अनुच्छेद II और III में, पूर्वी नदियां सतलुज, ब्यास और रावी भारत को मिली हैं, जबकि पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम और चिनाब पाकिस्तान को दी गई हैं। भारत के पास पश्चिमी नदियों के उपयोग का अधिकार भी है। भारत इनमें जलविद्युत उत्पादन करने के साथ बांधों और जलाशयों का निर्माण करता रहता है।
PIC पर है समझौते को लागू कराने का जिम्मा
संधि के अनुच्छेद VIII में एक स्थायी सिंधु आयोग (PIC) बनाने का प्रावधान है। इसमें दो सदस्य होते हैं। प्रत्येक को एक देश द्वारा नियुक्त किया जाता है। संधि से संबंधित सभी पहलुओं को लागू करने, बातचीत करने और निगरानी करने की जिम्मेदारी PIC पर है। इसकी 118 बैठकें हो चुकी हैं। आखिरी मर्तबा बैठक 31 मई, 2022 को दिल्ली में हुई थी। 119वीं बैठक रद्द हुई थी, क्योंकि भारत संधि पर पुर्नविचार करना चाहता था।
IWT में किसी भी पक्ष के लिए संधि से बाहर निकलने या उसे निरस्त करने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। हालांकि, कोई भी देश हमेशा किसी भी संधि या समझौते से बाहर निकल सकता है। मौजूदा विवाद अनुच्छेद IX के अंतर्गत आता है। इसके खंड 2 में कहा गया है कि संधि का उल्लंघन होने पर आयोग की तरफ से जांच की जाएगी।
विवाद पैदा होने पर तटस्थ विशेषज्ञ करता है समाधान
विवाद को सुलझाने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति का प्रावधान भी संधि में है। यह अनुच्छेद IX के अनुलग्नक F में दर्ज है। 2005 में जब भारत चेनाब पर बगलिहार बांध बनाना चाहता था तो पाकिस्तान ने आपत्ति जताई थी। स्विस विशेषज्ञ रेमंड लाफिट के इनपुट के आधार पर विवाद का समाधान किया गया। दोनों देशों ने विशेषज्ञों के सुझावों पर सहमति जताई और मसला सुलझ गया।
विश्व बैंक की दहलीज पर जा सकता है पाकिस्तान
मौजूदा स्थिति अलग है। भारत न केवल संधि से बाहर निकलना चाहता है, बल्कि जल प्रवाह को भी रोकना चाहता है। अनुच्छेद IX (5) के अनुलग्नक G के तहत पाकिस्तान के पास विश्व बैंक से मध्यस्थता न्यायालय का गठन करने का विकल्प है। चाहें भारत अवहेलना करे, लेकिन संधि के गारंटर के रूप में विश्व बैंक का दायित्व है कि वह मध्यस्थता न्यायालय की स्थापना करे। मध्यस्थता न्यायालय का फैसला आने से पहले अंतरिम उपायों का प्रावधान है। कोई भी पक्ष न्यायालय से अनुरोध कर सकता है कि अंतिम फैसले तक वह कुछ ऐसा करे जिससे उसके हितों की रक्षा हो सके।
संभावना है कि मौजूदा मामले में पाकिस्तान इस तरह के अंतरिम उपाय की मांग करेगा और मध्यस्थता अदालत के लिए इसे खारिज करना मुश्किल होगा। भारत अंतरिम आदेश और पूरी मध्यस्थता प्रक्रिया को अनदेखा करने का विकल्प चुन सकता है। लेकिन ऐसा करने से जो स्थिति बनेगी वो मुफीद नहीं रहने वाली है।
तकनीकी तौर पर भी पानी रोकना अभी बेहद मुश्किल
आईडब्ल्यूटी से बाहर निकलकर पानी रोकने का फैसला तकनीकी तौर पर भी मुश्किल भरा है। भले ही भारत पानी को मोड़ने के लिए भंडारण इकाइयों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दे, लेकिन डाउनस्ट्रीम प्रवाह में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में दशकों का समय और बहुत सारा पैसा लग सकता है। कहने की जरूरत नहीं कि पानी को रोकने की खोखली धमकियां भारत की साख पर भी बट्टा लगा सकती हैं।
कहीं देश के भीतर इस तरह का माहौल बन गया तो...
इस तरह के फैसले का असर देश के भीतर भी दिख सकता है। भारत के कई राज्य पानी को लेकर एक दूसरे से गुत्मगुत्था हैं। केंद्र सरकार चाहकर भी तमिलनाडु-कर्नाटक और पंजाब-हरियाणा या फिर हरियाणा-दिल्ली के बीच फैसला नहीं करा सका है कि पानी का बंटवारा कैसे किया जाए। पंजाब तो असेंबली से प्रस्ताव पारित करके न्यायिक व्यवस्था को भी धता बता चुका है। भारत सरकार इस तरह का फैसला लेती है तो राज्य कहीं इसी रास्ते पर न चल निकलें, ये खतरनाक होगा।