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अवधेश कुमार
विलुप्त पौराणिक नदी सरस्वती के पुनर्जीवन की दिशा में चल रहे प्रयास अब उम्मीद की किरण जगाने लगे हैं। पहलगाम में आतंकी हमले बाद भारत सरकार ने पड़ोसी पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता खत्म करने का फैसला लिया है। य़ह कार्रवाई सरस्वती पुनर्जीवन में वरदान सी दिखाई दे रही है। सिंधु से पाकिस्तान के हिस्से के पानी में से बड़े हिस्से से सरस्वती के चैनल का गला तर करने की चर्चा शुरू हुई है।
धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टि से महत्व
सरस्वती नदी धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टि से महत्व की है। इस नदी का उल्लेख ऋग्वेद और कई अन्य वैदिक साहित्य में कई स्थानों पर किया गया है। लुप्त सरस्वती नदी उत्तर-पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों में एक बड़ी नदी थी जो हिमालय से निकलकर सतलुज-यमुना इंटरफ्लू में हरियाणा, राजस्थान से होकर कच्छ के रास्ते अरब सागर तक बहती थी। इसके विलुप्त होने को लेकर कई कहानियां हैं।
वर्ष 1980 में नासा ने किया था सर्वेक्षण
कुछ पौराणिक कथाएं हैं तो कुछ वैज्ञानिक-भौगोलिक और पर्यावरणीय कारक। वर्ष 1980 में नासा ने इस इलाके का सर्वे कर कुछ सेटेलाइट तस्वीरें जारी की थी। इसमें जमीन के नीचे एक नदी के बहने के संकेत मिले। यहीं से सरस्वती को लेकर चर्चा और शोध शुरू हुए। सरस्वती की खोज के लिए सरस्वती नदी शोध संस्थान के अध्यक्ष रहे स्व. दर्शन लाल जैन का प्रयास अतुलनीय है। उन्होंने सरस्वती नदी शोध संस्थान की स्थापना की और अंतिम समय तक अपने मिशन में लगे रहे। वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।
सरस्वती नदी के चैनल
वर्ष 1990 में नासा ने फिर से जो मैप जारी किया, उसमें यमुनानगर (हरियाणा) के पास स्थित आदिब्रदी से लेकर राजस्थान तक जमीन के नीचे सरस्वती नदी के चैनल को दिखाया गया। वर्ष 1993 में इसरो ने इस पर काम शुरू किया। उसने अपनी रिपोर्ट में सरस्वती के होने की पुष्टि की। सर्वे ऑफ इंडिया के 1965 के नक्शे में भी सरस्वती नदी का जिक्र है। हरियाणा के राजस्व रिकार्ड में भी सरस्वती नदी मौजूद है। नासा का मैप भी सरस्वती का वही रूट बताता है जो राजस्व रिकार्ड में है।
इसके बाद हरियाणा सरकार ने रुचि लेकर सरस्वती पुनर्जीवन के लिए न सिर्फ योजना बनाई बल्कि 2015 में हरियाणा सरस्वती हेरिटेज विकास बोर्ड का गठन भी किया।
सरस्वती नदी की खोदाई का कार्य शुरू हुआ
इसी वर्ष बिलासपुर(यमुनानगर) के गांव रुलहाखेड़ी में सरस्वती नदी की खोदाई का कार्य शुरू हुआ था। यमुनानगर जिले में स्थित स्थान आदिबद्री को सरस्वती का उद्गम स्थल माना जाता है। यहां पर बांध बनाने के लिए हरियाणा व हिमाचल प्रदेश की सरकारों के बीच समझौता हुआ था। बांध बनाने का काम चल रहा है।
तय योजना के मुताबिक आदिबद्री में सरस्वती नदी के उद्गम स्थल से ऊपर की ओर पहाड़ी क्षेत्र में डैम बनाकर पानी एकत्रित किया जाएगा। य़ह पानी सरस्वती नदी के उद्गम स्थल से गुजार कर सरस्वती सरोवर में छोड़ा जाएगा। दूसरे चरण में रामपुर गेंडा में जाने वाले पुल से 400 मीटर दूरी पर बनने वाले बैराज में पानी एकत्रित कर सरस्वती नदी के प्रवाह में शामिल किया जाएगा। इसके बाद तीसरे बड़े प्रोजेक्ट में रामपुर कंबोयान के समीप झील बनेगी जिससे सरस्वती नदी का प्रवाह छोड़ा जाएगा।
सरस्वती बारहमासी पानी से भरपूर नदी बन जाएगी
पहलगाम घटना के बाद ताजा घटनाक्रम में पाकिस्तान का पानी बंद करने से सतलुज, रावी, ब्यास के साथ सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का पानी भी यहां लाने की संभावना बलवती हुई है। इससे सरस्वती बारहमासी पानी से भरपूर नदी बन जाएगी। अगर य़ह सम्भव हुआ तो न केवल किसानों को फायदा होगा, बल्कि सरस्वती नदी की धार्मिक महत्ता भी बढ़ेगी। हरियाणा सरस्वती हेरिटेज बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन धुम्मन सिंह किरमच हिमाचल प्रदेश से सतलुज नदी के पानी को सरस्वती नदी में लाने को लेकर बहुत आशान्वित हैं।
हरियाणा स्पेस सेंटर के निदेशक सुल्तान सिंह और केंद्रीय जल आयोग के उपनिदेशक पी दोरजे ज्यांबा से गत दिनों वर्चुअल बैठक के बाद वे कहते हैं सतलुज समेत बाकी नदियों के पानी को सोलन या बिलासपुर, फिर नाहन की मातर खोल व भैरो की खोल के रास्ते शिमला होते हुए टौंस नदी के माध्यम से सरस्वती नदी में लाया जा सकता है। इसके लिए प्रस्ताव बनाने की तैयारी शुरू हो गई है।
अप्रैल के आखिरी सप्ताह में सरस्वती नदी को लेकर राजस्थान सरकार की पहल पर एक मीटिंग सरस्वती हेरिटेज बोर्ड के साथ बिरला विज्ञान अनुसंधान संस्थान जयपुर में हुई। बैठक में राजस्थान के सिंचाई मंत्री सुरेश रावत और सरस्वती बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन धूमन सिंह, बिरला विज्ञान अनुसंधान संस्थान के सुदूर संवेदन विभाग के प्रमुख डॉ. महावीर पूनिया मौजूद रहे। इसरो के रिटायर्ड डायरेक्टर डॉ. जेआर शर्मा और डॉ. बीके भद्रा और अन्य विशेषज्ञ वर्चुअल उपस्थित रहे। इसमें राजस्थान में भी सरस्वती के पुनर्जीवन की योजना पर चर्चा हुई।
राजस्थान में पुष्कर झील, गुजरात का सिद्धपुर बड़ा क्षेत्र सरस्वती के पेलियो चैनल से जुड़े हैं। दिसंबर 2024 को राजस्थान सरकार और डेनमार्क दूतावास के बीच सरस्वती नदी के पेलियोचैनल्स के पुनरुद्धार के लिए एक महत्वपूर्ण एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। इसके अतिरिक्त, केंद्रीय और राज्य भूजल विभागों को भी इस महत्वाकांक्षी परियोजना से जोड़ने की प्रक्रिया चल रही है। केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) जोधपुर और आईआईटी बीएचयू ने इस परियोजना में भागीदारी के लिए अपनी सहमति दे दी है।