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मोसाद ने कराई राहुल-पित्रौदा की जासूसी, हिंडनबर्ग से मिलकर की थी अदाणी के खिलाफ साजिश!

इसरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी तथा उनके सलाहकार सैम पित्रौदा की जासूसी की थी। दावा किया गया है कि इसके माध्यम से मोसाद ने राहुल गांधी और सैम पित्रोदा और उनके हिंडनबर्ग रिसर्च के साथ कथित संबंधों का खुलासा किया था। 

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Mukesh Pandit
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HINDUSBURG RESEACH
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दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।  इसरायल की शक्तिशाली खुफिया एजेंसी मोसाद ने कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी तथा उनके सलाहकार सैम पित्रौदा की जासूसी की थी। दावा किया गया है कि इसके माध्यम से मोसाद ने राहुल गांधी और सैम पित्रोदा तथा उनके हिंडनबर्ग रिसर्च के साथ कथित संबंधों का खुलासा किया था। अब इस खुलासे से देश की राजनीति में सियासी तूफान उठ खड़ा हो सकता है। रिपोर्ट में गंभीर आरोप हैं कि राहुल गांधी और सैम पित्रोदा ने अमेरिकी शॉर्ट-सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग के साथ मिलकर अदानी समूह को निशाना बनाया, जिसका उद्देश्य भारत में मोदी सरकार को अस्थिर करना था। दावा किया जा रहा है कि मोसाद ने सैम पित्रोदा के होम सर्वर को हैक कर तमाम गतिविधियों के सबूत जुटाए। जासूसी कथित तौर पर इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के निर्देश पर शुरू की गई थी गए इस मिशन का उद्देश्य  विपक्षी नेताओं और विवादास्पद अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च के बीच के गठजोड़  को उजागर करना था।

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राहुल का हिडनबर्ग से क्या कनेक्शन था 

रूसी समाचार एजेंसी 'स्पुतनिक" के सूत्रों के अनुसार, इस मामले में  मोसाद की संलिप्तता 24 जनवरी, 2023 के तुरंत बाद उस समय शुरू हुई थी जब शॉर्ट शेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह द्वारा शेयरों में मैन्युप्लेशन करके भारतीय इतिहास में सबसे बड़ी कॉपोरेट धोखाधड़ी का कथित खुलासा किया था। इस खुलासे के बाद अडानी समूह के शेयरो में 60 से 70 प्रतिशत तक की गिरावट हुई और ग्रुप को लगभग 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ और भारत में शेयर बाजार में बड़ी गिरावट आई। politics | Indian politics | India Politics 2025 | rahul gandhi | rahul gandhi america visit not present in content

अदाणी-नेतन्याहू की बैठक में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर हुई चर्चा

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रिपोर्ट में यह रहस्योद्घाटन किया गया है कि जिस वक्त हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई उस समय, अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (APSEZ)ने इसराइल में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हाइफ़ा पोर्ट में हिस्सेदारी हासिल करने के लिए 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के समझौते को अंतिम रूप दिया था। यह सौदा, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEEC) के लिए एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक और आर्थिक परियोजना के रूप में देखा गया था।स्पुतनिक की रिपोचेअनुसार, हाइफ़ा पोर्ट अधिग्रहण को चिह्नित करने के लिए इसराइल में एक बैठक के दौरान प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी के साथ बैठक की थी। इसमें इसरायली पीएम ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट के औचित्य पर सवाल उठाते हुए पूछा, यह रिपोर्ट, यह आपके (अदाणी) के व्यवसाय के लिए एक गंभीर खतरा है, है न?” 

अदाणी ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को झूठ बताया था

सूत्रों ने बताया कि अडानी ने आरोपों को खारिज करते हुए जवाब दिया, बिल्कुल नहीं। यह सब झूठ है। लेकिन, नेतन्याहू इनके उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए थे। उन्होंने कथित तौर पर कहा, "भले ही आपको(अदाणी) कोई खतरा न दिखे, हमें चिंतित होना चाहिए। क्योंकि यह रिपोर्ट न केवल बंदरगाह सौदे को बल्कि भारत से संबंधों को भी नुकसान पहुंच सकता है।" हिंडनबर्ग के आरोपों को इसरायल के हितों पर "अप्रत्यक्ष हमला" बताते हुए, नेतन्याहू ने कथित तौर पर अदाणी को आश्वासन दिया: "इजरायल अपने दोस्तों की रक्षा करने में विश्वास करता है। हम इस पर गंभीरता से विचार करेंगे"। कहा जा रहा है कि उस वक्त अदाणी को पता नहीं था कि नेतन्याहू ने मोसाद को सक्रिय करने का फैसला पहले ही कर लिया था। रूसी समाचार एजेंसी स्पुतनिक के अनुसार, इस निर्णय के कारण "ऑपरेशन ज़ेपेलिन" शुरू हुआ। इस ऑपरेशन का मकसद हिंडनबर्ग रिपोर्ट और उसके बाद के नतीजों को अंजाम देने या उसका समर्थन करने वाले संदिग्ध अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को ट्रैक करने का था। मोसाद की इकाइयां - त्ज़ोमेट (मानव खुफिया में विशेषज्ञता) और केशेट (साइबर संचालन पर आधारित) को इस काम के लिए लगाया गया। 

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हिंडनबर्ग के संस्थापक एंडरसन थे निशाने पर 

हिंडनबर्ग के संस्थापक, नाथन एंडरसन और उनके न्यूयॉर्क स्थित कार्यालय की मोसाद ने निगरानी में रखा गया। मोसाद ने साजिश को ट्रैक करना शुरू किया। जिसमें कार्यकर्ता वकील, सहानुभूतिपूर्ण मीडिया आउटलेट, हेज फंड और हाई-प्रोफाइल राजनीतिक अभिनेता शामिल थे। इनमें से कई लोगों के बिडेन प्रशासन, अमेरिका में डीप स्टेट और जॉर्ज सोरोस के लोगों से जुड़े होने की बात कही गई थी। निगरानी अभियान के अंतर्गत मोसाद को राहुल गांधी और सैम पित्रोदा सहित प्रमुख भारतीय विपक्षी हस्तियों तक पहुंचाया। जांच से संबंधित स्रोतों का हवाला देते हुए, स्पुतनिक ने दावा किया कि पित्रोदा के यूएस-आधारित होम सर्वर से निकाले गए एन्क्रिप्टेड डेटा ने गुप्त संचार और बैकचैनल इंटरैक्शन का खुलासा किया जो कथित तौर पर उन्हें हिंडनबर्ग और उसके वैश्विक समर्थकों से जोड़ता है।

राहुल गांधी को खास नाम से टारगेट किया

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दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी, जिन्हें मोसाद की आंतरिक फाइलों में "खास नाम दिया गया है। मोसाद ने तथ्य जुटाए कि अदाणी और मोदी सरकार दोनों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए हिंडनबर्ग के नेटवर्क के साथ सक्रिय रूप से समन्वय कर रहे थे। खुफिया जानकारी के अनुसार गांधी मई 2023 में कैलिफोर्निया के पालो ऑल्टो में थे, जहां कहा जाता है कि उन्होंने हिंडनबर्ग ऑपरेशन से जुड़े व्यक्तियों से मुलाकात की थी। इसके अलावा, जांच रिपोर्ट बताती है कि राहुल गांधी ने न्यूयॉर्क में नाथन एंडरसन के साथ निजी बैठकें भी की थीं। हालांकि अधिकांश रिपोर्ट सोशल मीडिया पर प्रसारित तथ्यों पर आधारित हैं, इनकी अधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की जा सकती है। 

कांग्रेस पर आरोप मनगढ़ंत

उधर, कांग्रेस ने हिंडनबर्ग, सोरोस या किसी भी विदेशी हस्तक्षेप अभियान के साथ किसी भी तरह की भागीदारी से इनकार किया है, उनका तर्क है कि ये आरोप हिंडनबर्ग रिपोर्ट की सामग्री से ध्यान हटाने के लिए तैयार की गई गलत रिपोर्ट का हिस्सा हैं। उल्लेखनीय है कि इस खुलासे ने भारत में राजनीतिक उथल-पुथल मचा दी थी। जिससे तीखी बहस हुई और पूरे संसदीय सत्र में व्यवधान हुआ। बताते दें मोसाद की जांच कथित तौर पर भारत और अमेरिका से आगे बढ़कर यूरोप, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया तक फैली हुई थी। सितंबर 2023 में, एजेंसी ने एंडरसन से एक ईमेल को डिक्रिप्ट किया है जिसमें व्यापक योजना की बात कही गई है। ईमेल में कथित तौर पर लिखा था, "नेट की रिपोर्ट तो बस शुरुआत थी। और भी बहुत कुछ आने वाला है।" जनवरी 2024 में, अदाणी को औपचारिक रूप से ऑपरेशन ज़ेपेलिन के बारे में इज़राइली खुफिया विभाग द्वारा जानकारी दी गई थी।

मोसाद: इजरायल की खुफिया एजेंसी

मोसाद, जिसका पूरा नाम "इंस्टीट्यूट फॉर इंटेलिजेंस एंड स्पेशल ऑपरेशंस" है, इजरायल की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी है। 13 दिसंबर, 1949 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड बेन-गुरियन के आदेश पर स्थापित किया गया, मोसाद को दुनिया की सबसे प्रभावी और रहस्यमयी खुफिया एजेंसियों में से एक माना जाता है। इसका मुख्य कार्य विदेशी खुफिया जानकारी जुटाना, गुप्त ऑपरेशनों को अंजाम देना, और इजरायल की राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। मोसाद के कुछ प्रसिद्ध ऑपरेशनों में ऑपरेशन डायमंड (1966 में इराक से मिग-21 विमान चुराना) और एली कोहेन जैसे जासूसों के माध्यम से सीरिया में गहरी घुसपैठ शामिल हैं। मोसाद का इतिहास जटिल और विवादास्पद रहा है। यह अपने लक्षित हत्याओं (targeted killings) और उच्च-स्तरीय जासूसी के लिए जाना जाता है, लेकिन इसे कई असफलताओं और आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है, जैसे कि 2023 में हमास के हमले को रोकने में विफलता।

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