Advertisment

‘अपने शरीर की सुनें’: WHO scientis सौम्या ने 70-90 घंटे की वकालत करने वालों को दिया जवाब

सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है कि लंबे समय तक ज्यादा काम करने से ‘बर्नआउट’ की स्थिति पैदा होती है और दक्षता कम होती है, इसलिए लोगों को अपने शरीर की बात सुननी चाहिए और यह जानना चाहिए कि कब उन्हें आराम की आवश्यकता है। 

author-image
Mukesh Pandit
WHO scientis सौम्या

Photograph: (file)

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क

Advertisment

देश में सप्ताह में कभी 70 घंटे तो कभी 90 घंटे काम करने को लेकर जारी चर्चाओं के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक एवं स्वास्थ्य मंत्रालय में सलाहकार रहीं सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है कि लंबे समय तक ज्यादा काम करने से ‘बर्नआउट’ की स्थिति पैदा होती है और दक्षता कम होती है, इसलिए लोगों को अपने शरीर की बात सुननी चाहिए और यह जानना चाहिए कि कब उन्हें आराम की आवश्यकता है। 

काम के दबाव से होने वाली थकान ‘बर्नआउट’है

WHO के अनुसार, दफ्तर में काम के दबाव के कारण होने वाली थकान ‘बर्नआउट’ है। या कह सकते हैं कि बर्नआउट भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक थकावट की स्थिति है जो अत्यधिक और लंबे समय तक तनाव के कारण होती है। डब्ल्यूएचओ ने इसे बीमारी के रूप में वर्गीकृत किया है। सौम्या स्वामीनाथन ने समाचार एजेंसी को दिए गए साक्षात्कार में कहा कि लंबे समय तक जी-जान लगाकर काम नहीं किया जा सकता, यह बस कुछ वक्त तक ही संभव है जैसा कि कोविड-19 के दौरान देखा गया। स्वामीनाथन ने जोर देकर कहा कि उत्पादकता काम के घंटे के बजाये काम की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। 

Advertisment

आपका शरीर बता देता है कि कब वह थका है

लंबे समय तक ज्यादा घंटे काम करने का मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की पूर्व महानिदेशक ने कहा, ‘‘मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानती हूं जो बहुत मेहनत करते हैं। मेरा मानना है कि यह व्यक्ति पर निर्भर करता है और आपका शरीर बता देता है कि कब वह थका है तो आपको उसकी सुननी चाहिए। आप वाकई कड़ी मेहनत कर सकते हैं पर कुछ महीनों के लिए। कोविड के दौरान हम सभी ने ऐसा किया है न? लेकिन क्या हम इसे वर्षों तक जारी रख सकते है? मुझे नहीं लगता।’’ 

"हम ज़्यादा नहीं सोते थे, हम ज़्यादातर समय तनाव में रहते थे, चीज़ों को लेकर चिंता में रहते थे, ख़ास तौर पर स्वास्थ्य सेवा प्रदाता। वे चौबीसों घंटे काम करते थे, बर्नआउट के मामले भी थे, उसके बाद कई लोगों ने वह पेशा ही छोड़ दिया... यह थोड़े वक्त के लिए किया जा सकता है, लंबे वक्त तक नहीं।"  सौम्या स्वामीनाथन, वैज्ञानिक एवं पूर्व स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाहकार

Advertisment

मानसिक स्वास्थ्य और आराम जरूरी

स्वामीनाथन ने कहा, ‘उन दो-तीन साल में हमने ऐसा किया। हम ज़्यादा नहीं सोते थे, हम ज़्यादातर समय तनाव में रहते थे, चीज़ों को लेकर चिंता में रहते थे, ख़ास तौर पर स्वास्थ्य सेवा प्रदाता। वे चौबीसों घंटे काम करते थे, बर्नआउट के मामले भी थे, उसके बाद कई लोगों ने वह पेशा ही छोड़ दिया... यह थोड़े वक्त के लिए किया जा सकता है, लंबे वक्त तक नहीं।' उन्होंने कहा कि अच्छे तथा लगातार प्रदर्शन के लिए मानसिक स्वास्थ्य और आराम जरूरी है। स्वामीनाथन ने कहा कि यह सिर्फ़ काम के घंटों की संख्या के बारे में नहीं है, बल्कि उस समय में किए गए काम की गुणवत्ता के बारे में भी है।  उन्होंने कहा, ‘आप 12 घंटे तक अपनी मेज़ पर बैठ सकते हैं लेकिन हो सकता है कि आठ घंटे के बाद आप उतना अच्छा काम न कर पाएं। इसलिए मुझे लगता है कि उन सभी चीज़ों पर भी ध्यान देना होगा।' 

इनके बयान से छिड़ी थी बहस

Advertisment

दरअसल, इस साल की शुरुआत में लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के अध्यक्ष एस एन सुब्रह्मण्यन ने कहा था कि कर्मचारियों को घर पर रहने के बजाय रविवार सहित सप्ताह में 90 घंटे काम करना चाहिए जिसके बाद काम के घंटों को लेकर बहस छिड़ गई थी। सुब्रह्मण्यन से पहले इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने कहा था कि लोगों को सप्ताह में 70 घंटे काम करना चाहिए जिस पर अधिकतर लोगों ने उनसे असहमति जताई थी।

Advertisment
Advertisment