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अपनी तूफानी गति, तीव्रताऔर मारक क्षमता के बल पर भारतीय वायुसेना की शान रहा युद्धक विमान मिग-21 अब सेना से रिटायर हो रहा है। इसी वर्ष सितंबर में चंडीगढ़ एयरबेस पर एक विशेष समारोह में इसे भावभीनी विदाई दी जाएगी। लगभग 62 साल पहले वर्ष 1963 में शामिल हुए इस विमान ने 1965, 1971, 1999 और 2019 की सभी बड़ी सैन्य कार्रवाइयों में भाग लिया। ऑपरेशन सिंदूर में भी यह विमान एक्टिव रहा। मिग 21 ने वायुसेना को कई दशकों तक शक्ति और ताकत दी, हालांकि एक-के बादएक हादसों ने इस शानदार विमान को 'फ्लाइंग कॉफिन' जैसा नाम भी दिया।
पैंथर्स स्क्वाड्रन से होगी अंतिम विदाई
मिग 21 के आखिरी विमान 23 स्क्वाड्रन यानी पैंथर्स यूनिट में हैं। इन विमानों को 19 सितंबर को चंडीगढ़ एयरबेस पर आयोजित समारोह में आधिकारिक रूप से रिटायर कर दिया जाएगा। इस मौके पर एयरफोर्स के सीनियर अधिकारी और मिग 21 से जुड़े पूर्व पायलट भी मौजूद रहेंगे। फ्लाईपास्ट और स्टैटिक डिस्प्ले के जरिए इस ऐतिहासिक पल को खास बनाने की योजना है।
मिग 21 को वर्ष 1963 में वायुसेना में शामिल किया गया था, और इसने 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध, 1971 में बांग्लादेश की लड़ाई, 1999 के कारगिल युद्ध और 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक में भाग लिया। वर्तमान में चल रहे ऑपरेशन सिंदूर में भी यह विमान एक्टिव रहा। यह अब तक का एकमात्र लड़ाकू विमान है जो भारतीय वायुसेना के दो तिहाई इतिहास का हिस्सा रहा है।
कितना है वायुसेना का लड़ाकू स्क्वाड्रन?
मिग 21 की विदाई के बाद वायुसेना के पास केवल 29 लड़ाकू स्क्वाड्रन बचेंगे, जो कि 1960 के दशक के बाद सबसे कम संख्या है। 1965 के युद्ध के समय वायुसेना के पास 32 स्क्वाड्रन थे। पहले योजना थी कि मिग 21 की जगह स्वदेशी लड़ाकू विमान एलसीए तेजस लेंगे, लेकिन उनकी सप्लाई में लगातार देरी होती रही है। पिछले दिनों वायुसेना प्रमुख ने भी सप्लाई चेन पर सवाल खड़े किए थे।
बताते दें किभारत ने कुल 850 से ज्यादा मिग 21 विमान हासिल किए थे, जिनमें से लगभग 600 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा भारत में बनाए गए थे। लंबे समय तक इन्हें एक्सटेंशन देकर सर्विस में बनाए रखा गया, क्योंकि नए लड़ाकू विमान समय पर नहीं मिल पाए थे। मिग 21 ने न केवल युद्धों में बल्कि हर भारतीय लड़ाकू पायलट की ट्रेनिंग और करियर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
दुर्घटना की वजह से मिग पर लगा दाग
पिछले 10 सालों में भारत के करीब 20 मिग 21 लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं। इन हादसों में लगभग 10 से ज्यादा पायलटों की जान भी गई है। अधिकतर दुर्घटनाएं तकनीकी खराबी, पक्षियों से टकराव या विमान के पुराने होने की वजह से हुईं। कई अपग्रेड के बावजूद मिग 21 को “फ्लाइंग कॉफिन” कहा जाने लगा. क्योंकि इसमें हादसों का खतरा बना रहा। बता दें कि मिग-21 बाइसन स्क्वाड्रन ने लगभग छह दशकों तक देश की सेवा की है और भारत-पाक संघर्षों के दौरान युद्ध प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ‘ओरियल्स’ के नाम से जाना जाने वाला स्क्वाड्रन 1966 से मिग-21 का संचालन कर रहा है और अब इसे सुखोई-30 एमकेआई विमान से सुसज्जित किया जा रहा है। यह परिवर्तन देश के आसमान को आधुनिक बनाने और उसकी रक्षा करने के लिए भारतीय वायु सेना की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
मिग विमान क्यों हटाए जा रहे?
मिग-21 के पुराने पड़ने और लगातार हादसों का शिकार होने के कारण वायुसेना ने इनको बेडे़ से हटाने का फैसला लिया था। इसी साल मई में एक मिग विमान राजस्थान के एक गांव में गिर गया था। घटना में 3 लोगों की मौत हुई थी। मिग-21 से अभी तक 400 से अधिक हादसे हो चुके हैं। इसी कारण इसे ‘उड़ता ताबूत’ भी कहा जाता है। सभी मिग-21 को 2025 की शुरूआत तक चरणबद्ध तरीके से हटा दिया जाएगा। भारतीय वायुसेना में मिग-21 लड़ाकू विमान को 1963 में शामिल किया गया था। मौजूदा समय में वायुसेना के पास 31 स्क्वाड्रन थे, जिनमें 3 मिग-21 बाइसन संस्करण के थे। तब से अब तक मिग-21 ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और 1999 के कारगिल युद्ध समेत कई मौकों पर अहम भूमिका निभाई है। रूस ने 1985 में इसका निर्माण बंद कर दिया, लेकिन भारत इसके अपग्रेडेड वैरिएंट का इस्तेमाल करता रहा है। MiG 21 retirement | Indian Air Force news | Indian Defence Forces | MiG 21 September phase-out