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रेयर अर्थ एलिमेंट्स जिसके पास, वही बनेगा 21 वीं सदी का 'बादशाह', चीन का घमंड तोड़ना जरूरी

‘चीन के प्रतिबंध से प्रभावित होने वाले प्रमुख क्षेत्रों में परिवहन उपकरण, मूल धातुएं, मशीनरी, निर्माण और विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं। इन क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन और निर्यात दोनों प्रभावित होंगे। ‘दुर्लभ खनिजों में चीन का दबदबा है।’

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Mukesh Pandit
Rare Earth
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। अपने एकाधिकार के कारण रेयर अर्थ एलिमेंट्स को लेकर चीन दुनिय़ाभार को धौंस दिखा रहा है। खासतौर पर इसका सीधा असर भारत में पांच क्षेत्रों में उत्पादन, निर्यात पर पड़ेगा।  एसबीआई अर्थशास्त्रियों की एक रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2024-25 में दुर्लभ मृदा खनिजों और यौगिकों का कुल आयात 3.19 करोड़ डॉलर और चुम्बक का आयात 2.91 करोड़ डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया है। इसमें कहा गया, ‘चीन के प्रतिबंध से प्रभावित होने वाले प्रमुख क्षेत्रों में परिवहन उपकरण, मूल धातुएं, मशीनरी, निर्माण और विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं। इन क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन और निर्यात दोनों प्रभावित होंगे।’’ एसबीआई अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट के मुताबिक, बैंकों सहित भारतीय वित्तीय संस्थानों पर भी इसका कुछ प्रभाव पड़ने का खतरा है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘दुर्लभ खनिजों और यौगिकों के व्यापार में चीन का दबदबा है।’ 

दुर्लभ खनिजों के आयात में तेज वृद्धि

उल्लेखनीय है कि रक्षा, ऑटोमोबाइल से लेकर मशीनरी निर्माण, विद्युत एवं इलेक्टॉनिक्स उद्योगों के लिए रेयर अर्थ एलिमेंट्स आज सबसे बड़ी जरूरत बनकर उभरा है।  भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार और एक प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग हब है, जहां मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स, महिंद्रा, और हुंडई जैसी कंपनियां वाहनों का निर्माण कर रही हैं। रेयर अर्थ मैग्नेट्स के बिना इलेक्ट्रिक वाहनों और ट्रेडीशनल वाहनों का उत्पादन लगभग असंभव है, क्योंकि ये मैग्नेट्स मोटरों, स्टीयरिंग, और अन्य महत्वपूर्ण घटकों में उपयोग होते हैं।

ऐसे में एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट भारत के साथ दुनिया केअन्य देशों के लिए चिंता में डालने वाली है। अर्थशास्त्रियों की एक रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2024-25 में दुर्लभ मृदा खनिजों और यौगिकों का कुल आयात 3.19 करोड़ डॉलर और चुम्बक का आयात 2.91 करोड़ डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत में दुर्लभ खनिजों और यौगिकों की खपत में वृद्धि हुई है। और वित्त वर्ष 2024-25 में दुर्लभ खनिजों (चुम्बक) के आयात में तेज वृद्धि हुई है। 

इसमें भारत द्वारा अपनाई जाने वाली प्राथमिकताओं को सूचीबद्ध किया गया है।  इसमें कहा गया है कि बैंकों सहित भारतीय वित्तीय संस्थानों पर भी इसका कुछ असर पड़ने का जोखिम है। एसबीआई की रिपोर्ट में राज्यों को ऐसे संसाधनों की बेहतर खोज सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त कदम उठाने की सिफारिश की गई है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हो सकती है। इसमें ओडिशा सरकार की 8,000 करोड़ रुपये की एक योजना का भी उदाहरण दिया गया है और गंजम जिले में खनिजों की खोज के प्रयासों का जिक्र किया गया है। 

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Earth Elements

क्या है REE 17 

बता दें, रेयर अर्थ एलिमेंट्स को आमतौर पर आरईएम या दुर्लभ पृथ्वी खनिज (आरईई) भी कहा जाता है। ये पृथ्वी में पाए जाने वाले 17 रासायनिक रूप से समान तत्वों का एक समूह होता है। हालांकि, दुर्लभ पृथ्वी खनिज दुर्लभ नहीं हैं और यह पृथ्वी की पपड़ी में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन, इन तत्वों को अलग करने और इनकी प्रोसेसिंग में काफी समय लगता है।  रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर चीन का एकाधिकार है। इसी के बलबूते वह दुनिया के देशों को लाल-लाल आंखें दिखाकर एक तरह की ब्लैकमेलिंग कर रहा है। 

चीन करता है 90 प्रतिशत वैश्विक आपूर्ति

चीन वैश्विक स्तर पर रेयर अर्थ एलिमेंट्स का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है, जो लगभग 90% वैश्विक आपूर्ति को नियंत्रित करता है। मई 2025 में, चीन ने रेयर अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात पर सख्त नियंत्रण लागू किए, जिसमें निर्यातकों को सरकारी लाइसेंस और अंतिम उपयोग प्रमाणपत्र (End-Use Certificate) प्राप्त करने की आवश्यकता शामिल है। यह कदम मुख्य रूप से अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के जवाब में उठाया गया है, लेकिन इसका असर भारत जैसे अन्य देशों पर भी पड़ रहा है। चीन के नए नियमों के अंतर्गत, निर्यातकों को यह सत्यापित करना होगा कि मैग्नेट्स का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं होगा, और दस्तावेजों को नई दिल्ली में चीनी दूतावास से सत्यापित कराना होगा। इससे फरमान से आपूर्ति शृंखला में देरी और अनिश्चितता बढ़ गई है।

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Rare Earth Elements

किन-किन वस्तुओं में होता है आरईई का प्रयोग

रेयर अर्थ एलीमेंट्स यानी आरईई का इस्तेमाल 200 से अधिक उच्च तकनीक वाली वस्तुओं के  निर्माण में किया जाता है। लेकिन वर्तमान में इसका 60 प्रतिशत अकेले चीन निकालता है, जबकि प्रसंस्करण में वह 90 फीसदी पहुंचता है। चीन इस दबदबे का इस्तेमाल ताकत के तौर पर भी करता है। जैसे नियोडिमियम, डिस्प्रोसियम, और प्रासियोडिमियम आधुनिक तकनीकों, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) और ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये तत्व उच्च-प्रदर्शन वाले स्थायी चुम्बकों (Permanent Magnets) जैसे नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) के निर्माण में उपयोग होते हैं, जो इलेक्ट्रिक मोटरों, पावर स्टीयरिंग, ब्रेक, और ऑडियो सिस्टम जैसे ऑटोमोबाइल के महत्वपूर्ण हिस्सों में आवश्यक हैं। 

इन तत्वों का होता है समूह

रेयर अर्थ एलिमेंट्स में 17 तत्व होते हैं, जिनमें- स्कैंडियम, येट्रियल, लैंथेनम, सेरियम, प्रजोडायमियम, नियोडिमियम, प्रोमेथियम, सैमेरियम, यूरोपियम, गैडोलीनियम, टर्बियम, डिस्प्रोसियम, होल्मियम, एर्बियम, थ्यूलियम, येटरबियम, ल्यूटेटियम जैसे तत्व शामिल होते हैं। रेयर अर्थ एलिमेंट्स का उपयोग स्मार्टफोन, सैन्य उपकरण, हथियार, इलेक्ट्रिक वाहन, पवन टर्बाइन, विमान इंजन, तेल शोधन, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों, चिकित्सा उपकरणों में किया जाता है। 

भारत में रेयर अर्थ एलिमेंट्स की उपलब्धता

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भारत में रेयर अर्थ एलिमेंट्स के भंडार मौजूद हैं, लेकिन उनका खनन और शोधन बहुत ही शुरुआती दौर में हैं। देश के पास रेयर अर्थ एलिमेंट्स के भंडार मुख्य रूप से मोनाजाइट खनिजों में पाए जाते हैं, जो तटीय क्षेत्रों, विशेषकर केरल, तमिलनाडु, और ओडिशा में उपलब्ध हैं। अनुमानित तौर पर भारत के पास 12 मिलियन टन रेयर अर्थ ऑक्साइड्स हैं, जो वैश्विक भंडार का तकरीबन 5% है।  इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL)देश में रेयर अर्थ खनन और प्रसंस्करण की प्रमुख कंपनी है, लेकिन इसकी क्षमता सीमित है। भारत अपनी जरूरत का 95% रेयर अर्थ सामग्री चीन से आयात करता है।

केंद्र की मोदी सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पहल के अंतर्गत रेयर अर्थ उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना बनाई है। खनन मंत्रालय और IREL ने ओडिशा और तमिलनाडु में प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित करने की घोषणा की है। इसके अलावा, भारत जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ क्वाड फ्रेमवर्क के तहत वैकल्पिक आपूर्ति शृंखला विकसित करने पर काम कर रहा है।सच्चाई है कि हम रेयर अर्थ मैग्नेट्स की जरूरत का लगभग 90% चीन से आयात करते हैं। अप्रैल 2025 में, चीन से स्थायी मैग्नेट्स का निर्यात 51% गिरकर 2,626 टन रह गया, जो भारत की आपूर्ति पर सीधा प्रभाव डालता है।

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