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कबूतर प्रेमियों को भी सुप्रीम कोर्ट से झटका, दाना खिलाने पर FIR के बांबे HC के आदेश पर रोक से इनकार

बांबे हाईकोर्ट ने कबूतरों को दाना डालने के स्थान यानी कबूतरखाना से संबंधित आदेश में नगर निगम के आदेशों की अवहेलना करते हुए कबूतरों को दाना डालने वालों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। इस आदेश के सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

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Mukesh Pandit
Supreme Court Decision
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। पुण्य कमाने और जीवों की रक्षा के लिए देशभर में प्रतिदिन पक्षीप्रेमी कबूतरों को दाना डालते हैं। इसके कई धार्मिक एवं ज्योतिषीय महत्व हैं, लेकिन मुंबई की नगर पालिका को कबूतरों को दाना डालना शायर पसंद नहीं।  दरअसल, हाईकोर्ट ने कबूतरों को दाना डालने के स्थान यानी कबूतरखाना से संबंधित आदेश में नगर निगम के आदेशों की अवहेलना करते हुए कबूतरों को दाना डालने वालों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट के इस आदेश के सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, लेकिन पशु प्रेमियों के बाद पक्षी प्रेमियों को भी सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेशों में दखल देने से इनकार किया। अदालत ने कहा कि इस अदालत का समानांतर हस्तक्षेप उचित नहीं है

क्या है मान्यता ःकबूतरों को दाना खिलाना एक अच्छा काम है और इसके कई धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व भी हैं। यह न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है बल्कि सकारात्मक ऊर्जा को भी बढ़ावा देता है। कबूतरों को दाना खिलाने से पितृ दोष शांत होता है।  यह ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा को शांत करता है।

संशोधन के लिए हाईकोर्ट जाएं अपीलकर्ता

सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के 'कबूतरखानों' के मामले में सोमवार को सुनवाई की और कहा, याचिकाकर्ता आदेश में संशोधन के लिए हाईकोर्ट जा सकता है। दरअसल, हाईकोर्ट ने कबूतरों को दाना डालने के स्थान यानी कबूतरखाना से संबंधित  आदेश में नगर निगम के आदेशों की अवहेलना करते हुए कबूतरों को दाना डालने वालों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट के इन आदेशों को सुप्रीम कोर्ट मे  चुनौती दी गई थी।

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चौराहों पर दाना डालने पर है रोक 

उल्लेखनीय है बांबे हाईकोर्ट ने कबूतरखानों को लेकर सख्त आदेश दिया है। इसमें दादर, चर्चगेट से लेकर विभिन्न स्थानों पर, चौराहों पर बने कबूतरखानों पर कबूतरों को दाना खिलाने से रोकने का आदेश दिया था। इसके बाद बीएमसी ने कार्रवाई की थी। उसने तमाम कबूतरखानों को तिरपाल से ढंक दिया था। पशु-पक्षी प्रेमियों और जैन समाज के लोगों ने इसका विरोध जताया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि कबूतर की बीट से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इससे फेफड़ों से संबंधित गंभीर बीमारी होने का खतरा है। हालांकि जैन समाज का कहना है कि यह जीवदया के खिलाफ है। कई कबूतरखाने सैकड़ों साल पुराने हैं और वहां लंबे समय से कबूतरों को दाना डालने की परंपरा चली आ रही है।  

दिल्ली-एनसीआर में भी उठ रही है आवाज

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कबूतरखानों को लेकर दिल्ली एनसीआर में भी आवाज उठ रही है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे वक्त आया है, जब उसने दिल्ली एनसीआर में आवारा कुत्तों को पकड़ने और उन्हें सुरक्षित जगहों पर ले जाने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए नगर निगम और संबंधित एजेंसियों को आदेश दिया है। दिल्ली-एनसीआर में चौराहों पर जगह-जगह दाना डालने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। कबूतर आते हैं और दाना चुग कर पंखों को फड़फड़ाते हुए उड़ते-फिरते हैं। Supreme Court pigeon feeding, Bombay HC FIR order, animal rights case, court news India

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