Advertisment

Supreme Court की टिप्पणी,  WorkPlace पर सीनियर डांटे तो वह जान बूझकर किया अपमान नहीं माना जाए

 न्यायालय ने फैसले में कहा है कि, यह एक ऐसे व्यक्ति की ओर से उचित अपेक्षा है जो यह देखता है कि उसके कनिष्ठ सहकर्मी अपने पेशेवर कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ निर्वहन करें।

author-image
Mukesh Pandit
सर्वोच्च न्यायालय
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।

Advertisment

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कार्यस्थल पर वरिष्ठ सहकर्मी की फटकार 'इरादतन किया गया अपमान' नहीं है, जिसके लिए आपराधिक कारवाई की आवश्यकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में व्यक्तियों के विरुद्ध आपराधिक आरोप लगाने की अनुमति देने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिससे कार्यस्थल पर अपेक्षित संपूर्ण अनुशासनात्मक माहौल बिगड़ सकता है। न्यायालय ने फैसले में कहा है कि, यह एक ऐसे व्यक्ति की ओर से उचित अपेक्षा है जो यह देखता है कि उसके कनिष्ठ सहकर्मी अपने पेशेवर कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ निर्वहन करें।

Supreme Court ने कहा, आरोपी को जेल में रखने के लिए पीएमएलए का दुरुपयोग बंद हो

अशिष्टता 504 के तहत इरादतन किया गया अपमान नहीं

Advertisment

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि महज गाली-गलौज, अशिष्टता, असभ्यता या अशिष्टता भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 504 के तहत इरादतन किया गया अपमान नहीं है। आईपीसी की धारा 504 शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करने से संबंधित है। दो साल तक की जेल की सजा के प्रावधान वाले इस अपराध को अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत धारा 352 से बदल दिया गया है, जो जुलाई 2024 से प्रभावी है। 

Unacceptable Comment: बंबई हाईकोर्ट की 'अवैध पत्नी', 'वफादार रखैल' जैसी टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त एजराज

सहायक प्रोफेसर का अपमान करने का आरोप था

Advertisment

शीर्ष अदालत का यह फैसला राष्ट्रीय बौद्धिक दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान के कार्यवाहक निदेशक के खिलाफ 2022 के आपराधिक मामले को खारिज करते हुए आया, जिन पर एक सहायक प्रोफेसर का अपमान करने का आरोप था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि निदेशक ने उनके खिलाफ उच्च अधिकारियों को शिकायत करने को लेकर अन्य कर्मचारियों के सामने उन्हें फटकार लगाई। यह भी आरोप लगाया गया कि निदेशक संस्थान में पर्याप्त पीपीई किट उपलब्ध कराने में विफल रहे, जिससे कोविड-19 के फैलने का बड़ा खतरा पैदा हो गया। 

"हमारा मानना है कि वरिष्ठ सहकर्मी की चेतावनी को धारा 504, आईपीसी के तहत ‘उकसाने के इरादे से जानबूझकर अपमान’ के रूप में नहीं माना जा सकता है, बशर्ते कि चेतावनी कार्यस्थल से संबंधित मामलों से संबंधित हो, जिसमें अनुशासन और उसमें कर्तव्यों का निर्वहन शामिल हो।" -सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा,आरोप पूरी तरह से काल्पनिक

Advertisment

न्यायालय ने कहा कि आरोप पत्र और उसमें दिए गए दस्तावेजों के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि आरोप पूरी तरह से काल्पनिक हैं और किसी भी तरह से उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 269 (लापरवाहीपूर्ण कार्य जिससे खतरनाक बीमारी फैल सकती है) और 270 (जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाला दुर्भावनापूर्ण कार्य) के तहत अपराध के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता। पीठ ने कहा, 'इसलिए, हमारा मानना है कि वरिष्ठ सहकर्मी की चेतावनी को धारा 504, आईपीसी के तहत ‘उकसाने के इरादे से जानबूझकर अपमान’ के रूप में नहीं माना जा सकता है, बशर्ते कि चेतावनी कार्यस्थल से संबंधित मामलों से संबंधित हो, जिसमें अनुशासन और उसमें कर्तव्यों का निर्वहन शामिल हो। न्यायालय के दस फरवरी के फैसले में कहा गया, यह एक ऐसे व्यक्ति की ओर से उचित अपेक्षा है जो यह देखता है कि उसके कनिष्ठ सहकर्मी अपने पेशेवर कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ निर्वहन करें।

Supreme Court: पीजी मेडिकल प्रवेश में राज्य कोटे का आरक्षण खत्म, बताया असंवैधानिक

Advertisment
Advertisment