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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बांग्लादेश इन दिनों एक नए राजनीतिक भूचाल से गुजर रहा है। नोबेल विजेता युनुस के समर्थन में जनता का जबरदस्त उभार देखा जा रहा है। सरकार के खिलाफ लगातार चौथे दिन सड़कों पर उतरकर लोग विरोध जता रहे हैं। राजधानी ढाका में भारी फोर्स की तैनाती और इंटरनेट पर प्रतिबंध जैसे हालात बन गए हैं। अब सवाल है - क्या युनुस की गिरफ्तारी राजनीति में भूचाल लाएगी या सेना लेगी सत्ता की बागडोर?
बांग्लादेश में इन दिनों नोबेल विजेता डॉ. मुहम्मद युनुस की गिरफ्तारी के खिलाफ चल रहा जनांदोलन चौथे दिन भी उग्र बना हुआ है। हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरकर प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के खिलाफ विरोध कर रहे हैं।
राजधानी ढाका समेत कई शहरों में इंटरनेट सेवा बाधित की गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हालात जल्द नहीं संभाले गए तो सेना एक बार फिर राजनीतिक सत्ता की ओर कदम बढ़ा सकती है। ऐसे में सवाल उठता है – क्या बांग्लादेश लोकतंत्र से सैनिक राज की ओर लौटेगा?
युनुस के समर्थन में जनता का गुस्सा क्यों?
डॉ. मुहम्मद युनुस, जिन्हें बांग्लादेश में 'गरीबों का मसीहा' माना जाता है, पर कथित भ्रष्टाचार और श्रम कानूनों के उल्लंघन के आरोप लगे हैं। लेकिन बड़ी संख्या में लोग इसे राजनीतिक साजिश मान रहे हैं।
युनुस समर्थकों का कहना है कि यह कार्रवाई सत्ता के खिलाफ बोलने की कीमत है। बांग्लादेश की युवा पीढ़ी, छात्र और कार्यकर्ता अब सड़कों पर आकर बदलाव की मांग कर रहे हैं।
सरकार की सख्त कार्रवाई और इंटरनेट बैन
सरकार ने विरोध को रोकने के लिए ढाका और अन्य प्रमुख शहरों में इंटरनेट सेवा को सीमित कर दिया है। भारी पुलिस और रैपिड ऐक्शन बटालियन की तैनाती की गई है। प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस और लाठीचार्ज की घटनाएं सामने आई हैं।
सरकार इसे ‘देशविरोधी तत्वों द्वारा भड़काई गई साजिश’ करार दे रही है।
क्या सेना करेगी वापसी? अतीत से डराने वाला संकेत
बांग्लादेश का राजनीतिक इतिहास देखें तो सेना पहले भी लोकतांत्रिक सरकारों के पतन में भूमिका निभा चुकी है। 2007 में भी सेना ने सत्ता संभाली थी जब राजनीतिक टकराव चरम पर था।
अब जब हालात फिर से हिंसक होते जा रहे हैं, राजनीतिक पर्यवेक्षक मान रहे हैं कि सेना एक बार फिर 'स्थिरता' के नाम पर हस्तक्षेप कर सकती है।
क्या हसीना सरकार खतरे में है?
शेख हसीना 2009 से सत्ता में हैं और अब चौथी बार प्रधानमंत्री हैं। लेकिन युनुस के खिलाफ इस कार्रवाई से उनकी छवि को भारी नुकसान पहुंचा है। विपक्षी दलों ने भी सरकार को 'तानाशाही रवैये' के लिए घेरा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर यह जनांदोलन और व्यापक हुआ तो यह 2026 के आम चुनावों को प्रभावित कर सकता है।
पुरानी सरकार की वापसी या तीसरी ताकत की एंट्री?
राजनीति के जानकारों का मानना है कि इस संकट से एक नई राजनीतिक शक्ति उभर सकती है। युनुस भले ही चुनावी राजनीति में न हों, लेकिन उनका समर्थन एक मजबूत 'एंटी-इंकंबेंसी' लहर खड़ा कर सकता है।
विपक्षी दल और सेना दोनों ही मौके की तलाश में हैं – ऐसे में बांग्लादेश की अगली सरकार की दिशा पूरी तरह से बदल सकती है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और मानवाधिकार संगठनों की चिंता
युनुस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिल रहा है। अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ने बांग्लादेश सरकार से मानवाधिकारों की रक्षा करने की अपील की हैऐसे में अगर सरकार दबाव में आती है तो यह युनुस की स्थिति को और मजबूत कर सकता है।
आगे क्या होगा? जनता, सरकार और सेना – तीन ध्रुवों की खींचतान
बांग्लादेश इस वक्त एक अहम मोड़ पर है। अगर जनता का आंदोलन और तेज होता है और सरकार कड़ा रवैया बनाए रखती है, तो हालात और बिगड़ सकते हैं। दूसरी ओर सेना की ‘चुप्पी’ भी बहुत कुछ कहती है – वह वक्त का इंतज़ार कर रही है।
सड़कों से संसद तक – बांग्लादेश में बदलाव की आहट
युनुस के खिलाफ सरकार की कार्रवाई ने बांग्लादेश की राजनीति को एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचा दिया है। सवाल यह नहीं कि कौन जीतेगा – सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश का लोकतंत्र बचेगा?
क्या बांग्लादेश एक नई राजनीतिक दिशा की ओर बढ़ रहा है, या फिर पुराने चक्रव्यूह में फंस जाएगा?
आपका क्या मानना है? क्या बांग्लादेश में सेना सत्ता में लौटेगी? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर दें।
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