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Explain: छुटभैये मौलवी थे Khamenei, जानिए कैसे बन गए ईरान के खुदा

जब खामनेई ने सत्ता संभाली तो ईरान अपने पड़ोसी मुल्क इराक के साथ अपने लंबे युद्ध से उभर रहा था जिसने देश को तबाह और अलग-थलग कर दिया था। अगले तीन दशकों में खामेनेई ने ईरान को मध्य पूर्व में प्रभाव रखने वाली एक ताकतवर शक्ति में बदल दिया।

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Shailendra Gautam
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Supreme Leader of Iran Ayatollah Khamenei

Photograph: (Google)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः Ayatollah Ali Khamenei, एक ऐसा नाम जिसने इस समय सारी दुनिया को हैरान कर रखा है। ईरान का ये सरपरस्त इजरायल के साथ अमेरिका की भी मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल है। लेकिन हाल फिलहाल तक उनका कोई सुराग नहीं मिल पा रहा है। इजरायल कसम तो खा चुका है उनको मिटाने की पर ये एक बड़ा सच है कि खामनेई के ठिकाने के बारे में उसके पास कोई सुराग नहीं है। अगर होता तो अब तक इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू उनको नेस्तनाबूद कर देते। खामनेई के मरते ही मसला खत्म हो जाता। 

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खुदा के बाद ईरान के दूसरे सबसे ताकतवर शख्स हैं खामनेई

आज खामनेई को ईरान की जनता खुदा को बाद दूसरा सबसे ताकतवर शख्सियत मानती है। हालांकि हमेशा से खामनेई इतने मजबूत नहीं थे। 1989 में जब वो सत्ता के करीब पहुंचे तो उनकी कोई ऐसी साख नहीं थी जिसके बल बूते वो ईरान में लंबे समय तक हुकूमत कर पाते। वो इस्लामी क्रांति के नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खोमैनी के उत्तराधिकारी थे। 80 के दशक में खामनेई एक छुटभैये मौलवी थे। खामेनेई के पास अपने गुरु जैसी धार्मिक साख नहीं थी। उनके पास उनका उग्र करिश्मा भी नहीं था। लेकिन खामेनेई एक बार सत्ता के शिखर पर पहुंचे तो उन्होंने उन तमाम दावों को दरकिनार कर दिया जो उन्हें लंबी रेस का घोड़ा मानने को तैयार नहीं थे। उन्होंने अपने गुरु खोमैनी की तुलना में तीन गुना अधिक समय तक ईरान पर शासन किया है। आज ईरान जो भी है वो उनकी ही वजह से है। 

मौलवियों और Revolutionary Guard के जरिये जमाया आधिपत्य

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खामनेई ने जब सत्ता संभाली तो वो समझ चुके थे कि ईरान को अपना जलवा बदस्तूर कायम रखना है तो कुछ खास करना होगा। इसी वजह से उन्होंने मुल्लाओं या शिया मौलवियों की देखरेख में चलने वाली शासन प्रणाली को ताकतवर बनाया। इसने उन्हें ईरान की सत्ता में एक ऐसी जगह ले जाकर खड़ा किया जहां वो केवल ईश्वर के नीचे थे। खामनेई ने जब मुल्लाओं को शक्तिपुंज के रूप में स्थापित कर दिया तो उन्होंने एक दूसरे मोर्चे पर काम शुरू कर दिया। वो था paramilitary Revolutionary Guard का गठन। इनको ईरान की सबसे मजबूत ताकत माना जाता है। इनके पास ही बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम की देखरेख का जिम्मा है।

इराक से दुश्मनी ने खामनेई को दी बेजोड़ ताकत

जब खामेनेई ने सत्ता संभाली तो ईरान अपने पड़ोसी मुल्क इराक के साथ अपने लंबे युद्ध से उभर रहा था जिसने देश को तबाह और अलग-थलग कर दिया था। अगले तीन दशकों में खामेनेई ने ईरान को मध्य पूर्व में प्रभाव रखने वाली एक ताकतवर शक्ति में बदल दिया। सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल करने के अमेरिकी फैसले से 2003 में उनको ताकत दी, जिसके चलते इराक में ईरानी सहयोगी शिया राजनेताओं और मिलिशिया को सत्ता में ला दिया। इराक ने ईरान के प्रतिरोध की धुरी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें बशर असद का सीरिया, लेबनान का हिजबुल्लाह, फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास और यमन में हौथी विद्रोही शामिल थे। 2015 तक यह गठबंधन अपने चरम पर था, जिसने ईरान को इजरायल के दरवाजे पर ला खड़ा किया।

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आंदोलन हुए पर Revolutionary Guard ने दबा दिए

इसकी अंतरराष्ट्रीय शाखा, कुद्स फोर्स ने खामनेई को ऐसी ताकत दी जिसके तहत यमन से लेबनान तक फैले ईरान समर्थक एक हो गए। इसके बाद ईरान बेहद ताकतवर हो गया। खामेनेई ने गार्ड्स को बिजनेस नेटवर्क बनाने की भी खुली छूट दी, जिससे उसे ईरान की अर्थव्यवस्था पर हावी होने का मौका मिला। ये गार्ड्स उनका वफादार शॉक फोर्स बन गया। हालांकि इस दौरान खामनेई के सामने नई चुनौती पैदा हुई। उनको घरेलू चुनौतियों का सामना करना पड़ा। खामेनेई के सामने पहला बड़ा खतरा सुधार आंदोलन था। ये लोग संसद और राष्ट्रपति की वकालत करते थे। आंदोलन ने निर्वाचित अधिकारियों को अधिक शक्ति देने की वकालत की। कुछ ऐसा जिससे खामनेई के कट्टर समर्थकों को डर था कि इससे इस्लामिक रिपब्लिक सिस्टम खत्म हो जाएगा।

लेकिन खामनेई ने बड़े शातिराना अंदाज में मौलवी प्रतिष्ठान को एकजुट करके सुधारवादियों को रोका। मुल्लाओं के जरिये वो सुधारों की आवाज को दबाने और चुनाव को बेअसर करने में कामयाब रहे। रिवोल्यूशनरी गार्ड्स और ईरान की दूसरी फोर्सेज ने सुधार आंदोलन की विफलता के बाद विरोध प्रदर्शनों की लहरों को कुचल दिया। 2009 में वोट-धांधली के आरोपों को लेकर बड़े पैमाने पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए। 2017 और 2019 में आर्थिक विरोध प्रदर्शन हुए। 2022 में महसा अमिनी की मौत पर और अधिक देशव्यापी प्रदर्शन हुए। विरोध प्रदर्शनों पर कार्रवाई में सैकड़ों लोग मारे गए और सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया गया। आरोप हैं कि हिरासत में लिए गए लोगों को जेल में यातना देकर मार डाला गया। हालांकि लगातार आंदोलनों के चलते खामनेई कुछ कमजोर भी पड़े। इसने ईरान की धार्मिक व्यवस्था में पसरे तनाव को दिखाया। गुस्से को कम करने की कोशिश में कुछ सामाजिक प्रतिबंधों को लागू करने में ढील दी।

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हमास और इजरायल के संघर्ष के बाद बदल गए समीकरण

हमास ने अक्टूबर 2023 के दौरान दक्षिणी इजरायल पर हमले किए तो गाजा पट्टी पर इजरायल की ओर से बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई की गई। इसने इजरायल की नीति में भी बदलाव लाया। ईरान के सहयोगियों को रोकने और दबाने की कई सालों की कोशिशों के बाद इजरायल ने उन्हें कुचलना अपना लक्ष्य बना लिया। हमास को अपंग बना दिया गया है, हालांकि इसे खत्म नहीं किया गया। इजरायल ने पिछले साल लेबनान में कई हफ्तों तक बमबारी करके हिजबुल्लाह को अलग-थलग कर दिया था। उस दौरान पेजर और वॉकी-टॉकी से एक नाटकीय हमला हुआ, जिससे हिजबुल्लाह भौचक रह गया। हिजबुल्लाह के लिए इससे भी बड़ा झटका दिसंबर में सीरिया के बशर असद का पतन था, जब सुन्नी विद्रोहियों ने राजधानी पर चढ़ाई की और उन्हें सत्ता से हटा दिया। अब दमिश्क में जो सरकार है वो ईरान और हिजबुल्लाह के खिलाफ है।

अभी खामनेई के सामने सबसे बड़ा संकट, निपटने के दो ही तरीके

फिलहाल खामनेई के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। इजरायल ने ईरान के आसमान पर लगाम लगा दी है। वो एक के बाद एक करके ईरान की सेना और परमाणु कार्यक्रम को नष्ट कर रहा है। इजराइली रक्षा मंत्री इजराइल काट्ज ने कहा कि खामेनेई अब और नहीं रह सकते। 86 वर्षीय इस्लामिक नेता के सामने अब जो विकल्प हैं उनमें वो इजरायल से दुश्मनी को बढ़ा सकते हैं। इसमें ईरान को नुकसान होना तय है। या फिर वो एक कूटनीतिक समाधान की तलाश कर सकते हैं जो अमेरिका को संघर्ष से दूर रखता है। इसके तहत उनको उस परमाणु कार्यक्रम को छोड़ना होगा जिसे उन्होंने वर्षों से ईरानी नीति के केंद्र में रखा है। बुधवार को एक वीडियो क्लिप में उन्होंने तीखे स्वर में कहा कि ईरान सरेंडर करने वाला नहीं है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर अमेरिका हस्तक्षेप करता है, तो इसका बड़ा खामियाजा उसे भुगतना पड़ जाएगा। 

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