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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में प्रोफेसर की बर्खास्तगी का मामला तूल पड़ रहा है और कुलपति के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) प्रोफेसर की बर्खास्तगी के विरोध में उतर आया है। संघ ने यूनिवर्सिटी की विजिटर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर कुलपति शांतिश्री धुलीपुडी पंडित को पद से हटाने और प्रोफेसर की बर्खास्तगी का आदेश को रद्द करने की मांग की है। इस निर्णय को अवैध करार दिया।
सेवा नियमों के उल्लंघन पर की गई कारवाई
विश्वविद्यालय सूत्रों के अनुसार, यह मामला हाल ही में कार्यकारी परिषद (ईसी) की बैठक में रखा गया था, जहां प्रोबेशनरी संकाय सदस्य को बर्खास्त करने का निर्णय लिया गया। बैठक की प्रोसिडिंग में दर्ज किया गया कि प्रोबेशनरी प्रोफेसर सेवा नियमों का उल्लंघन करते हुए 51 दिनों तक अनाधिकृत अवकाश पर रहा था तथा उसका कार्य प्रदर्शन असंतोषजनक पाया गया। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, प्रोबेशनरी ने लिखित में अपनी गलती स्वीकार की। ऐसे में गलत काम के खिलाफ कार्रवाई करने में क्या बुराई है? उन्होंने कहा कि यह फैसला परिवीक्षाधीन नियुक्तियों से जुड़ी सेवा शर्तों के अनुरूप है।
संघ ने कहा, युवा प्रोफेसर की बर्खास्तगी अवैध
हालांकि, विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) ने इस कार्रवाई को चुनौती दी है और राष्ट्रपति से कहा है कि यह कुलपति द्वारा नियामक प्रक्रियाओं को लगातार कमजोर करने और सत्ता के संकेन्द्रण की दिशा में एक महत्वपूर्ण बिंदु को दर्शाता है। आरोप लगाया गया है, कुलपति ने विश्वविद्यालय के एक युवा संकाय सदस्य को सेवा से बर्खास्त कर दिया, जबकि ऐसा करने के लिए कोई उचित कारण नहीं था और न ही किसी उचित प्रक्रिया का पालन किया गया।
इसी की आनलाइन बैठक का कोई औचित्य नहीं
संघ ने पत्र में शिकायत की है कि वैधानिक निकायों को कमजोर किया गया है, बैठकें केवल ऑनलाइन मोड में आयोजित की जा रही हैं क्योंकि ऐसी बैठकों को किसी भी वास्तविक विचार-विमर्श को विफल करने और कुलपति द्वारा पहले से लिए गए निर्णयों पर मुहर लगाने के लिए अधिक आसानी से ‘प्रबंधित’ किया जाता है। शिक्षक संगठन ने यह भी दावा किया कि निर्वाचन आयोग का निर्णय बिना उचित चर्चा के ही पारित कर दिया गया। जेएनयूटीए ने अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए राष्ट्रपति से व्यक्तिगत रूप से मिलने का मौका मांगा है तथा कहा कि इस प्रकरण से शिक्षकों में असंतोष गहरा गया है तथा प्रशासन में विश्वास कम हुआ है।
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