नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । सियासी गलियारों में एक बार फिर गरमाहट आ गई है। दिल्ली हाईकोर्ट ने भाजपा नेता की याचिका पर बड़ा कदम उठाया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर को कोर्ट से नोटिस थमा दिया गया है। मामला सीधे-सीधे मानहानि से जुड़ा है, जिससे दोनों दलों में तकरार तेज़ हो सकती है। क्या यह लड़ाई अब कोर्टरूम से सोशल मीडिया तक पहुंचेगी?
20 मई 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट ने भाजपा नेता राजीव चंद्रशेखर की ओर से दायर याचिका पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर को नोटिस जारी किया है। यह याचिका पहले निचली अदालत द्वारा खारिज की गई थी, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। अब कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए थरूर से जवाब मांगा है। यह राजनीतिक लड़ाई अब न्यायिक कसौटी पर आ चुकी है।
क्या है पूरा मामला?
भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर पर मानहानि का मुकदमा दायर किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि थरूर ने सार्वजनिक मंचों पर उनके खिलाफ गलत और अपमानजनक टिप्पणियां कीं, जिससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचा।
हालांकि, निचली अदालत ने इस शिकायत को खारिज कर दिया था। लेकिन चंद्रशेखर ने हार नहीं मानी और दिल्ली हाईकोर्ट में फैसले को चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने क्यों लिया संज्ञान?
हाईकोर्ट ने पाया कि प्रथम दृष्टया मामला गंभीर है और इसमें सुनवाई की जरूरत है। कोर्ट ने यह भी माना कि यदि सार्वजनिक बयान से किसी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है, तो उसे कानूनी सुनवाई का हक मिलना चाहिए।
इस आधार पर 20 मई को कोर्ट ने शशि थरूर को नोटिस भेजते हुए जवाब दाखिल करने का आदेश दिया।
राजनीतिक नतीजे क्या हो सकते हैं?
यह मामला केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है। एक ओर भाजपा इसे ‘सत्य की लड़ाई’ बता सकती है, वहीं कांग्रेस इसे ‘राजनीतिक बदले की कार्रवाई’ कह सकती है।
इस केस के आने वाले अपडेट्स लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच बहस का मुद्दा बन सकते हैं।
कोर्ट में बयान की कीमत कितनी?
पब्लिक फिगर्स के बयानों का राजनीतिक और सामाजिक असर काफी व्यापक होता है। इस मामले में हाईकोर्ट का दखल यह संकेत देता है कि अब नेताओं के हर शब्द को कानूनी नजर से भी तौला जाएगा।
मानहानि जैसे मुद्दों पर सियासत के साथ-साथ न्याय व्यवस्था भी सजग हो चुकी है।
क्या आगे और नेता इस तरह के केसों में फंस सकते हैं?
अगर यह मामला मजबूत साबित होता है, तो भविष्य में नेताओं के लिए सार्वजनिक मंचों पर बोलते वक्त अधिक सतर्क रहना पड़ेगा।
राजनीति में अब शब्द भी हथियार बनते जा रहे हैं, और कोर्ट इनका मूल्य तय कर रहा है।
क्या नेताओं को सार्वजनिक बयान देने से पहले कानूनी सलाह लेनी चाहिए? नीचे कमेंट करके अपनी राय ज़रूर बताएं।
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