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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः साल 2011 की घटना है। अमेरिकन खुफिया एजेंसी ने पाकिस्तान के एबटाबाद में सटीक निशाना साधकर मोस्ट वांटेड आतंकी ओसामा बिन लादेन को ढेर कर दिया। अमेरिका के लिए ये एक बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि उसने 26/11 के गुनहगार को उसकी सही जगह पर पहुंचाकर बदला ले लिया था। लेकिन पाकिस्तान के लिहाज से देखा जाए तो लादेन की मौत ने उसका बेड़ा गर्क कर दिया। लादेन को जिस अंदाज में मारा गया उसने सारे पाकिस्तान को खौफजदा कर दिया। लोग इतने डर गए कि टीका लगाने वाले उनको यमदूत की तरह से नजर आने लगे। यही वजह है कि पोलियो जैसी बीमारी वहां फिर से पैर पसार रही है।
हेल्थ वर्कर्स के भेष में सीआईए ने लादेन के घर भेजे थे अफसर
दरअसल, अमेरिका का आपरेशन तब शुरू हुआ जब लादेन की बहन की मौत 2010 में अमेरिका में हुई। सीआईए ने उसका डीएनए सैंपल जुटाकर सुरक्षित रख लिया। सीआईए को पता था कि लादेन बेहद शातिर आतंकी है। उसके हमशक्ल भी मौजूद हो सकते हैं। ऐसे में उसकी बहन से जुटाया गया डीएनए ही असली लादेन को उनके सामने ला सकता था। न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि सीआईए ने इसके लिए एक डाक्टर शकील अफरीदी की ड्यूटी लगाई। शकील अफरीदी हैपेटाइटिस बी के टीकाकरण के बहाने एबटाबाद में दाखिल हुआ।
बहन के डीएनए सैंपल के जरिये लादेन को किया जा रहा था तलाश
शकील और उसकी टीम उन बच्चों के खून के नमूनों के साथ लार के सैंपल लेने की कोशिश कर रही थी जिन्हें लादेन का बताया जा रहा था। टीम ने सैंपल लिए और फिर सीआईए को हरी झंडी दिखा दी। उसके बाद अमेरिका ने सटीक निशाना साधकर लादेन को मार गिराया। लादेन के मरने के बाद ये बात सारे पाकिस्तान में फैल गई कि उसे मारने के लिए टीका लगाने वालों की शक्ल में सीआईए के लोग थे। उसके बाद से टीकाकरण से लोग घबराने लग गए।
लादेन के मरने के बाद आतंकी संगठन पड़ गए हेल्थ वर्कर्स के पीछे
आतंकी संगठनों ने मरने से बचने के लिए टीका लगाने वालों की टीम को निशाना बनाना शुरू कर दिया। इसका आलम ये हुआ कि पाकिस्तान में टीकाकरण की रफ्तार धीमी पड़ गई। आंकड़ों को देखें तो साफ है कि लादेन की हत्या के तरीके का असर पाकिस्तान की सेहत पर गहरा पड़ा। पिछले साल नवंबर में पुलिस की देखरेख में काम कर रही हेल्थ वर्कर्स की टीम पर बम से हमला किया गया। इसमें नौ लोग मारे गए जिसमें पांच बच्चे भी शामिल थे। खैबर पख्तूनख्वा में ऐसी ही एक घटना में 20 लोगों की हत्या कर दी गई। इस तरह की घटनाओं ने संयुक्त राष्ट्र को भी मजबूर कर दिया कि टीकाकरण के कार्यक्रम को रोक दिया जाए।
टीकाकरण न हो पाने से पाकिस्तान में पैर पसार रहीं गंभीर बिमारियां
पाकिस्तानी अखबार DAWN की रिपोर्ट बताती है कि फरवरी में खैबर पख्तूनख्वा के 19 हजार 70 लोगों ने पोलियो का टीका लगवाने से इन्कार कर दिया। इसके अलावा 10 हजार बच्चों को तब घर से दूर भेज दिया गया जब टीका लगाने वाले इलाके में घूम रहे थे। एक रिपोर्ट कहती थी कि सीआईए की वजह से टीकाकरण पूरी तरह से ठप हो गया। आतंकी बहुल इलाकों मं पोलियो का टीकाकरण 28 फीसदी तक सिमट गया। मीसल्स का टीका लगाने की दर 39 फीसदी तो दूसरी बिमारियों के टीकाकरण की दर 23 फीसदी तक सिमट गई। तालिबान नियंत्रित इलाकों में टीकाकरण पूरी तरह से बंद करा दिया गया है। हालांकि सीआईए ने 2014 में ऐलानिया कहा कि वो फिर से हेल्थ वर्कर्स की टीम को अपने आपरेशन का हथियार नहीं बनाएगा लेकिन पाकिस्तान को जो नुकसान सेहत के मोर्चे पर हो रहा है उसकी भरपाई कौन करेगा।
पाकिस्तान में हालात किस कदर खतरनाक हो चुके हैं समझिए
पहाड़ी उत्तरी वजीरिस्तान में 19 महीने का अहमद 2025 में पाकिस्तान का 14वां पोलियो केस बन गया। इस्लामाबाद में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की 1 जुलाई की रिपोर्ट में शामिल इस केस ने खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में इस साल कुल मामलों को आठ तक पहुंचा दिया। यह आंकड़ा छोटा लग सकता है, लेकिन यह एक गंभीर चेतावनी है। पाकिस्तान दुनिया के उन दो देशों में से एक है जहां पोलियो अभी भी पैर पसारे हुए है। स्वास्थ्य मंत्री सैयद मुस्तफा कमाल के अनुसार, पाकिस्तान ने पोलियो के खिलाफ कड़ी लड़ाई लड़ी है, जिसमें मामलों में 99 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। दशकों से घर-घर जाकर टीकाकरण अभियान, बहादुर स्वास्थ्य कर्मियों और वैश्विक समर्थन ने वायरस को खत्म होने के कगार पर पहुंचा दिया है। Pakistan Polio Workers Kidnapped
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