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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क । 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। इस हमले में कई निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई, और भारत की जांच एजेंसियां तुरंत हरकत में आ गईं।
जांच के दौरान एक शब्द बार-बार सामने आया- डिजिटल फुटप्रिंट। इसकी मदद से एजेंसियों ने आतंकियों के पाकिस्तान से संबंधों का पता लगाया। लेकिन आखिर यह डिजिटल फुटप्रिंट है क्या? कैसे यह आतंकियों के क्रॉस-बॉर्डर कनेक्शन को उजागर कर रहा है? आइए, इसे आसान भाषा में विस्तार से समझते हैं।
आखिर क्या होता है डिजिटल फुटप्रिंट ?
डिजिटल फुटप्रिंट का मतलब है आपके ऑनलाइन गतिविधियों के वे निशान, जो इंटरनेट पर दर्ज हो जाते हैं। जैसे गीली मिट्टी पर चलने से पैरों के निशान बनते हैं, वैसे ही इंटरनेट पर आप जो कुछ भी करते हैं- वेबसाइट खोलना, सर्च करना, सोशल मीडिया पर पोस्ट करना- उसका रिकॉर्ड बनता है। यह रिकॉर्ड ही आपका डिजिटल फुटप्रिंट कहलाता है।
उदाहरण के लिए, अगर आप गूगल पर "बेस्ट लैपटॉप" सर्च करते हैं और फिर अमेजन पर जाकर एक लैपटॉप देखते हैं, तो अगली बार फेसबुक या यूट्यूब खोलने पर आपको उसी तरह के लैपटॉप के विज्ञापन दिख सकते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपकी ऑनलाइन गतिविधियों का डिजिटल फुटप्रिंट बन चुका है, जिसे वेबसाइट्स और ऐप्स ट्रैक करते हैं।
डिजिटल फुटप्रिंट के प्रकार
डिजिटल फुटप्रिंट को मुख्य रूप से दो श्रेणियों सक्रिय और निष्क्रिय डिजिटल फुट प्रिंट में बांटा जा सकता है...
सक्रिय डिजिटल फुटप्रिंट (Active Digital Footprint)
- यह वह डिजिटल निशान है, जो आप जानबूझकर इंटरनेट पर छोड़ते हैं। जैसे...
- फेसबुक, इंस्टाग्राम या एक्स पर पोस्ट करना
- यूट्यूब पर वीडियो अपलोड करना
- किसी वेबसाइट पर कमेंट करना
- ऑनलाइन फॉर्म भरना या शॉपिंग करना
निष्क्रिय डिजिटल फुटप्रिंट (Passive Digital Footprint)
- यह वह निशान है, जो आपकी जानकारी के बिना इंटरनेट पर दर्ज होता है। जैसे...
- आपने कौन सी वेबसाइट खोली
- आपने किसी वेबपेज पर कितना समय बिताया
- आपका डिवाइस कहां से इंटरनेट इस्तेमाल कर रहा है (जैसे, आपका लोकेशन)
आपके सर्च हिस्ट्री और ब्राउजिंग पैटर्न
दोनों तरह के फुटप्रिंट मिलकर आपकी ऑनलाइन पहचान बनाते हैं। सामान्य लोगों के लिए यह विज्ञापनों या सुझावों तक सीमित हो सकता है, लेकिन आतंकियों के मामले में यही फुटप्रिंट जांच एजेंसियों के लिए सुराग बन जाता है।
पहलगाम हमले में डिजिटल फुटप्रिंट की अहम भूमिका
पहलगाम के बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत की खुफिया और जांच एजेंसियों ने तुरंत कार्रवाई शुरू की। इस हमले में 28 से ज्यादा लोग मारे गए और कई घायल हुए। जांच के दौरान एजेंसियों को घटना स्थल से कुछ महत्वपूर्ण सुराग मिले, जिनमें एडवांस कम्युनिकेशन टूल्स शामिल थे। इन टूल्स की जांच से आतंकियों के डिजिटल फुटप्रिंट का पता चला, जो सीधे पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद और कराची में स्थित सेफ हाउस तक पहुंचे।
क्या-क्या मिला है जांच में?
कम्युनिकेशन टूल्स: आतंकियों के पास मिले संचार उपकरण अत्याधुनिक थे। ये उपकरण साधारण मोबाइल फोन से कहीं ज्यादा उन्नत थे और इनका इस्तेमाल सीमा पार से निर्देश लेने के लिए किया जा रहा था।
डिजिटल कनेक्शन: इन उपकरणों से मिले डेटा, जैसे कॉल लॉग, मैसेज या इंटरनेट हिस्ट्री ने आतंकियों के पाकिस्तान में बैठे हैंडलर्स के साथ लगातार संपर्क को उजागर किया।
सेफ हाउस का पता: डिजिटल फुटप्रिंट ने मुजफ्फराबाद और कराची में उन ठिकानों की पहचान की जहां से आतंकियों को लॉजिस्टिक सपोर्ट और निर्देश मिल रहे थे।
पाकिस्तानी ऑपरेटिव्स: खुफिया एजेंसियों ने दावा किया कि हमलावर आतंकी पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं के साथ सीधे संपर्क में थे। इसमें एक रिटायर्ड पाकिस्तानी सैनिक आसिफ फौजी का नाम भी सामने आया।
इन डिजिटल निशानों ने साफ कर दिया कि यह हमला केवल स्थानीय आतंकियों का काम नहीं था बल्कि इसके पीछे सीमा पार से सुनियोजित साजिश थी।
डिजिटल फुटप्रिंट से कैसे मिलता है सुराग ?
जांच एजेंसियां डिजिटल फुटप्रिंट का विश्लेषण करने के लिए कई तकनीकों का इस्तेमाल करती हैं। आइए, इसे समझते हैं...
डेटा फोरेंसिक्स: आतंकियों के डिवाइस से डेटा निकाला जाता है, जैसे कॉल रिकॉर्ड, मैसेज, जीपीएस डेटा, और इंटरनेट हिस्ट्री। यह डेटा यह बताता है कि आतंकी किन लोगों या ठिकानों से संपर्क में थे।
आईपी ट्रेसिंग: अगर आतंकी इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे, तो उनके डिवाइस का आईपी पता ट्रेस किया जाता है। यह पता बताता है कि डिवाइस किस लोकेशन से ऑनलाइन था।
सिग्नल एनालिसिस: कम्युनिकेशन टूल्स से मिले सिग्नल्स का विश्लेषण किया जाता है। इससे पता चलता है कि आतंकी किन नंबरों या सर्वर से जुड़े थे।
सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप्स: कई बार आतंकी एन्क्रिप्टेड ऐप्स जैसे व्हाट्सएप, टेलीग्राम या सिग्नल का इस्तेमाल करते हैं। एजेंसियां इन ऐप्स के मेटाडेटा (जैसे समय, तारीख, और रिसीवर की जानकारी) का विश्लेषण करती हैं।
क्लाउड डेटा: अगर आतंकी क्लाउड स्टोरेज का इस्तेमाल करते हैं, तो वहां से भी डेटा निकाला जा सकता है। इसमें फोटो, वीडियो या दस्तावेज शामिल हो सकते हैं।
पहलगाम हमले में इन तकनीकों की मदद से एजेंसियों ने आतंकियों के डिजिटल फुटप्रिंट को ट्रैक किया और उनके पाकिस्तान कनेक्शन को पुख्ता किया।
डिजिटल फुटप्रिंट का महत्व
डिजिटल फुटप्रिंट न केवल आतंकी जांच में बल्कि कई अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुछ उदाहरण से समझें...
साइबर क्राइम: हैकर्स या ऑनलाइन ठगों को उनके डिजिटल निशानों से पकड़ा जाता है।
मार्केटिंग: कंपनियां आपके डिजिटल फुटप्रिंट का इस्तेमाल करके आपको टारगेटेड विज्ञापन दिखाती हैं।
नौकरी: कई कंपनियां जॉब अप्लिकेंट्स के सोशल मीडिया प्रोफाइल चेक करती हैं ताकि उनके डिजिटल फुटप्रिंट का अंदाजा लगा सकें।
हालांकि, आतंकी मामलों में डिजिटल फुटप्रिंट का विश्लेषण जटिल होता है, क्योंकि आतंकी अक्सर एन्क्रिप्टेड चैनल्स और फर्जी पहचान का इस्तेमाल करते हैं। फिर भी, आधुनिक तकनीक और खुफिया एजेंसियों की विशेषज्ञता ने इसे संभव बनाया है।
पहलगाम हमले से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
हमले का मास्टरमाइंड: जांच में पता चला कि हमले में लश्कर-ए-तैयबा के विंग, द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) का हाथ था। इस संगठन ने हमले की जिम्मेदारी भी ली।
आतंकियों की पहचान: चार आतंकियों की तस्वीरें जारी की गईं, जिनमें दो पाकिस्तानी और दो स्थानीय आतंकी थे। इनमें से एक आसिफ फौजी, पाकिस्तानी सेना का रिटायर्ड सैनिक बताया गया।
बॉडीकैम का इस्तेमाल: आतंकियों ने हमले को रिकॉर्ड करने के लिए बॉडीकैम का इस्तेमाल किया, जिससे उनकी सुनियोजित साजिश का पता चलता है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: पाकिस्तान ने हमले में अपनी संलिप्तता से इनकार किया, लेकिन डिजिटल फुटप्रिंट और अन्य सबूतों ने उनके दावों को कमजोर कर दिया।
डिजिटल फुटप्रिंट से सावधान रहने की जरूरत
पहलगाम हमले ने यह भी दिखाया कि डिजिटल फुटप्रिंट कितना शक्तिशाली हो सकता है। लेकिन यह केवल आतंकियों तक सीमित नहीं है। आम लोग भी अपने डिजिटल फुटप्रिंट को लेकर ऐसे सावधान रह सकते हैं...
प्राइवेसी सेटिंग्स चेक करें: सोशल मीडिया पर अपनी प्राइवेसी सेटिंग्स को मजबूत करें।
जरूरी जानकारी शेयर करें: ऑनलाइन फॉर्म भरते समय केवल जरूरी जानकारी दें।
एन्क्रिप्टेड ऐप्स का इस्तेमाल: संवेदनशील बातचीत के लिए व्हाट्सएप या सिग्नल जैसे सुरक्षित ऐप्स चुनें।
पासवर्ड मजबूत रखें: अपने अकाउंट्स को सुरक्षित रखने के लिए मजबूत और अलग-अलग पासवर्ड का इस्तेमाल करें।
पहलगाम आतंकी हमले ने डिजिटल फुटप्रिंट की ताकत को एक बार फिर सामने ला दिया। भारत की खुफिया एजेंसियों ने आतंकियों के डिजिटल निशानों को ट्रैक करके उनके पाकिस्तान कनेक्शन को उजागर किया, जिससे यह साफ हो गया कि यह हमला सीमा पार की साजिश का हिस्सा था।
डिजिटल फुटप्रिंट न केवल जांच में मदद करता है, बल्कि यह हमारे डिजिटल युग की एक ऐसी सच्चाई है, जिससे हर कोई प्रभावित है। इसलिए, चाहे आप एक आम इंसान हों या जांच एजेंसी, अपने डिजिटल फुटप्रिंट को समझना और उसका सही इस्तेमाल करना आज के समय की जरूरत है। pakistan | jammu and kashmir terror attack | pahalgam attac | pahalgam attack |