/young-bharat-news/media/media_files/2025/05/01/wMMKlF8Id0YyYDfglhBx.jpg)
नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क । केंद्र सरकार द्वारा भारत में जाति जनगणना कराने की घोषणा ने सवाल उठाए हैं कि इसका बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, कौन सी राजनीतिक पार्टियां इससे लाभान्वित होंगी, और इसका सामाजिक-राजनीतिक महत्व क्या है।
इस फैसले ने बिहार में विपक्षी नेताओं, खासकर तेजस्वी यादव और राहुल गांधी, को नई ऊर्जा दी है, जो लंबे समय से जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं। यह कदम सामाजिक न्याय और आरक्षण नीतियों को नया आकार दे सकता है।
भारत में जाति जनगणना का मुद्दा दशकों से चर्चा में रहा है। आखिरी बार 1931 में ब्रिटिश शासनकाल में जाति आधारित जनगणना हुई थी। इसके बाद, स्वतंत्र भारत में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की जनगणना ही नियमित रूप से होती रही है।
अब केंद्र सरकार ने सभी जातियों की जनगणना कराने का फैसला किया है, जिसे कई लोग सामाजिक समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम मान रहे हैं। बिहार, जहां जातिगत समीकरण राजनीति का आधार हैं, वहां इस फैसले का प्रभाव सबसे अधिक देखने को मिल सकता है।
तेजस्वी यादव ने घोषणा का किया स्वागत
तेजस्वी यादव, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता, ने इस घोषणा का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि जाति जनगणना सामाजिक न्याय के लिए जरूरी है और इससे समाज के वंचित वर्गों को उनका हक मिलेगा।
तेजस्वी ने दावा किया कि यह कदम बिहार में उनकी पार्टी को मजबूत करेगा, क्योंकि आरजेडी हमेशा से पिछड़े और दलित वर्गों के अधिकारों की वकालत करता रहा है। उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह फैसला उनकी और उनके सहयोगियों की लंबी लड़ाई का नतीजा है।
राहुल गांधी ने बजाया अपनी जीत का डंका
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस फैसले को अपनी जीत बताया। राहुल ने कई मौकों पर जाति जनगणना को सामाजिक समानता का आधार कहा है। उन्होंने कहा कि यह जनगणना देश में संसाधनों और अवसरों के बंटवारे को और पारदर्शी बनाएगी। बिहार में कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन में हैं, और दोनों नेताओं का मानना है कि यह मुद्दा विपक्ष को सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के खिलाफ एक मजबूत हथियार देगा।
जातिगत समीकरण ही बजा रहीं जीत का बिगुल
बिहार में जातिगत समीकरण हमेशा से चुनावी रणनीति का केंद्र रहे हैं। यादव, कुर्मी, कोइरी, अति पिछड़ा वर्ग (EBC), और दलित समुदायों की बड़ी आबादी यहां निर्णायक भूमिका निभाती है। जाति जनगणना से इन समुदायों की सटीक संख्या और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता चलेगा। इससे आरक्षण नीतियों में बदलाव की मांग तेज हो सकती है, जो बिहार की राजनीति को नया रंग दे सकती है।
जातिगत जनगणना दोधारी तलवार तो नहीं...
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जाति जनगणना का मुद्दा दोधारी तलवार साबित हो सकता है। एक तरफ, यह सामाजिक न्याय की मांग को मजबूत करेगा, वहीं दूसरी तरफ, इससे जातिगत तनाव भी बढ़ सकता है। बिहार में पहले से ही जाति आधारित राजनीति ने समाज को बांट रखा है। अगर जनगणना के आंकड़े कुछ जातियों को अपेक्षित लाभ नहीं देते, तो यह असंतोष को जन्म दे सकता है।
केंद्र सरकार ने अभी तक जनगणना की प्रक्रिया और समयसीमा का खुलासा नहीं किया है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि क्या यह जनगणना 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले पूरी होगी। अगर ऐसा होता है, तो इसके आंकड़े चुनावी रणनीतियों को पूरी तरह बदल सकते हैं। विपक्षी दल इस मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश करेंगे, जबकि एनडीए इसे अपने पक्ष में मोड़ने की रणनीति बना सकता है।
बिहार के सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जाति जनगणना केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक विकास का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनके अनुसार, सटीक आंकड़ों के बिना नीतियां बनाना मुश्किल है। उदाहरण के लिए, अगर किसी जाति की आबादी अपेक्षा से अधिक होती है, तो उसे शिक्षा और नौकरी में अधिक अवसर मिल सकते हैं।
इस घोषणा के बाद बिहार में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। तेजस्वी और राहुल जैसे नेता इसे अपने पक्ष में करने की कोशिश में हैं, जबकि एनडीए के नेता भी इस मुद्दे पर अपनी रणनीति बना रहे हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि जाति जनगणना का यह कदम बिहार की राजनीति को किस दिशा में ले जाता है। क्या यह सामाजिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा, या फिर केवल चुनावी हथियार बनकर रह जाएगा? आने वाले महीने इस सवाल का जवाब देंगे।
Bihar | Assembly Elections Bihar | bihar election 2025 | Bihar Election 2025 News | Bihar Election News | Bihar elections | Bihar Election Strategy |