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Supreme Court से टकराव की राह पर चला मद्रास हाईकोर्ट, पहला वाकया नहीं है ये

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए तमिलनाडु सरकार ने कुछ बिलों को नोटीफाई कर दिया था। लेकिन एक बीजेपी नेता की याचिका पर हाईकोर्ट ने शाम तकरीबन सात बजे सरकार के फैसले पर स्टे लगा दिया।

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Shailendra Gautam
Supreme Court

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः कुछ अरसा पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया था जो नरेंद्र मोदी की सरकार को दिन में तारे दिखाने जैसा रहा। दरअसल, गैर बीजेपी शासित राज्यों को काम करने से रोक रहे गवर्नरों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हिदायत जारी की थी कि वो असेंबली से पारित बिलों को यूं ही नहीं रोक सकते। सुप्रीम कोर्ट यहीं पर रुक जाता तो कोई बात नहीं थी। उसने संविधान से मिली ताकत के जरिये राष्ट्रपति को भी इस मामले में पाबंद कर दिया। टाप कोर्ट का कहना था कि सरकार के बिलों को अगर गवर्नर फंसाने के लिए आगे भेजते हैं तो राष्ट्रपति उन पर कुंडली मारकर नहीं बैठ सकतीं। बिल मिलने की तारीख से तीन माह के भीतर उनको फैसला लेना होगा। नहीं तो सरकार के बिल को कानून माना लिया जाएगा। कहने की जरूरत नहीं कि ये फैसला केंद्र के लिए था। फैसले को न्यायपालिका के इतिहास में मील का पत्थर माना गया, क्योंकि पहले कभी भी सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के लिए आदेश जारी नहीं किया था।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मद्रास हाईकोर्ट ने किया बेअसर

लेकिन एक दिन पहले के एक फैसले पर नजर डालें तो साफ लगता है कि मद्रास हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट से टकराव की राह पर आगे बढ़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए तमिलनाडु सरकार ने कुछ फैसलों को नोटीफाई कर दिया था। सरकार का तर्क था कि राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट की बताई समय सीमा के भीतर कोई फैसला नहीं लिया है, लिहाजा जो प्रस्ताव असेंबली से पास हुए थे वो कानून की शक्ल ले चुके हैं। सरकार ने असेंबली से प्रस्ताव पास करा विश्व विद्यालयों के वीसीज की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल से छीनकर अपने पास ले लिया था। : न्यायपालिका भारत | Judiciary | Indian Judiciary

तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम फैसले के मद्देनजर लिया था फैसला

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मामले में मोड़ तब आया जब एक बीजेपी नेता ने सरकार के फैसले के खिलाफ जनहित याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की और डबल बेंच ने कोर्ट के वर्किंग खत्म होने के बाद शाम तकरीबन सात बजे सरकार के फैसले पर स्टे लगा दिया। सरकार ने हाईकोर्ट में दलील दी कि उसने जो कुछ भी किया वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर किया है। हाईकोर्ट का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने गवर्नर और प्रेजीडेंट को टाइम बाउंड जरूर किया है लेकिन अपने फैसले में ये कहीं भी नहीं कहा कि अगर कोई विवाद होता है तो हाईकोर्ट उसे नहीं सुन सकता। सरकार के वकील ने कहा कि जनहित याचिका का जिक्र सीजेआई बीआर गवई के सामने वो कर चुकी है। दो-एक दिन में वो इसी सुनवाई भी कर सकते हैं। लेकिन हाईकोर्ट का कहना था कि इससे फर्क नहीं पड़ता। 

सरकारी महकमे पर ईडी को हाईकोर्ट ने भेजा था, सीजेआई ने रोका


तमिलनाडु को लेकर ये पहला मसला नहीं है जब हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में तल्खी देखी गई। तमिलनाडु के सरकारी महकमे पर ईडी की रेड को लेकर भी तनातनी दिखी। दरअसल हाईकोर्ट ने ही ईडी को परमिशन दी थी कि वो सरकारी महकमे में रेड कर सकती है। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सीजेआई बीआर गवई ने ईडी को संविधान की आड़ में सीधी चेतावनी दे डाली। हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे देते हुए सीजेआई ने कहा कि ईडी अपनी सीमा को पार न करे। 

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जस्टिस के कर्नन ले चुके हैं सुप्रीम कोर्ट से सीधा पंगा

हालांकि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव का ये पहला मामला नहीं है। कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस के कर्नन ने तो सीजेआई समेत सात जजों के वारंट भी निकाल दिए थे। हालांकि इसके बाद वो जेल भी गए। ये फैसला सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने दिया था।


अभिजीत गंगोपाध्याय ने भी किए थे टाप कोर्ट से दो-दो हाथ

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कोलकाता हाईकोर्ट के एक जज अभिजीत गंगोपाध्याय ने भी टाप कोर्ट से सीधा पंगा लिया था। दरअसल गंगोपाध्याय सीएम ममता बनर्जी से सीधे टकरा रहे थे। उन्होंने उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के खिलाफ केस को लेकर कुछ तल्ख टिप्पणी टीवी पर कर दी थीं। वो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने गंगोपाध्याय को उनकी हैसियत बता दी। लेकिन गंगोपाध्याय झुकने को तैयार नहीं थे तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को सीधे आदेश देकर रिकार्ड तलब कर लिया। तब सुप्रीम कोर्ट को रात में बेंच बिठानी पड़ी थी जिससे गंगोपाध्याय का फैसला बेअसर हो जाए। गंगोपाध्यया हारे लेकिन फिर वे बीजेपी में चले गए और अभी सांसद हैं।
  

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