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Sc vs Allahabad High Court हाईकोर्ट : 27 बार जमानत याचिका टालने पर सुप्रीम अदालत ने हाईकोर्ट को फटकारा

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई को बंद कर दिया। प्रधान न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने पूछा, ‘आखिर हाईकोर्ट ऐसा कैसे कर सकता है?

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Mukesh Pandit
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।उच्चतम न्यायालाय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। मामला है धोखाधड़ी के आरोपी लक्ष्य तवर की जमानत याचिका का, जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूरे 27 बार टाल दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस रवैये को न केवल अनुचित ठहराया, बल्कि सख्त लहजे में टिप्पणी करते हुए खुद आरोपी को जमानत दे दी।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई को बंद कर दिया। प्रधान न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने पूछा, ‘आखिर हाईकोर्ट ऐसा कैसे कर सकता है? जमानत जैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामले में 27 बार सुनवाई टालना क्या उचित है?’ कोर्ट ने कहा कि यह मामला सीधे-सीधे व्यक्ति की आजादी से जुड़ा है। ऐसे में यह व्यवहार स्वीकार नहीं किया जा सकता.

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क्या है पूरा मामला?

यह मामला सीबीआई से जुड़ा है। आरोपी लक्ष्य तवर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 419, 420, 467, 468, 471 और 120बी के तहत केस दर्ज है। इसके साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं 13(1)(डी) और 13(2) भी लगाई गई हैं। आरोपी का क्रिमिनल बैकग्राउंड भी लंबा है। हाईकोर्ट के मुताबिक उसके खिलाफ पहले से 33 मामले दर्ज हैं। बावजूद इसके, जब मामला जमानत पर सुनवाई का आया, तो कोर्ट ने 27 बार सुनवाई टाल दी। इससे सुप्रीम कोर्ट खासा नाराज हुआ।

जानबूझकर की गई टालमटोल

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर वह किसी केस में सुनवाई टालने को लेकर दखल नहीं देता। लेकिन जब मामला किसी की निजी आजादी से जुड़ा हो और कोर्ट खुद टालमटोल करे, तो यह पूरी न्यायिक प्रणाली पर सवाल खड़े करता है। कोर्ट ने कहा कि यह स्थिति दिखाती है कि कैसे न्यायिक देरी एक व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है।

जल्द प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश

इससे पहले हाईकोर्ट ने 20 मार्च को जमानत याचिका पर सुनवाई टालते हुए निचली अदालत को निर्देश दिया था कि वह जल्द से जल्द प्रक्रिया पूरी करे। हाईकोर्ट ने सीबीआई को यह भी कहा था कि वह शिकायतकर्ता संजय कुमार यादव की उपस्थिति सुनिश्चित करे।
HC ने तभी कहा था कि तय तारीख पर शिकायतकर्ता का बयान दर्ज हो और आरोपी को उसी दिन जिरह का मौका दिया जाए. अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि इतने लंबे समय तक मामला खींचना मौलिक अधिकारों का हनन है. कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसे मामलों में न्याय में देरी का कोई औचित्य नहीं है.

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