नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
ऐसा माना जाता है कि ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप कभी भी अपनी जगह से खिसकता नहीं है। लेकिन हाल ही में एक आई रिपोर्ट में चौकाने वाला दावा किया है। इसमें बताया गया है कि यह महाद्वीप अपनी जगह से हट रहा है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह महाद्वीप सालाना 2.8 इंच (7 सेमी) की दर से खिसक रहा है, जो मानव नाखूनों के बढ़ने के बराबर है। हालांकि यह बात अभी तथ्यहीन लग सकती है, लेकिन आने लाखों वर्षो के बाद इसके परिणाम देखने को मिलेंगे। इस घटना के कारण इसके भूभाग, जलवायु और वायोडायवर्सिटी में काफी बदलाव आएगा।
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वैज्ञानिकों ने शोध में किया दावा
वैज्ञानिकों ने ऐसा अनुमान लगाया है कि ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप धीरे-धीरे एशिया की तरफ बढ़ रहा है। हालांकि ये बदलाव लाखों वर्षों में होंगे। इससे महाद्वीप पर रहने वाले लोगों का जीवन प्रभावित हो सकता है।
क्या है इस घटना के पीछे का साइंस
ये महाद्वीप उत्तर की ओर खिसक रहा है, लेकिन ये कोई नई बात नहीं है। प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर झेंग-जियांग ली ने बताया कि यह प्रक्रिया एक सामान्य प्राकृतिक, चक्रीय प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसके तहत महाद्वीप अलग-अलग हो रहे हैं और अंततः टकराएंगे। यह कुछ ऐसा है जो पृथ्वी के इतिहास में बार-बार हुआ है, और ऑस्ट्रेलिया का एशिया से टकराना अंततः इस प्राचीन भूवैज्ञानिक इतिहास की एक और घटना मात्र है। प्रोफेसर ली के अनुसार, "चाहे हम इसे पसंद करें या नहीं, ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप एशिया से टकराने वाला है," यानी, इस क्रमिक गति को रोका नहीं जा सकता।
वायोडाइर्सिटी पर पड़ेगा असर
ऑस्ट्रेलिया अपने अनोखे और विविध वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें कंगारू, वोम्बैट और प्लैटिपस जैसे प्रसिद्ध जानवर शामिल हैं। जब ऑस्ट्रेलिया एशिया से टकराएगा, तो दो बहुत अलग महाद्वीपों के ईकोसिस्टम पर इस घटना का असर पड़ेगा। इस घटना से दो महाद्वीपों के बीच नए पौधे-पशु संपर्क के परिणामस्वरूप पूरी तरह से नए पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण हो सकता है। कुछ प्रजातियाँ नए वातावरण में पनपना सीख सकती हैं, लेकिन अन्य विलुप्त हो सकती हैं,