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बरेली भाजपा संगठन से ब्राह्मणों का पत्ता साफ, 2027 में दिखेगा असर

भाजपा में जिला और महानगर अध्यक्ष पद पर नए जिला अध्यक्षों की घोषणा हो गई। इसी घोषणा के साथ ही बरेली और आंवला के अलावा महानगर अध्यक्ष पद पर भी गैर ब्राह्मण जिला अध्यक्ष मनोनीत किए गए हैं।

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Sudhakar Shukla
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बरेली, वाईबीएन संवाददाता

बरेली। भाजपा में जिला और महानगर अध्यक्ष पद पर नए जिला अध्यक्षों की घोषणा हो गई। इसी घोषणा के साथ ही बरेली और आंवला के अलावा महानगर अध्यक्ष पद पर भी गैर ब्राह्मण जिला अध्यक्ष मनोनीत किए गए हैं। एक तरह से बरेली और आंवला की राजनीति से ब्राम्हणों का पत्ता साफ हो गया। इसका असर 2027 के विधानसभा चुनावों में दिखेगा। 

अब तक जिला अध्यक्ष पद पर किसी न किसी रूप में एक ब्राह्मण चेहरा था। लोकसभा या विधानसभा चुनाव में इसी चेहरे पर पार्टी को ब्राम्हणों के वोट मिलते थे। ज्यादातर संवैधानिक या गैर संवैधानिक पदों पर पहले से ही पिछड़े वर्ग या फिर अन्य वर्गों के चेहरे काबिज हैं। भाजपा संगठन से भी ब्राह्मण चेहरा हटने की नाराजगी आने वाले दिनों में देखने को मिलेगी। इसका असर वर्ष 2027 के विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता है। 

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बरेली और आंवला लोकसभा में लाखों ब्राह्मण मतदाता, मगर संगठन में नहीं मिली जगह

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बरेली और आंवला लोकसभा सीटों पर ब्राम्हण मतदाताओं की संखया क्रमशः दो और डेढ़ लाख के आस पास है। ब्राम्हण हमेशा भाजपा के कोर वोटर रहे हैं। लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का। अथवा अन्य कोई चुनाव हो,  ब्राह्मण मतदाता कभी भी प्रत्याशी को न देखकर हमेशा कमल के निशान पर बटन दबाते आए हैं।  बरेली में जब संतोष गंगवार भाजपा के सांसद या केन्द्र सरकार में मंत्री होते थे,  तो उन्होंने हमेशा किसी ने किसी ब्राह्मण चेहरे को भाजपा का जिला या महानगर अध्यक्ष बनाए रखने को प्राथमिकता दी। इसके परिणाम स्वरूप कभी राजकुमार शर्मा तो कभी पवन शर्मा के रूप में जिला अध्यक्ष और पुष्पेंद्र शर्मा के रूप में महानगर अध्यक्ष बनाए गए। मगर, इस बार भाजपा सांसद छत्रपाल गंगवार ने पवन शर्मा की जगह पिछड़े वर्ग से आने वाले सोमपाल शर्मा को भाजपा जिला अध्यक्ष बनबाया है। वहीं भाजपा महानगर अध्यक्ष पद पर अधीर सक्सेना पहले से ही काबिज हैं। एक तरह से भाजपा संगठन में ब्राह्मणों का पत्ता साफ है।

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सोमपाल शर्मा: जिला अध्यक्ष भाजपा बरेली

बरेली में 15 ब्लॉक प्रमुखों में एक भी ब्राह्मण नहीं, सियासी संतुलन पर चर्चा

जहां तक संवैधानिक पदों की बात है तो उसमें वर्तमान सांसद छत्रपाल गंगवार, जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर रश्मि पटेल, , सहकारी बैंक के चेयरमैन वीरेंद्र गंगवार वीरू, नबावगंज से विधायक डॉ एमपी आर्य गंगवार, मीरगंज से डॉ डीसी वर्मा, कैंट से संजीव अग्रवाल, शहर से डॉ अरुण कुमार विधायक और मंत्री हैं। बरेली में जो 15 ब्लाक प्रमुख हैं, उनमें एक भी ब्राह्मण नहीं है। इसके अलावा गन्ना सोसाइटी के डायरेक्टरों समेत अन्य पदों पर भी ब्राम्हण नही हैं। बरेली लोकसभा में भाजपा के जिला अध्यक्ष पवन शर्मा के रूप में ब्राह्मण चेहरा ही पार्टी संगठन के पास था। अधिकांश लोगों को यह उम्मीद थी कि ब्राह्मण को हटाकर बीजेपी किसी ब्राह्मण चेहरे को ही नया जिला अध्यक्ष बनाएगी। मगर, नई घोषणा में या समीकरण फेल होता दिखा।  नया जिला अध्यक्ष बनने के बाद अब भाजपा में किसी भी ठीक-ठाक पद पर ब्राह्मण चेहरा नहीं होगा।

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पिछ्ले साल बमुश्किल बच पाई थी लोकसभा सीट

बरेली लोकसभा का चुनाव संतोष गंगवार हमेशा एक से डेढ़ लाख वोटो से जीतते थे। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में छत्रपाल गंगवार व मुश्किल 35 हजार वोटो से ही चुनाव जीत पाए थे। इससे पहले वह अपनी बहेड़ी सीट से 2022 का विधानसभा चुनाव सपा के हाथों हार चुके हैं। उसके बाद भी ब्राह्मण चेहरे को आगे न रखने का फैसला वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी पड़ सकता है। अगर ब्राह्मण वोट अपननी मूल पार्टी भाजपा से खिसक कर सपा या कांग्रेस की ओर खिसका तो पार्टी को विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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अधीर सक्सेना महानगर अध्यक्ष, भाजपा, बरेली

आंवला में भी पिछ्ले साल भारी पड़ा था गैर ब्राम्हण समीकरण..

आंवला लोकसभा सीट इस बार भाजपा ने समाजवादी पार्टी के हाथों गवां दी। तो इसकी वजह भाजपा के तत्कालीन लोकसभा प्रत्याशी और पूर्व सांसद धर्मेंद्र कश्यप का ब्राह्मण और क्षत्रिय विरोधी होना माना जा रहा है। धर्मेंद्र कश्यप ने सवर्णों, खास तौर से ब्राह्मण और ठाकुरों के खिलाफ बयानबाजी करके भाजपा की एक सीट कम कर दी। माना जा रहा है कि इस लोकसभा सीट पर ब्राह्मण और क्षत्रिय मतदाताओं ने धर्मेंद्र कश्यप की वजह से भाजपा को वोट नहीं दिए। जिसकी वजह से पार्टी को यह लोकसभा सीट गवानी पड़ी। यहां भाजपा के पांच विधायकों में एक विधायक ब्राम्हण जरूर है लेकिन वर्तमान जिला अध्यक्ष समेत एक विधायक और एमएलसी ठाकुर हैं। एक कैबिनेट मंत्री और विधायक राजपूत और एक विधायक एसटी बिरादरी से है। मतलब, एक विधायक को छोड़ दें तो आंवला में किसी भी महत्वपूर्ण पद पर ब्राह्मण चेहरा नहीं है। कुल मिलाकर राजनीति में संवैधानिक और गैर संवैधानिक पदों पर ब्राह्मणों की कम होती भागीदारी विधानसभा चुनाव में निश्चित रूप से कुछ नया गुल खिलाएगी।

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