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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
बरेली। रुहेलखंड विश्वविद्यालय के विधि विभागाध्यक्ष डॉ. अमित सिंह और शिक्षिका एडवोकेट प्रीती वर्मा की लिखी पुस्तक 2012 में बने प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट (पॉस्को) में मामलों में कानूनी और सामाजिक चुनौतियों पर गहरा प्रहार करती है। किताब में बच्चों के शारीरिक और मानसिक यौन शोषण पर विस्तार से लिखा गया है।
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बच्चों का शोषण एक मूक महामारी है, जो उनसे उनकी मासूमियत, सुरक्षा और भविष्य सभी कुछ छीन लेती है। भारत में यह मुद्दा लंबे समय से कलंक, भय और चुप्पी में घिरा हुआ है। फिर भी यह कई लोगों के लिए एक कठोर वास्तविकता बनी हुई है, जो सामाजिक वर्गों, क्षेत्रों और समुदायों में फैली हुई है। यह एक ऐसा संकट है जिसके लिए सिर्फ स्वीकारोक्ति से ज्यादा की जरूरत है, इसके लिए कार्रवाई, जागरूकता और एक सामाजिक बदलाव की जरूरत है, जो वास्तविक बदलाव ला सके।
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पॉक्सो बच्चों को यौन शोषण और दुर्व्यवहार से बचाने के लिए बनाया गया है, यह सुनिश्चित करता है कि अपराधियों को दंड मिले और पीड़ितों को देखभाल और सहायता प्रदान की जाए। हालांकि अपनी प्रगतिशील प्रकृति के बावजूद पॉक्सो के कार्यान्वयन और प्रभावशीलता को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसका मुख्य कारण समझ में अंतराल, सांस्कृतिक प्रतिरोध और न्याय प्रणाली में खामियां हैं।
यह पुस्तक न केवल पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों, बल्कि इसके दुनिया पर पड़ने वाले प्रभाव को भी उजागर करने का प्रयास करती है। यह आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण करती है कि कानून को व्यवहार में कैसे लागू किया जाता है, कानूनी पेशेवरों, कानून प्रवर्तन और बाल संरक्षण संगठनों के सामने क्या चुनौतियां हैं और पीड़ितों को न्याय और उपचार पाने के लिए किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
लेखक डॉ. अमित सिंह और एडवोकेट प्रीति वर्मा का मानना है कि यह पुस्तक पेशेवरों, कानून निर्माताओं, शिक्षकों और नागरिकों को न केवल कानून को समझने के लिए बल्कि बाल यौन शोषण के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करेगी। यह न्याय, सम्मान और हमारे बच्चों के भविष्य की लड़ाई है और यह एक ऐसी लड़ाई है जिसमें हम सभी को भाग लेना चाहिए। यह पुस्तक इस क्षेत्र में एक मूल्यवान योगदान है।