Advertisment

गगनिका सांस्कृतिक समिति Shahjahanpur ने किया नाटक भुवनेश्वर दर का मंचन

उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी लखनऊ और एसआरएमएस रिद्धिमा के संयुक्त तत्वावधान में बरेली में पहली बार आयोजित हो रहे संभागीय नाट्य समारोह के तीसरे दिन गुरुवार को गगनिका सांस्कृतिक समिति शाहजहांपुर की ओर से नाटक भुवनेश्वर दर भुवनेश्वर का मंचन किया गया।

author-image
Sudhakar Shukla
riddhima function
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

बरेली, वाईबीएन संवाददाता

बरेली। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी लखनऊ और एसआरएमएस रिद्धिमा के संयुक्त तत्वावधान में बरेली में पहली बार आयोजित हो रहे संभागीय नाट्य समारोह के तीसरे दिन गुरुवार को गगनिका सांस्कृतिक समिति शाहजहांपुर की ओर से नाटक भुवनेश्वर दर भुवनेश्वर का मंचन किया गया।

मीरा कांत का नाटक – श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि परंपरा का विस्तार

भुवनेश्वर दर भुवनेश्वर' आधुनिक हिंदी एकांकी के जनक स्वर्गीय भुवनेश्वर प्रसाद के जीवन और कृतित्व के यहां-वहां बिखरे धागों के ताने-बाने से बुना गया नाटक है। भुवनेश्वर निस्संदेह महान साहित्यकार थे। मीरा कांत का यह नाटक उन्हें भावुक भावभीनी श्रद्धांजलि नहीं बल्कि यह उन पर केन्द्रित होते हुए भी उनसे आगे निकलकर युगों-युगों से निरंतर बहती 'भुवनेश्वर-परम्परा' को प्रकाश में लाने का प्रयास है। यह हिंदी साहित्य का दुर्भाग्य है कि भुवनेश्वर सरीखी अप्रतिम प्रतिभा को समय पर पहचाना न जा सका और जिसका दुष्प्रवाह उनके व्यक्‍तिगत जीवन तथा हिंदी साहित्य दोनों पर पड़ा।

इसे भी पढ़ें-भव्य कलश यात्रा के साथ त्रिवती नाथ मंदिर मे भागवत कथा प्रारंभ

नाटक में भुवनेश्वर का जीवन नहीं, उनकी संघर्षगाथा

यह नाटक भुवनेश्वर के जीवन का इतिवृत्त या घटनाक्रम का क्रमिक वर्णन नहीं है। इसमें उनके जीवन व साहित्य के वे मोड़ व स्तंभ हैं, जिनसे गुज़रता हुआ एक युवा जीनियस भुवनेश्वर प्रसाद धीरे-धीरे पगला भुवनेश्वर हो जाता है। इसमें दिखाया गया कि कैसे एक असाधारण प्रतिभा विरोध सहते-सहते असामान्य हो जाती है और बदले में मिलता है साहित्य की दुनिया के हाशिये का भी हाशिया, जो अतंतः उसे एक 'साहित्यिक अछूत' बनाता है। भुवनेश्वर होना एक ऐसी त्रासदी बन गया है जो समय की धार के साथ बहती चली आ रही है। इसीलिये नाटक में 1930-40 के ज़माने को आज की परिस्थितियों के साथ पिरोया गया है।

Advertisment

इसे भी पढ़ें-हरदोई स्ट्राइकर्स और आईके कलेक्शन ने अपने नाम करी जीत

अभिनेत्री सुलोचना कार्की की दमदार मंचीय प्रस्तुति

अतीत और वर्तमान के अलग-अलग खाने नहीं बनाये गए हैं। गुज़रे वक्‍त और आज के लम्हों की आपसी आवाजाही के माध्यम से काल व प्रवृत्तियों की निरंतरता को दिखाया गया है जो भुवनेश्वर के गुज़रे हुए कल को नाटक के एक पात्र अभिनेता के आज और असंख्य अदृश्य भुवनेश्वरों के आने वाले कल से जोड़ता है। नाटक में भुवनेश्वर की भूमिका खुद इसके निर्देशक कप्तान सिंह "कर्णधार" ने निभाई, जबकि निर्देशक की भूमिका आजम खान, अभिनेता के रूप में मो फाजिल खान, अभिनेत्री के रूप में सुलोचना कार्की मंच पर आए।

इसे भी पढ़ें-Tulsi Math के पीठाधीश्वर नीरज नयन दास ने छात्रों को दिया आशीर्वाद

सहायक भूमिकाओं में कलाकारों का शानदार प्रदर्शन

संजीव राठौड़ (सज्जाकार), अनुराग शर्मा (चाय वाला) और शशि भूषण जौहरी (राहगीर) ने भी अपनी भूमिकाओँ से न्याय किया। इसमें प्रकाश संयोजन शशांक शंखधर, संगीत अमित देव ने दिया। जबकि वस्त्रविन्यास रितु जौहरी और हनुमंत सिंह का रहा। इस अवसर पर एसआरएमएस ट्रस्टी आशा मूर्ति, उषा गुप्ता, मुख्य अतिथि खुशलोक अस्पताल के डॉ. विनोद पगरानी, उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी की ड्रामा डायरेक्टर शैलजा कांत, डा.प्रभाकर गुप्ता, डा.अनुज कुमार, डा. शैलेन्द्र सक्सेना, डा.रीटा शर्मा, संयोजक पप्पू वर्मा, संजय मठ और बरेली आकाशवाणी और दूरदर्शन के कार्यक्रम प्रमुख डा. विनय वर्मा सहित शहर के गणमान्य लोग मौजूद रहे।

Advertisment

21 फरवरी 2025

संभागीय नाट्य समारोह के अंतर्गत एसआरएमएस रिद्धिमा में सायं 5 बजे कृति सांस्कृतिक शैक्षिक एवं समाराजिक संस्था लखनऊ की ओर से व्यंगकार स्वर्गीय केपी सक्सेना लिखित नाटक बाप रे बाप का मंचन।

Advertisment
Advertisment